हिंदी फिल्मो की खूबसूरत खलनायिका शशिकला..

पिछले दिनों हिंदी फिल्मो की खूबसूरत खलनायिका शशिकला का 88  वर्ष की आयु में ,मुंबई में ,निधन हो गया | हिंदी फिल्मो में खलनायिकाओं की कमी नहीं है |ललिता पवार,हेलेन,बिंदु,आदि को इस श्रेणी में रखा जा सकता है |

इन भूमिकाओं के अपने चैलेंज होते हैं शायद यही कारण है कि अभिनेत्री फरीदा जलाल ने एक साक्षात्कार में ऐसी भूमिकाओं के प्रति लगाव ज़ाहिर किया |उनका मानना है कि यदि उन्हें किसी फिल्म में खलनायिका की भूमिका मिली होती तो दर्शक उनके अभिनय का बिलकुल नया पक्ष देखते | शशिकला का इस बारे में कहना था खलनायिका को नायिका से ज्यादा आकर्षक होना चाहिए |इसके पीछे उनका तर्क था कि तभी तो नायक नायिका को छोड़कर उसके पीछे भागेगा |आइये उनके जीवन पर एक नज़र डालें |

शशिकला का जन्म महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ था। उनका परिवार खूब अमीर था और पिता बड़े बिजनसमैन थे। लेकिन शशिकला को नाचने-गाने और ऐक्टिंग करने का शौक था। इसलिए सोलापुर जिले के कई शहरों में शशिकला ने कई स्टेज शोज किए थे।  

 शशिकला ने 100 से भी ज्यादा फिल्मों में सपॉर्टिंग ऐक्ट्रेस का रोल किया था। 60 और 70 के दशक में हिंदी सिनेमा में शशिकला ने अपनी यादगार भूमिकाओं से सबको हैरान कर दिया था।

उस वक्त शशिकला की उम्र मात्र 5 साल की थी। लेकिन किस्मत में न जाने क्या लिखा था। एक वक्त ऐसा आया जब शशिकला के पिता कंगाल हो गए और गुजारा करना भी मुश्किल हो गया। तब शशिकला के पिता परिवार को मुंबई ले आए थे।

बताया जाता है कि शशिकला के पिता को उनके भाइयों से भी धोखा मिला और इस कारण उनकी हालत और भी खराब हो गई थी।

विविधभारती (आकाशवाणी )पर दिये गए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि जैसे-जैसे मैं सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गयी,परिवार बिखरता चला गया |उन्होंने कहा कि उनके पति ने बच्चों का बहुत ख्याल रखा और इसके लिए उन्होंने उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की |उन्होंने अपने इंटरव्यू में दादामुनि अशोक कुमार और वी .शांताराम को अपना गुरु बताया |

पृथ्वीराज कपूर साहब की महानता बताते हुए उन्होंने कहा कि मुझे उनके साथ सिर्फ एक फिल्म में काम करने का मौका मिला |विडंबना देखिये कि मैं सेट पर तीन बजे पहुंची जबकि पापा जी सुबह आठ बजे से सेट पर पहुंचे हुए थे |मेरे देरी से पहुँचने का कारण मेकअप था ,जिसे उस भूमिका के अनुरूप बनाने में इतना समय लगा लेकिन पापा जी ने कोई नाराज़गी नहीं जताई ,यह उनकी महानता थी |     

शशिकला ने करीब 100 बॉलीवुड फिल्मों में काम किया। फिलहाल वो लंबे समय से बॉलीवुड से दूर थी। उनके जीवन में अनुशासन का बहुत ऊंचा स्थान था |इसका एक कारण तो यह था कि काम बहुत मुश्किल से मिलता था और पूरा स्टाफ अनुशासित रहता था |अनुशासन की शिक्षा उन्हें विशेषकर वी.शांताराम से मिली ,जिनका अनुशासन ज़बरदस्त था |उनके सामाजिक सरोकार भी ज़बरदस्त थे |  

शशि का पूरा नाम शशिकला जावलकर है। शशि एक मराठी परिवार से ताल्लुक रखती थी। 

शशिकाला की जिंदगी काफी-उतार चढ़ावों भरी रही है। उन्होंने फिल्मों में हीरोइन के साथ-साथ नेगेटिव किरदार भी निभाए हैं। कहा जाता है कि अभिनेत्री बनने से पहले शशिकला ने मजबूरी में लोगों के घरों में नौकरानी का काम किया और काफी संघर्ष  के बाद उन्हें फिल्मों में काम मिला। 

मुंबई में पूरा परिवार कुछ जान-पहचान के लोगों के यहां रहा और मुश्किल से दिन गुजारे। वहीं शशिकला काम की तलाश में इधर से उधर भटकती रहीं। शशिकला की जिंदगी में मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात उस जमाने की चोटी की नायिका नूरजहां से हुई।

उस वक्त नूरजहां के पति शौकत हुसैन रिजवी 'ज़ीनत' के नाम से एक फिल्म बना रहे थे और नूरजहां के कहने पर उन्होंने शशिकला को कव्वाली के एक सीन में ले लिया। इसके बाद तो उनके करियर की दिशा ही बदल गई।उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि-मेरी मातृभाषा मराठी है और उर्दू मैं नहीं जानती थी |फिल्म में काम करने लिए उर्दू सीखना जरूरी था |बचपन का दौर था |हमें कहा गया कि जो लड़की सबसे पहले उर्दू सीखेगी,उसे बीस रूपये का इनाम दिया जायेगा |और सबसे पहले   उर्दू सीखकर बीस रूपये मैंने जीते |उन बीस रुपयों से ही उस साल हमारे घर में दीवाली मनी |इस प्रकार उन बीस रुपयों का महत्व मेरे लिए बहुत ज्यादा है |    

60 के दशक में शशिकला ने कई यादगार फिल्में कीं। उस दौर में जहां अन्य हीरोइनें पर्दे पर हीरो के साथ रोमांस कर रही थीं, वहीं शशिकला ने अपने लिए एक अलग रास्ता चुना और ऐसी अमिट पहचान बनाई, जो लोगों के दिलों में हमेशा के लिए बस गई।उन्होंने गुजराती और तमिल फिल्मो में भी काम किया |काम के प्रति ऐसी लगन कि भाषा को उन्होंने दीवार नहीं बनने दिया |  

उनके पति का  नाम ओमप्रकाश सहगल था जो कि के .एल .सहगल के रिश्तेदार थे लेकिन बहुत जल्दी आपस में झगडे शुरू हो गए और उन्होंने अपने पति को छोड़ दिया |वे विदेश जाकर बस गयीं |दोनों बेटियां पति के ही पास रहीं | 

इस घटना को वे एक गलती  मानती थीं |उनका कहना था-विनाशकाले विपरीत बुद्धि |विदेश में जिस आदमी के साथ वे रहीं उसने उन्हें धोखा तो दिया ही उन्हें प्रताड़ित भी किया |

वहां से किसी तरह जान बचाकर वे भारत आईं |वे कलकत्ते चली गयीं और मदर टेरेसा के सेवा कार्य से जुड़ गयीं |नौ साल तक रोगियों की सेवा करके उन्होंने जैसे अपनी आत्मा को स्वच्छ कर लिया |

फिर वे मुंबई आ गयीं और फिल्मो में काम करने लगीं |   

ताराचंद बड़जात्या की फिल्म 'आरती' में निभाए नेगेटिव रोल के लिए शशिकला को फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला।2007  में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया | 

इस फिल्म के बाद तो शशिकला सपॉर्टिंग ऐक्ट्रेस के तौर पर मशहूर हो गईं और उन्हें इसी तरह के रोल मिलने लगे। उन्होंने 'अनुपमा', 'फूल और पत्थर', 'आई मिलन की बेला', 'गुमराह', 'वक्त' और 'खूबसूरत' जैसी फिल्में कीं। फिल्म 'बादशाह' में शशिकला ने शाहरुख खान की मां का रोल किया था। इस दौर में वे 'कभी खुशी कभी गम', 'मुझसे शादी करोगी' और 'चोरी चोरी' जैसी फिल्मों भी दिखीं।

फिल्मों के अलावा शशिकला ने टीवी की दुनिया में भी काम किया। वह 'जीना इसी का नाम है', 'सोन परी' और 'दिल देके देखो' में नजर आईं। 

शशिकला के दिन उनकी छोटी बेटी,दामाद और उनके बच्चों के साथ सुख से गुजरे लेकिन अपनी बड़ी बेटी के देहांत से वे गहरा आघात महसूस करती हैं |उनकी बड़ी बेटी का कैंसर से देहांत हो गया था |

स्वाभाविक अभिनय और अपने पेशे के प्रति लगन के लिए उन्हें सदा याद किया जायेगा |प्रगतिशील साहित्य की ओर से उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि | 

 - कुणाल