- रामकुमार सेवक
अशरीरी आत्माओं के बारे में मैंने पढ़ा तो बहुत है |तंत्र -मंत्र की घटनाएं,यदि वे सत्य हों तो उन्हें पढ़ने में मज़ा भी आता है |मैं जब 9वी कक्षा में पढता था तो उन दिनों मैंने संत इश्वर सिंह जी राड़ेवाले के बारे में पढ़ा था |हालांकि ब्रह्ज्ञान तब मैं प्राप्त कर चुका था लेकिन लिखने-पढ़ने की मुझे कोई मनाही नहीं थी |
डॉ,शक्ति सिंह जी ने ,तो मुझे पाक क़ुरआन भी पढ़वाई थी |वे मेरे शुरूआती मार्गदर्शक थे |
मिशन से भी उन्होंने ही जोड़ा और लेखन से भी |
मेरा पहला लेख उन्होंने ही छपवाया था और जितना वो कर सकते थे उन्होंने मेरे लिए किया |
बहरहाल मूल मुद्दे पर आते हैं |1993 में कुणाल जब हुआ तो उसे हम चमत्कार मान सकते हैं |उससे पहले हमारे घर में दो बेटियां ही थीं |
तब मैं हरदेव नगर दिल्ली में किराए के मकान में रहता था और दिन-रात संत निरंकारी पत्रिका के संपादन के काम में लगा रहता था क्योंकि यह मेरा प्रिय काम था ,उसके लिए बड़े से बड़ा काम भी छोड़ देता था इसलिए मेरे साथी मेरी सरकारी नौकरी को पार्ट-टाइम जॉब बताते थे जबकि गुजारा उसी से होता था |
उन दिनों किसी ने हमारे मकान में कुछ खाने की चीजें फेंकी |वे इस किस्म की चीजें थीं कि किसी ने हम पर तंत्र किया है क्यूंकि एक स्त्री, जिसकी दसियो सालों से कोई संतान नहीं थी किसी भी तरह संतान हासिल करना चाहती थी |
मुझे उससे कोई शिकायत नहीं थी |हर विवाहित स्त्री चाहती है कि उसे संतान का सुख मिले |मुझे इतना समय ही नहीं था कि किसी पर ध्यान दूँ |पैसा कम था लेकिन गृहस्थी बहुत बढ़िया चल रही थी |
तांत्रिक क्रिया का जो सामान हमारे मकान में फेंका गया ,उसकी भी हमने परवाह नहीं की |हर इतवार को पहले की तरह सत्संग जाते रहे|
बाबा जी और विद्वान महात्माओं का खूब स्नेह मिल रहा था |प्रतिष्ठा भी दिन दोगुनी रात चौगुनी बढ़ रही थी लेकिन घर में मेरे और पत्नी के बीच विवाद शुरू हो गया था जबकि हालात वैसे के वैसे थे |
पत्नी भी हैरान थी कि यह क्या हो रहा है |पहले तो बेटियां ही थीं लेकिन अब तो बेटा भी हो गया था |पति,पत्नी और बच्चे -फिर कलह क्यों थी ?
मैं खुद भी हैरान था |मैंने हंसती दुनिया के पूर्व संपादक विनय जोशी जी से बात की |उन्होंने कहा-घबराने की बात नहीं है |महापुरुषों को घर बुलाकर उनकी सेवा कर दो |अगले दिन शुक्रवार था |मैं दो बुजुर्ग महात्माओं के पास गया और उन्हें शनिवार सुबह अपने घर नाश्ता करने के लिए आमंत्रित किया |
उन्होंने निमत्रण स्वीकार तो किया लेकिन साथ ही यह भी बताया कि वे उस दिन यदि चंडीगढ़ नहीं गए तो आपके घर में नाश्ता करेंगे |
मेरा ध्यान था कि महात्मा आएं ,पूरी तैयारी भी की लेकिन वे जब नहीं पहुंचे तो मैंने मान लिया कि महात्मा अपनी पत्नी के साथ चंडीगढ़ चले गए होंगे |अभी मैंने नाश्ता शुरू ही किया था कि हमारे घर का द्वार किसी ने खटखटाया |
द्वार पर दो अपरिचित सज्जन खड़े थे उन्होंने धन निरंकार कही और भीतर आ गये |
मैंने उनसे कहा- हम तो सुबह से ही आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे |
वे बोले-लेकिन हम तो पहले कभी आपस में मिले नहीं ?
महात्मा का आदेश था कि-महापुरुषों की सेवा करनी है |जिन्हें निमंत्रण दिया वे कहीं और चले गए तो सच्चे बादशाह ने आपको भेज दिया |
यहाँ के भोजन पर आप ही का नाम लिखा होगा |
इससे मेरे भीतर यह यकीन मजबूत हो गया कि निरंकार का अपना संचार तंत्र है और यह अपने तरीके से काम करता है,जिसे आप चमत्कार भी कह सकते हैं |
चूंकि इसका कोई तर्क नहीं है इसलिए बुद्धिजीवियों के लिए यह सत्य नहीं है बल्कि एक कल्पना है |मेरे विचार से यह निरंकार का एक चमत्कार है |