फिर पवित्र कैसे हुए ?

जहाँ तक मुझे स्मरण है मेरे साहित्यिक गुरुओं में से एक महात्मा जे.आर.डी.सत्यार्थी जी ने अपनी पुस्तक अंधकार से प्रकाश की और में लिखा है कि एक सज्जन को अपनी विद्वता का बहुत अहंकार था |वे जानते थे कि कबीर जी पढ़े लिखे नहीं हैं इसलिए वे उन पर अपनी विद्वता की धाक जमाना चाहते थे जबकि कबीर दास जी सहज जीवन जीते थे | 

     एक दिन सुबह जब वे शौच निवृति के लिए जंगल ,में गए तो कबीर को एक सूत्र सूझा |हुआ यह कि कबीर जी पंडित जी की यह कमजोरी अच्छी तरह जानते थे कि कोई भी कर्मकांडी सहज जीवन नहीं जीता |

       पुराने समय में लोग शौच निवृति के लिए खेतों में जाते थे |वे कर्मकांडी सज्जन जो कबीर जी के साथ शास्त्रार्थ करके उन्हें परास्त करना चाहते थे ,वे भी पास ही बैठ गए क्यूंकि सुबह के समय जंगल में घोर अँधेरा था |दोनों एक दूसरे को पहचान ही न सके |लेकिन कबीर तुरतबुद्धि का प्रयोग करते थे |

       यह एक प्रकार से उनकी मजबूरी भी थी |उन्होंने जोर से कहा-पंडित जी -जय श्री राम

पंडित जी को यह सुनकर अच्छा नहीं लगा |कबीर दास जी ने दोबारा बोल दिया -जय श्री राम 

अब पंडित जी का क्रोध दोगुना हो गया 

|पहली बात तो यह थी कि-पंडित जी,उस समय शौच से निवृत हो रहे थे |

उन्होंने मिटटी का ढेला कबीर जी की आवाज़ की दिशा में मारा |कबीर जी की आँख के पास ढेला लगा |जब दिन अच्छी तरह निकल आया तो कबीर जी ने पंडित जी से पूछा- पंडित जी ,आपने मेरी राम राम का जवाब नहीं दिया ,आखिर क्यों ? 

       कबीर जी ने पंडित जी से पूछा- पंडित जी ,आपने मेरी राम राम का जवाब नहीं दिया ,आखिर क्यों ? 

पंडित जी बोले-मैं उस समय अपवित्र अवस्था में था |अपवित्र अवस्था में किसलिए थे ?

पडित जी बोले-मैं उस समय शौचादि से निवृत हो रहा था |कबीर जी बोले-अपवित्र अवस्था से आप पवित्र अवस्था में कैसे आये ?

पंडित जी बोले-शौच आदि से निवृत होकर मैंने हाथ धोये इस प्रकार पवित्र हो गया |        

लोटे के पानी से हाथ धोने से आप पवित्र कैसे हो गये ?क्या साबुन से हाथ धोये थे ?

साबुन उस समय उपलब्ध नहीं थी इसलिए मैंने मिटटी उठायी और स्वच्छ हो गया |

मिटटी से आप कैसे पवित्र हो गए जबकि मिटटी से आदमी गन्दा होता है ?क्या आपने किसी को गंगाजल से स्नान के बाद किसी को शरीर से मिटटी रगड़ते देखा है ?

पंडित जी कबीर जी को परास्त करने आये थे ,अपनी विद्वता की धाक ज़माने आये थे लेकिन धाक तो क्या जमनी थी, अपनी इज्जत बचानी तक मुश्किल हो रही थी क्यूंकि पंडित जी का अहंकार उनकी विद्वता पर भारी पड़ने लगा था लेकिन अहंकार से छुटकारा कैसे हो ?

जबकि कबीर जी हरि से बिलकुल सहज थे |वे कहते थे-पाछे लागा हरि फिरे कहत कबीर -कबीर |

          पंडित शब्द ही अहंकार का पोषण करता है अन्यथा सबके शरीर तो एकसमान पाँच तत्वों से बने हैं तो कोई ऊँचा और नीचा कैसे ?

          पंडित जी किसी ब्रह्मज्ञानी सन्त के शरणागत हुए होते तो हरि से साक्षात्कार हो गया होता और अहंकार पैदा ही न हुआ होता लेकिन बीच में जाति- पाँति की बड़ी दीवार थी | 

         पंडित जी अहंकार के रास्ते पर चल तो पड़े थे लेकिन सत्गुरु समझाते हैं-हर जी को अहंकार न भावै |सच्ची बात तो यह है कि सहजता में सब समाधान हैं और अहंकार में हर प्रकार की उलझनें हैं |अहंकार को खत्म करने का एक ही उपाय है-निरंकार को अपने अंग-संग मह्सूए करते हुए सहज जीवन जीना |

- रामकुमार 'सेवक'