एक युगांतरकारी व्यक्तित्व- निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी

 रामकुमार सेवक 

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी के कार्यकाल को हम छत्तीस वर्षों में सीमित नहीं कर सकते |वे बेशक निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह जी के ब्रह्मलीन होने के बाद 27 -04 -1980 को सत्गुरु रूप में प्रकट हुए और तेरह मई 2016 को ब्रह्मलीन हो गए लेकिन वे परिस्थितियां जिनमें उन्होंने मिशन का नेतृत्व संभाला,,सामान्य नहीं थी |

उस समय मिशन हिंसा और वैर की लपटों में घिरा था |बाबा हरदेव सिंह जी के सामने परिस्थितियां बहुत भिन्न थीं |बाबा गुरबचन सिंह जी सत्य और अहिंसा के अध्यात्मिक मार्ग के द्वारा देश व समाज को नयी दिशा देने में लगे थे लेकिन आम लोग इस मार्ग पर गहरा यकीन नहीं रखते थे |

बाबा हरदेव सिंह जी की शारीरिक आयु मात्र 26 के आस-पास थी लेकिन मिशन के आध्यात्मिक मार्ग में विश्वासी भक्तों के प्रति उनकी जिम्मेदारियां बहुत प्रबल थी |

भक्तों को तो बाबाजी ने जल्दी ही संभाल लिया लेकिन बड़ी उम्र वाले लोग बहुत समय तक विचलित ही रहे क्यूंकि इस उम्र के युवक पर कोई भी जल्दी यकीन नहीं करता |

जिन शक्तियों ने बाबा गुरबचन सिंह से एकतरफा बैर किया उन्हें हिंसा और बैर से हटाना आसान तो बिलहूल नहीं था |

बाबा हरदेव सिंह जी ने सत्य और अहिंसा को ही अध्यात्मिक क्रांति का आधार बनाया |वे सिर्फ प्रवचन नहीं करते थे बल्कि जो कहना चाहते थे उसे अपने जीवन में प्रयोग करते थे |वे लोगों से इतना सहज व्यवहार करते थे कि लोग उन्हें love  personified (प्रेम का मूर्तरूप )कहते थे |

आज सुबह महात्मा कह रहे थे कि एक बार उनके साथ पटनी टॉप (कश्मीर )जाने का अवसर मिला वहां एक कॉलेज में बाबा जी ने दर्शन दिए और अनेक गतिविधियों का उद्घाटन किया |

|गाड़ियां रवाना होने के लिए तैयार थीं लेकिन मैंने देखा कि बाबा जी गाड़ियों में बैठने की बजाय छत्रावास (Hostel )की तरफ जा रहे हैं |

बाबा जी को अपने बीच पाकर छात्र हैरान थे | 

वह छात्र जिसने बाबा जी को हॉस्टल में आने के लिए आमंत्रित किया था ज्यादा खुश था क्यूंकि वह कॉलेज का सामान्य छात्र था और बाबा जी को निमंत्रण देने के लिए वह अधिकृत ही नहीं था |

उसने तो भावुक होकर बाबा जी से हॉस्टल में आने की भावुक प्रार्थना की थी लेकिन गुरु भावना की शुद्धता को सर्वाधिक सम्मान देता है |

बाबा जी ने सामान्य प्रार्थना को भी पूर्ण महत्व दिया |बाबा जी हर एक की पूरी बात को ध्यान से सुनते थे |उनकी याददाश्त भी बहुत कमाल थी |

एक बेटी जो अब 30 से ज्यादा आयु की थी ,उसने बाबा जी से कहा-

मैं जब पैदा हुई तो मेरा नाम आप ही ने रखा था |उसने बाबा जी की याददाश्त की परीक्षा लेते हुए उन से अपना नाम पूछा ,इतने लम्बे समय गुजरने के बावजूद बाबा जी ने स्पष्ट बताया-जाग्रति |

बाबा जी ने  बिलकुल सही नाम बता दिया |वह बेटी आश्चर्य चकित थी कि बाबा जी ने उसका सही नाम बता दिया |            

आज सुबह सत्संग में एक महात्मा बाबा हरदेव सिंह जी की उस प्रतिबद्धता को प्रकट कर रहे थे जो सन्तजनों को नशे से बचाना चाहते थे |वे सज्जन बोले कि एक बार शाम के समाय किसी सज्जन के पास जाने का संयोग बना |उनके परिवार के शेष सज्जन भी हम लोगों के साथ चाय पी रहे थे |उन सज्जन ने विनम्रता पूर्वक चाय पीने से इंकार कर दिया |

म लोगों ने समझ लिया कि यह उनके पीने -पिलाने का समय है इसलिए हमने उनकी कमजोरी को उजागर नहीं किया और हम कुछ देर बाद वहां से वापस आ गए |

मुझे बाबा हरदेव सिंह जी का वह प्रवचन याद आ गया जिसमें उन्होंने निरंकारी श्रद्धालुओं से नशाबंदी के प्रति पूर्ण निष्ठावान होने का आग्रह किया था |बेहद मार्मिक ढंग से बाबा जी ने मिशन के बलिदानी सन्तों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह अनूठी बात कही थी कि-दास न इससे ज्यादा कह सकता है और न कम कि अपनी कमजोरियों के कारण जो नशाबंदी के आदेश का पालन नहीं कर पा रहे हैं उनसे दास यही कहेगा कि नशे का इस्तेमाल करने से पहले वे बोतल में अमर शरीदों का खून देख लिया करें |

बाबा हरदेव सिंह जी के नशाबंदी के आदेश के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले जब निरंकारी कॉलोनी में नए-नए बसे थे तो युवावस्था का दौर नया-नया शुरू हुआ था |बाबा जी के ऐसे आदेशों ने जीवन को संयत रखा और हम नशों के बहाव में न उलझकर जीवन को भक्ति के मार्ग पर केंद्रित कर पाए |

हर वर्ष निरंकारी मिशन 23 फरवरी को बाबा हरदेव सिंह जी के ऐसे ही प्रेरक प्रसंगों को जीवन का आधार बनाये रखने के प्रति दृढ़संकल्प का भाव प्रकट करता है |