वे सज्जन दिल्ली के मालवीय नगर में रहते थे |मालवीय नगर में जो सन्त निरंकारी पब्लिक स्कूल है उसमें अपनी सेवाएं भी देते थे |
ये सज्जन उत्तर प्रदेश के जिला मुज़फ्फर नगर से सम्बंधित हैं |सीधी बस नहीं मिली तो पहले मेरठ गए और फिर आगे मुज़फ्फर नगर की बस ली |
बस बदलने के कारण जरूरी सामान जो गांव में ले जाना था,बस में ही छूट गया |
उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम के अपने कानून हैं |सज्जन ने रोडवेज कर्मचारियों से सहयोग की अपेक्षा रखी |लेकिन मेरठ के सक्षम अधिकारी ने बताया कि आपकी बात सही अगर होगी भी लेकिन आप अपना प्राप्त सामान मेरठ से नहीं ले सकते ,रोडवेज का नियम हैं कि जिस डिपो की बस में आपका सामान छूटा है ,सामान प्राप्त करने के लिए आपको उस डिपो में ही जाना पड़ेगा |
सज्जन ने तय किया कि सामान पाप्त करने के लिए यदि हरिद्वार जाना पड़े तो भी जायेंगे |अधिकारी महोदय ने अपने अधीनस्थों को हिदायत भी दी कि नियमो का पालन जरूर करना है |
इस बीच सज्जन के मुँह से तू ही निरंकार अनायास निकल गया |
तू ही निरंकार शब्द ने जैसे जादू का सा काम किया |अधिकरी की मुखमुद्रा बहुत तेजी से परिवर्तित हो गयी वे बोले -क्या आप निरंकारी हैं ?
सज्जन शर्माते हुए से बोले |जी हाँ ,मुझे अपने गुरु का शिष्य होने का गौरव है लेकिन आप तो कह रहे थे कि जो भी करेंगे नियम के अनुसार करेंगे और अब आप हमें सामान यहीं से ले जाने दे रहे हैं |इतनी दयानतदारी क्यों ?
रोडवेज़ के अफसर ने कहा-वास्तव में हमारे पड़ोस में एक नए सज्जन रहने आये हैं |वे निरंकारी हैं,वे अच्छे आदमी हैं |अगर सब निरंकारी वैसे ही सभ्य और विनम्र होते हैं तो किसी भी निरंकारी को तंग नहीं किया जाना चाहिए |
अगर सब निरंकारी सभ्य और विनम्र होते हैं ,जैसे कि हमारे पड़ोस में रहने वाले सज्जन हैं तो किसी भी निरंकारी के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए |धन निरंकार जी