संस्मरण (श्रद्धांजलि) : निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह जी

निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह जी बहुत सहज महात्मा थे |उन्हें हम युगप्रवर्तक के नाम से सम्बोधित करते  थे |

उनके बारे में आदरणीय महात्मा निर्मल जोशी जी ने गुरुवचन नामक पुस्तक का संकलन किया था |निर्मल जोशी ने उनके बारे में लिखा था -

वे हकीकत में थे इक मुक़द्दस किताब 

लोग पढ़ते रहे नावलों की तरह 

वे कहा करते थे कि उन्होंने अपने अनुयाइयों को कर्मयोग की दिशा दी |वे हमें मेहनत और ईमानदारी से जीवन निर्वाह करने की शिक्षा देते थे |

मैं निरंकारी मिशन से अक्टूबर 1973 के आस -पास जुड़ा |उनके दर्शन करने का सौभाग्य मुझे 26

वे सन्त समागम के शुभ अवसर पर के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में मिला |

तब मैं छठवीं कक्षा में पढता था |मेरे पिताजी(श्री चिरंजी लाल जी (अब ब्रह्मलीन ) ने मुझे बाजू से ऊपर उठाया और मेरा मस्तक उनके चरणों से लगा दिया |

बाबा जी ने अपना हाथ दो बार मेरे सिर पर रखा और उस छोटी उम्र में भी मैंने अपने आपको रोमांचित महसूस किया |

उनके दर्शन अंतिम बार तब किये थे जब 1979  के करीब जब परिस्थतियाँ काफी विपरीत थीं |तब मैं दसवीं कक्षा में पढता था लेकिन मिशन की बदली परिस्थतियों ने मुझे काफी उद्वेलित और जागरूक कर दिया था |

अमृतसर और उसके बाद कानपुर  में जो कुछ हुआ ,वह मेरे संज्ञान में था |

विपरीत आर्थिक परिस्थितियों के चलते ,मिशन के लिए उतना नहीं कर पाता था ,जितना करना चाहता था |

1979 में निरंकारी कॉलोनी के नवनिर्मित सत्संग हॉल में अंतिम बार उनके दर्शन किये |उसके बाद तो 25 अप्रैल 1980 को उन्हें चिर निद्रा में सोये हुए देखा |

फिर तो एक दूसरा ही दौर शुरू हो गया |बाबा हरदेव सिंह जी के समय में काफी कुछ लिखने -बोलने का मौका मिला |

प्रकाशन विभाग में सेवाओं के चलते बाबा जी के निकटवर्ती अनुयाइयों के साथ काम करने का मौका मिला |

आज हम उनकी स्मृतियों को बहुत श्रद्धापूर्वक याद कर रहे हैं |इस आलेख में सिर्फ मेरे ही संस्मरण नहीं हैं बल्कि जो कुछ मुझे उनके निकटवर्ती महापुरुषों से उनके बारे में सुनने का मौका मिला ,कुछ वह भी लिखा है |  

   वे छोटी से छोटी चीजों का भी का भी बहुत ख्याल रखते थे और अपनी सहजता से हृदय जीत लेते थे |उनके बारे में एक नौजवान ने एक बार बताया -बचपन से ही निरंकारी कॉलोनी के सहज वातावरण को महसूस किया |

निरंकारी भवन ,जहाँ बाबा जी निवास करते थे हमारे घर से दूर नहीं था |माता-पिता के साथ अक्सर ही बाबा जी की कोठी में जाने का अवसर मिलता था |

मेरा छोटा भाई अविनाश,जो कि आजकल इंग्लैंड में है ,बचपन में बहुत शरारती था ,इस कारण मम्मी जी बहुत परेशान रहती थी |

बाबा जी के दर्शनों के लिए एक बार मम्मी जी के साथ अविनाश था |

मम्मी जी ने बाबा जी को अविनाश की शरारतों की वजह से अपनी समस्या बताई |

बाबा जी बहुत सहज रहते थे |अविनाश जब बाबा जी के सामने था तो बाबा जी ने हाथ में पकडे अंगूरों  में से एक दाना अविनाश के मुँह में डाल दिया |

वह खुश तो हुआ ही लेकिन बाबा जी ने उसे समझाया कि बड़ो की डाँट में भी मिठास छिपी होती है |उनकी बातों को मानना भविष्य को सुनहरा और सुन्दर बनाता है |

बाबा जी ने अविनाश को इतनी सहजता से समझाया कि उसके बाद हमने उसकी कोई शिकायत नहीं सुनी |

वह बहुत समझदार हो गया था |न जाने यह बाबा जी का आशीर्वाद था या उनका समझाने का सहज ढंग |आजकल वह इंग्लैंड में है और स्थानीय सत्संग भवन में सेवा भी देता है | 

अपने बचपन की -एक बात और याद आ गयी |(विवेक ओबेरॉय) 

शाम को मम्मी जी के साथ निरंकारी कोठी में बाबा गुरबचन सिंह जी के दर्शनों के लिए गया था |

बाबा जी का स्वभाव बहुत हंसमुख था |उन्होंने कहा-आज तो बरखुरदार भी साथ आया है |

मैं तो बिलकुल छोटा था इसके बावजूद बाबा जी हर एक पर पूरा ध्यान देते थे |

बाबा जी ने मम्मी से कहा -बेटे का चेहरा पीला हुआ है |इसे डॉक्टर को दिखाओ |

मम्मी जी ने कहा-बाबा जी ,आप आशीर्वाद दीजिए |

बाबा जी ने कहा -मोतीराम जी सर्राफ के दामाद जी का करोलबाग़ में क्लिनिक है |उन्हें दिखा लो,मैं भी मोतीराम जी से बात कर लूँगा |

कहने का भाव यह है कि बाबा जी आशीर्वाद तो देते ही थे लेकिन एक सहृदय बुजुर्ग का दिल भी रखते थे |किसी भी बात को वे यूँ ही नहीं छोड़ते थे बल्कि अपनी जिम्मेदारी पूरी निभाते थे |       

 - रामकुमार 'सेवक'