हरि सुमिरन से आता है जीवन में संतुलन

रामकुमार सेवक 

          1985  के आस-पास की बात है |अक्टूबर -नवम्बर का महीना था |मैं उन दिनों मुज़फ्फर नगर में रहता था |सन्त निरंकारी सेवादल के स्थानीय महात्माओं के साथ मैं सीढ़ी पर चढ़कर वार्षिक सन्त समागम का  पोस्टर चिपका रहा था |

            उन दिनों निरंकारी मिशन के विरुद्ध एक सुनियोजित अभियान विशेषकर पंजाब में चल रहा था |लगभग रोज ही किसी न किसी  निरंकारी श्रद्धालु की कहीं न कहीं हत्या हो जाती थी लेकिन निरंकार को सर्वव्यापक मानने के दृढ़निश्चय के चलते हम लोग सक्रिय रहते थे |इस निश्चय के बावजूद ,समय की पुकार सुनते हुए,सक्रिय रहने के साथ यथासंभव हम चेतन भी रहते थे |

             मुज़फ्फर नगर शहर में जिला अस्पताल के पास पूरब दिशा में ,एक सड़क है जो आगे जाकर अंसारी रोड में मिल जाती है के किनारे पर हम लोग पोस्टर चिपका रहे थे |रात के ग्यारह बजे के आस-पास का समय था |हलकी सर्दी शुरू हो चुकी थी तो सड़क लगभग सुनसान थी | एक महात्मा जो रिक्शा चलाते थे ,के रिक्शे में पोस्टर और चिपकाने का साधन रखा हुआ था |

            नीचे से दो-तीन लोग आये और पोस्टर पढ़ने लगे -निरंकारी सन्त समागम |नीचे खड़े साथियों से उन्होंने प्रश्न करने शुरू किये |वे सीधे-सादे महात्मा थे क्या कहते |मैंने सीढ़ी पर चढ़े -चढ़े ही प्रश्न हल करने की कोशिश की |

भीतर से मुझे लग रहा था कि परिस्थितियां आसान नहीं हैं ,ये कोई जिज्ञासु नहीं हैं बल्कि शरारती तत्व हैं और शरारती को कोई नहीं समझा सकता |

           बहरहाल निरंकार का सुमिरन करते हुए काम करता रहा |सीढ़ी से नीचे उतरकर आया तो उन्होंने पूछा-निरंकारी मिशन किस धर्म का प्रचार करता है ?

             मैंने कहा -यह तो हर धर्म का सार है और सब धर्मो का समन्वय करता है |

यह सुनकर वे धीरे -धीरे अपने रास्ते चले गए |मुझे बहुत संतुष्टि हुई कि मालिक ने हालात बिगड़ने नहीं दिए |आज भी वह दिन याद आता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं |वह एक विशेष दिन लगता है जिसने हमें यह निष्कर्ष दिया कि-हालात चाहे जैसे भी हों सुमिरन हमेशा हमें संतुलित करता है |यह ढाल की भाँति हमें बचा लेता है | 

            बाबा हरदेव सिंह जी कहा करते थे कि सुमिरन की जब बात चलती है तो हम कहते हैं कि हम किसी समय या वार में बंधे हुए नहीं हैं |हम कभी भी सुमिरन कर लेते हैं लेकिन पूरा दिन गुजर जाता है और हमें निरंकार का ध्यान भी नहीं आता |देखा जा रहा है कि सेवा के भी उत्साह हैं,सत्संग में भी खूब आते हैं लेकिन सुमिरन की कमी है तो सुबह-शाम परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर सुमिरन करने में कोई हर्ज़ नहीं है |यह कोई बंधन नहीं है |जब मोबाइल फोन आये तो उससे पहले लैंडलाइन फोन थे |यदि मोबाइल फोन पर बात नहीं हो पाए तो लैंडलाइन फोन का सहारा लेना पड़ता है |हम कहते तो हैं-सांस -सांस सुमिरन लेकिन हर सांस में सुमिरन कहाँ हो पा रहा है तो इस प्रकार घर के सब लोग मिलकर सुमिरन करें |यह कोई बंधन नहीं है बल्कि भक्ति का अंग है |(स्मृति के आधार पर लिखा )