- रामकुमार 'सेवक'
आदेश तो गुरु जी ने यही दिया था कि जिसे भी मुस्कुराता देखो उसे एक गुलाब दे देना लेकिन हर किसी को मुस्कुराने की सौगात कहाँ मिल पाती है| जिसके दिल में ख़ुशी होगी वही तो मुस्कुराएगा क्यूंकि विद्वानों ने कहा है-या तो दीवाना हँसे या तू जिसे तौफ़ीक़ दे ,वर्ना इस दुनिया में आकर मुस्कुरा सकता है कौन |
सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी अनेक बार यह काव्यांश सुनाया करते थे -कि-या तो दीवाना हँसे ,या तू जिसे तौफ़ीक़ दे ,वर्ना इस दुनिया में आकर मुस्कुरा सकता है कौन
अर्थात इस दुनिया में या तो दीवाना हंस सकता है अर्थात -जो बुद्धि से काम नहीं लेता अर्थात उसे कुछ लोग पागल भी कहते हैं |
मुझे एक प्रसंग याद आ गया ,जिसे मैंने टी.वी धारावाहिक मिर्ज़ा ग़ालिब में देखा था -1857 जब आज़ादी के लिए ग़दर (विद्रोह )किया गया |उन दिनों दिल्ली में एक गरीब आदमी ने अपने मकान को आग लगा ली |
असल में कुछ लोगों ने सत्ता के हुकुम से ,ग़दर के कण्ट्रोल(नियंत्रण ) होने की ख़ुशी मं चिराग जलाये हुए थे |
उस गरीब आदमी के पास तेल खरीदने के पैसे तो नहीं थे इसलिए उसने मकान को ही आग लगा दी और तालियां बजाकर कहने लगा -हमारा घर चिराग़ाँ हो गया है |अपने घर को जो आग लगा दे उसे दीवाना नहीं तो और क्या कहें |
शायर कहता है -दीवना वो है जिसे लाभ - हानि की समझ ही नहीं |
इस दुनिया में तो दुःख ही दुःख है-जैसे महात्मा बुद्ध कहते हैं-
दुनिया में अगर दुःख ही है तो कोई भी समझदार आदमी हँस कैसे सकता है ?
इसका तात्पर्य हँसने वाला अपनी अक्ल से काम नहीं ले रहा है अर्थात दीवाना है |महात्मा ने हँसने का एक और कारण बताया है अर्थात तू अर्थात परमात्मा जिसे तौफ़ीक़ (ताक़त )दे |परमात्मा जिसका पक्षधर है वो हंसेगा ही इसीलिए भक्तों को सदाबहार माना गया है |
भक्तों की अवस्था ऐसी रही है -
जब न थी अपने गुनाहों पर नज़र ,देखते थे दुनिया के ऐब-ओ-हुनर
जब अपने गुनाहों पर पडी निगाह ,जहाँ में कोई बुरा न रहाज़फर आदमी उसको न जानिये , हो कितना भी आलम फैज़-ओ-ज़फ़ा
जिसे ऐश में यादे वफ़ा न रही ,जिसे तैश में ख़ौफ़े खुदा न रहा |
ज्ञानी सन्त सिंह जी मस्कीन अपने बारे में कहते हैं-
कुछ माज़ी की खाक हूँ ,कुछ मुस्तक़बिल का का नूर हूँ
जीना अभी नहीं आया क्यूंकि हाल (वर्तमान )से अभी दूर हूँ |
इस प्रकार अध्यात्मिक व्यक्ति सत्य के करीब पहुँच पाते हैं | वे अत्तीत में खो नहीं जाते और वर्तमान को विसार नहीं देते इसलिए जीवन का सही आकलन कर पाते हैं |मालिक निरंकार सच्चा बादशाह कृपा करे हम जीवन को सफलता पूर्वक जी सकें क्यूंकि प्रसंग में आगे कहा गया है कि जो सहज स्वभाव का था वह सहज ही सबकी ओर देखकर मुस्कुरा देता था |उसे मुस्कुराते देखकर सहज ही गुलाब की पंखुड़ी पर उसके हाथ बढ़ जाते |इस प्रकार शाम तक गुलाब की पंखुड़ी की टोकरी खाली हो गयी |
दूसरी तरफ दूसरा इंसान मुस्कुराना जैसे जानता ही न था |जब वह नहीं मुस्कुराता था तो दूसरा इंसान भी बिलकुल निरपेक्ष रहता था | इस प्रकार उसकी पंखुड़ियां ख़त्म नहीं हो सकीं |वे बची ही रहीं |
स्पष्ट हो गया कि ख़ामोशी का प्रभाव है ख़ामोशी और मुस्कान का जवाब है मुस्कान |