शाम का समय था |घर जाने के लिए दफ्तर से निकला ही था, सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था |नीचे कुछ मजदूर काम कर रहे थे |सामने एक मजदूर बैठा हुआ था ,कपडे और हाथ - पैर सीमेंट में सने,साथ ही उसकी बीवी भी काम में लगी हुई थी |
अच्छा-खासा फर्श था ,जो तुड़वा दिया गया था |मजदूर फर्श तोड़ रहे थे तो मेरे एक साथी ने कहा-अच्छा-खासा फर्श तोडा जा रहा है,इस बारे में कुछ कहिए |
मैंने कहा-नेता जी ने कहा है-सबका साथ ,सबका विकास |यह सुनकर उन्होने एक रहस्य्मयी हंसी का योगदान दिया और आगे बढ़ गए |
इस समय मैं उन्हीं सीढ़ियों पर था |रोज की पहचानी सीढ़ियां थीं |रोज के पहचाने रास्ते थे |मेरा पैर सीधा उस टाइल पर पड़ा ,जिसे वह मजदूर महिला जमा चुकी थी |टाइल अभी जमाया है,यह मुझे मालूम नहीं था लेकिन पैर मैंने रख दिया और आगे बढ़ने लगा |
उस महिला मजदूर ने मुझे घूरा ,बुरा-भला कहना शुरू किया |उसकी नज़र में टाइल पर पैर रखकर मैंने अक्षम्य गलती की थी | उस पर उसके पति और उसे दोबारा मेहनत करनी पड़ेगी |
वह झुंझलाई आवाज़ में,अपनी भाषा में कुछ बोल रही थी |और मुझे लग रहा था कि यह मुझे अपशब्द बोल रही है |
यह सुनकर मुझे बुरा लगा और मैंने भी चलते-चलते कुछ कहा और बाहर निकल गया |
दरअसल मुझे बस पकड़नी थी और बस पकड़ने के लिए जहाँ जाना था उसके लिए पंद्रह मिनट जरूर लगते इसलिए दिमाग हड़बड़ी में था ,जिसके लिए मैं नयी-नवेली टाइल को नज़रअंदाज़ कर गया था |झुंझलाई सी वह महिला मजदूर जो बोल रही थी वह बात जो मुझे सही तरह से मुझे समझ भी नहीं आयी,मेरे अहंकार को नागवार लग रही थी इसलिए न चाहते हुए भी कुछ बोल गया |
पहले ये मुझे मुझे अपने समान लगा करते थे तो मैं इनसे उलझ जाया करता था लेकिन पत्नी ने भी और मेरे सहकर्मियों ने समझाया कि छोटे लोगों के मुँह नहीं लगना चाहिए तो मैंने अपनी आदत बदलने की कोशिश की लेकिन आज भूल गया कि ये छोटे लोग हैं |
हमारे घर में एक नौजवान स्वीपर आता है |वह दरवाजेको ऐसे पीटता है जैसे उससे उसकी पुरानी दुश्मनी हो |मुझे अक्सर महात्मा गाँधी की याद आ जाती है ,जिनका एक प्रसंग है कि उनके पास कोई मिलने आया तो उसने दरवाजे को बहुत असभ्य ढंग से धक्का मारा |महात्मा गाँधी ने कहा -पहले इस दरवाजे से माफी मांगकर आओ |
वह स्वीपर रोज ही दरवाजे के साथ यह दुर्व्यवहार करता है और मैं उसे महात्मा गाँधी का प्रसंग सुनाने की हिम्मत नहीं कर पाता| उसके व्यवहार को मैं कतई नापसंद करता हूँ लेकिन हमारे घर की गन्दगी उठाकर वह हमारी सेवा ही तो करता है इसलिए ,इस कारण मैं उसे छोटा आदमी नहीं मान सकता लेकिन बहुमत की बात माननी ही पड़ती है इसलिए मैं उससे बात तक नहीं करता क्यूंकि उसे मैंने हमेशा घृणा की मुद्रा में देखा है इसलिए उससे हमदर्दी जताना भी खतरनाक ही लगता है ,डांटने की बात तो कौन कहे|
बहरहाल उस मजदूर औरत के कटुवाक्यों को पीछे छोड़कर मैं सामने से आ रही बस में चढ़ गया |
बस में चढ़ते ही अंतरात्मा से आवाज़ आयी -उस मजदूर औरत को उस टाइल को दोबारा चिपकाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी | अतिरिक्त काम के कारण हो सकता है उसे घर पहुंचने में देरी हो | उसके बच्चे अपनी माँ की प्रतीक्षा कर रहे होंगे |अनजाने में ही सही, मुझसे गलती हुई जरूर है |
मुझे लगा कि वाकई गलती हो गयी है लेकिन मजदूरों से क्षमा तो नहीं मांग सकते |
भीतर से आवाज़ आयी -चलो क्षमा नहीं मांग सकते लेकिन तुमने तो उन्हें बुरा-भला भी कहा |
मैंने ह्रदय से परमपिता परमेश्वर से क्षमा मांगी |
गाड़ी अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी लेकिन मेरे दिमाग में वह मजदूर दम्पति ही समाया हुआ था |
केंद्रीय टर्मिनल के बस स्टैंड पर मैं उतर गया लेकिन उस महिला श्रमिक की बातों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा |मुझे वो गाना याद आ रहा था-
आदमी जो लेता है, आदमी जो देता है
ज़िन्दगी भर वो दुआएं पीछा करती हैं |
मैं अब भी ह्रदय से प्रार्थना कर रहा था कि प्रभु मुझे बद्दुआओं से बचाना |
मैं समय से बस स्टैंड पर पहुँच गया था |स्टैंड पर पहुंचकर मैंने पानी पिया और और जिधर से अगली बस आनी थी ,उधर देखने लगा |
उधर से एक सरदार जी आये और मेरी बगल में बैठ गए |वे बार-बार घड़ी में समय देख रहे थे जैसे परीक्षा शुरू नहीं हो रही हो और वक़्त बीतता जा रहा हो |
केंद्रीय टर्मिनल देश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थल है |राष्ट्रपति भवन सीधे हाथ पर है |संसद भवन उसके सामने है |इसके बावजूद इस बस स्टैंड पर कोई वी आई पी नहीं है |सब आम आदमी हैं |
बस स्टैंड के पीछे एक आदमी साइकिल का पंक्चर ठीक कर रहा है |उसके एक तरफ एक आदमी चाय बना रहा है |दीवार किसी विशिष्ट आदमी की कोठी की है जिस पर केतली रखकर यह आदमी अपनी चाय की दुकान चला रहा है |
गर्मी हो या सर्दी या बारिश का मौसम हो,आम आदमी मजबूत है |आम हिंदुस्तानी आदमी काफी मेहनती होता है |पुलिस वाले उससे हफ्ता वसूल करते हैं ,सरकार उससे टैक्स वसूलती है |टैक्स भी बढ़ता रहता है और हफ्ता भी ,इसके बावजूद वह अपना पेट भर ही लेता है |बाजार में महंगाई बढ़ती है तो वह अपने स्वेटर की खरीद अगले साल पर टाल देता है |इस साल वह अपने पुराने स्वेटर से ही काम चलाता है | जूता न हो तो हवाई चप्पल से भी टाइम काट लेता है |कोशिश करता है कि किसी प्रकार उसके बच्चे पढ़-लिख जाएँ ताकि वह बुढ़ापे में चैन की रोटी खा सके |
उस चायवाले की भीगती केतली देखकर मेरा ध्यान दोबारा उस मजदूर औरत की तरफ चला गया ,जो कि थोड़ी देर पहले मुझ पर बड़बड़ा रही थी |
उसका भी घर होगा ,भले ही झुग्गी या झोपड़ी के रूप में होगा लेकिन घर तो होगा |इन लोगों का घर बारिश में और भी असुरक्षित हो जाता है क्यूंकि छतों से पानी टपकता है |
इस समय तक रोज गाड़ी आ जाती है लेकिन आज अभी तक नहीं आयी |सरदार जी भी बड़ी बेसब्री से घड़ी देख रहे थे |
रकाबगंज गुरद्वारे की तरफ से कुछ लोग आये |कुछ आदमी थे तो कुछ औरतें |उनमें से कुछ नंगे पैर चल रहे थे |उन्हीं में से मुझे सुरजीत सिंह नज़र आ गया |सुरजीत सिंह मेरा पुराना मित्र है |सातवीं कक्षा में हम दोनों एक साथ थे |
अरे सुरजीत ,मैंने आवाज़ लगायी |
अरे समीर,तू इस समय यहाँ ?सुरजीत ने कहा |
बहुत दिन बाद मिला यार,मैंने कहा |
वह बोला-असल में यार ,दो वक़्त की रोटी का इंतज़ाम करने में ही दिन और महीने बीत जाते हैं |
बच्चे कैसे हैं,मैंने बात काटकर कहा |
तू खुद समझ लेना लेकिन एक सवाल का जवाब तो दे यार -
दफ्तर में काम करने के बाद आदमी किसी सवाल का जवाब देने की स्थिति में नहीं होता लेकिन मैंने पूछा-बोलो |
उसने कहा-क्या किस्मत सचमुच होती है ?
यार ,मुझे नहीं पता लेकिन होती होगी ,नहीं तो अंग्रेजी,हिंदी व् उर्दू आदि सब भाषाओँ में किस्मत से सम्बंधित शब्द क्यों होते ?शब्द हैं तो इसका मतलब अर्थ भी है |अर्थ की बुनियाद पर ही तो शब्दों का ढांचा खड़ा होता है ,मैंने कहा |
इसका मतलब है कि तू मानता है कि किस्मत होती है |सुरजीत बोला
हां,यही समझ ले ,मैंने पीछा छुड़ाने की गरज से कहा क्यूंकि गाड़ी यदि न मिली तो घर पहुँचने में परेशानी होगी इसलिए बातचीत को लम्बा खींचना ठीक नहीं था |
फिर तो मैं यही कहूंगा कि बच्चों की किस्मत ख़राब है ,उसने मायूसी से कहा |
सुरजीत ज़िंदादिल आदमी रहा है |आज पहली बार उसके मुँह से मैं मायूसी की बात सुन रहा था इसलिए मुझे लगा कि सुरजीत का दर्द सुना जाना जरूरी है |
मैंने कहा-सबकी अपनी किस्मत होती है |बच्चे तो भगवान के रूप होते हैं इसलिए उनकी किस्मत खराब हो ही नहीं सकती |
बच्चों की फीस भरने के लिए पैसे नहीं हैं तो फिर उनको खुशकिस्मत कैसे कहूँ ,सुरजीत दुःख से डूबे स्वर में बोला |
क्यों क्या हुआ ?मैंने चिंता के स्वर में कहा
जी एस टी से पहले नोटबंदी हुई |नोटबंदी ने काम-धंधा ठप्प कर दिया |बैंकों की लाइन में लगे -लगे घंटों बीत जाते थे और आखिर में पैसा ख़त्म हो जाता था |इस समस्या ने बहुत रुलाया |आप तो जानते ही हो,पडित जी ,कारोबार चलाना कितना मुश्किल काम है |छोटा सा काम भी बिना चढ़ावा चढ़ाये नहीं होता |कारीगरों और कामगारों की अपनी दिक्कतें हैं |नोटबंदी के कारण मेरे सामने गृहस्थी की गाड़ी खींचने की दिक्कत आ गयी |कामगारों और कारीगरों की संख्या घटाई ताकि लागत में कमी आये |नए चलन के नोट मिलने में दिक्कत आ रही थी तो आर्डर भी कम हो गए और इस प्रकार धंधा मंदा हो गया |जी एस टी के कारण कई फॉर्म भरने पड़ते थे |वो कंप्यूटर का काम था तो उन लोगों के पास जाना पड़ता था अंततः धंधा छोड़ना पड़ा |अब नए काम की तलाश में हूँ |
तेरे पुराने कारीगरों और कामगारों की क्या स्थिति है ?मैंने पूछा
पेट तो भरना ही पड़ता है इसलिए कुछ न कुछ काम तो कर ही रहे होंगे |सच बताऊँ तो जब मैं खुद अपनी समस्याओं से पार नहीं पा सका तो उन बेचारों के बारे में सोचकर भी क्या करूँ|
सुरजीत ने लाचारी से कहा |
अरे पंडित जी,मेरी बस तो आ गयी ,कहकर सुरजीत सामने से आ रही बस में चढ़ आ गया |
मुझे बस स्टैंड पर आये आधे घंटे से ज्यादा का वक़्त हो चुका था लेकिन बस अब तक आती दिखाई न दी |यह एकमात्र ऐसी बस है जो मुझे मात्र पंद्रह रूपये में घर पहुंचा देती है |पहले साल तक मैं मेट्रो से ही आया जाया करता था लेकिन नए किराये आने के साथ मेट्रो का ए सी सफर ,मुझ जैसे आदमी के लिए विलासिता की श्रेणी में आ गया |
और मैं फिर नॉन ए सी बस की तरफ मुड़ गया |
सुबह तो दफ्तर जल्दी आना होता है तो मेट्रो ही पकड़ता हूँ |एक आध बार बस भी ली तो दफ्तर पहुँचने के लिए लेट हो गया ,इसलिए सोचा कि घर में तो लेट जा ही सकता हूँ तो वही पुरानी डी टी सी बसों का सहारा लिया |
कभी कभी यह सहारा भी दगा दे जाता है, जैसे आज दे गया |
थोड़ी देर में बस आती दिखाई दी लेकिन जब नजदीक आयी तो पता लगा कि यह वह बस नहीं है |यह बस मुझे घर तक तो नहीं ले जा सकती लेकिन पटेल चौक तक तो ले ही जा सकती है |
मैंने आव देखा न ताव ,बस में चढ़ गया |रोजाना बीस रूपये में घर पहुँचता था आज इकतालीस रूपये में घर पहुंचा और रोज के समय से आधा घंटा देर से |
उस मजदूर दम्पति ने नयी-नयी टाइल चिपकाई थी और मैं गलती से उस पर चढ़ गया था |उस औरत ने जो मुझे बुरा-भला कहा ,मुझे याद आया |वह बेचारी अपने बच्चों के पास देरी से पहुंची,मेरी लापरवाही के कारण |
इस हिसाब से मैं भी अपने बच्चों के पास देर से पहुंचा |अच्छा हुआ तुरंत न्याय हो गया |बेशक अनजाने में हुई लेकिन गलती तो गलती है इसीलिए उसका दंड भी मिला |इसके लिए जो आपत्ति मन में थी ,उसे साफ़ करके मैं चाय पीने लगा |
कबीरदास जी ने कहा है-
दुर्बल को न सताइये ,जाकी मोटी हांय,
मरी खाल की सांस से लोह भसम होइ जाय
|
शुक्र है मैं तो सही - सलामत हूँ |ह्रदय से उस मजदूर दम्पति के लिए क्षमा याचना निकली |
-रामकुमार सेवक