बाबा हरदेव सिंह जी के युग में बाबा बूटा सिंह जी के युग का आनंद

- रामकुमार सेवक 

स्वामी विवेकानंद जब परमात्मा की खोज कर रहे थे तब उनका नाम था-नरेंद्र |

कालांतर में किसी दोस्त ने प्रेरित किया तो वे महात्मा रामकृष्ण परमहंस की खोज में तत्पर हुए |

रामकृष्ण जिज्ञासुओं की खोज उसी तरह करते थे जैसे बाबा बूटा सिंह जी श्रद्धालुओं ,जिज्ञासुओं की खोज किया करते थे |

महात्मा मान सिंह जी मान मेरे जैसे बहुत सारे कवियों के उस्ताद थे ,बताया करते थे कि बाबा जी किस प्रकार लोगों को झिंझोड़ते थे |

विभाजन से पहले की बात है बाबा जी पेशावर में रहा करते थे |उन्होंने किसी शिष्य को तांगा लेने भेजा क्यूंकि बाबा जी ने कुछ सन्तों को साथ लेकर संगत करने जाना था |

महात्मा एक तांगा लेकर आ गये |

बाबा जी ने उस टाँगे को यह कहकर वापस भेज दिया कि इसके साथ जो घोडा जुता है ,यह तगड़ा है ,यह हमें बहुत जल्दी हमारी मंजिल तक पहुंचा देगा .इससे हमें आपस में ज्ञान चर्चा करने का समय कम मिलेगा इसलिए तांगे टाँगे के साथ तगड़ा घोडा नहीं चाहिए बल्कि कमजोर घोडा होगा तो वह धीरे-चलेगा  इससे हमें ज्ञान चर्चा का समय ज्यादा मिलेगा |

इस प्रकार बाबा जी की सोच बिलकुल अलग थी |

वे समय की शीघ्रता से ज्यादा ज्ञान-चर्चा को महत्त्व देते थे |

लगभग पाँच वर्ष पहले तक हम कुछ साथी ,सप्ताह में एक बार विजय चौक से लेडी इरविन कॉलेज में सत्संग करने मंडी हाउस क्षेत्र में जाया करते थे |

मेरे साथ शशि रावत जी भी होते थे जो गुरुग्राम से निर्माण भवन आया करते थे |

विजय चौक से मंडी हाउस ले जाने और वापस लाने की सेवा महात्मा सत्य मोहन अनेजा जी किया करते थे |यदि हम संगत करने के लिए लोकनायक जय प्रकाश अस्पताल के स्टाफ क्वार्टर्स में जाते तब भी यह सेवा वही निभाते थे |

शशि रावत जी ने एक बार बताया कि अनेजा साहब की गाडी में जैसे ही हम बैठते सेवक जी,कोई न कोई प्रेरक प्रसंग छेड़ देते |

हम मन ही मन प्रार्थना करते कि ट्रैफिक की लाइट लाल हो जाए ताकि प्रसंग पूरा हो सके |

इस प्रकार बाबा बूटा सिंह जी की भक्ति भावना का आनंद हम लोग बाबा हरदेव सिंह जी के युग में लिया करते थे |