लिंडसे जॉनसन की धमकी लाल बहादुर शास्त्री जी की बहादुरी को विचलित नहीं कर पायी |

lal bahadur shashtri1964 - 65 के दौर में लालबहादुर शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री थे तब अनाज का उत्पादन बहुत कम था | हम सब इस तथ्य से भली-भांति परिचित हैं कि 1962 में भारत के साथ चीन ने विश्वासघात किया था जिसका हमारे वीर सैनिकों ने हिम्मत से जवाब दिया | स्त्री जी ने किसानो और सैनिकों को पूरे मन से उत्साहित किया और नारा दिया-जय जवान जय किसान |

उस समय जमाखोरी की बीमारी सामने आयी |वास्तव में फसल काटने के बाद किसान के पास उसे रखने का पर्याप्त स्थान नहीं होता और उन्हें अनाज बेचना पड़ता है | तत्कालीन व्यापारियों ने किसान की इस मजबूरी का फायदा उठाया और किसान से अनाज खरीदकर गोदामों में भर लिया और मांग बढ़ने की इंतज़ार करने लगे ताकि मनमाने मूल्य पर अनाज बेचें और मुनाफा कमाएं | पूंजीपतियों के लिए जनकल्याण का कोई अर्थ नहीं है चूंकि वह तो बाजार में लाभ कमाने के लिए आया है | वोट मांगने वाले ही यदि कल्याण कार्यक्रमों से हाथ खींच लेंगे तो प्रजातान्त्रिक शासन का कोई अर्थ नहीं रह जाता |

यह बहुत गहरी चाल थी लेकिन शास्त्री जी ने उसका उपाय यह निकला कि उन्होंने घोषणा करवा दी कि हम अमेरिका गेहूं खरीद रहे हैं |कल शाम तक अमेरिका से अनाज भारत पहुँच जायेगा इसलिए लोग घबराएं नहीं |

यह घोषणा सुनते ही सेठों ने अनाज गोदामों से बाहर निकालकर बेचना शुरू कर दिया और समस्या ख़त्म हो गयी |

मैं तो उस समय बच्चा रहा होऊंगा लेकिन हरित क्रांति पर जो निबंध हमारी स्कूली किताबों में थे उनमें यह किस्सा मैंने पढ़ा है |ये वो लाल बहादुर शास्त्री थे जिन्होंने देश को संयम का पाठ पढ़ाया |वे बेहद ईमानदार थे और महात्मा गाँधी के सच्चे अनुयाई |

अनाज की कमी का मुक़ाबला करने के लिए उन्होंने पहला प्रयोग अपने ही घर में किया |अपनी पत्नी ललिता जी से उन्होंने कहा कि सप्ताह में एक दिन क्या हमारे बच्चे एक दिन बिना भोजन के रह सकते हैं ?

shashtri ji

उस दिन रात को उन्होंने डिनर नहीं बनाने का फैसला किया |इतिहास बताता है कि उनके बच्चों ने भी इस संयम में उनका साथ दिया और अगले दिन उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान से देश का आह्वान किया सप्ताह में इक दिन,एक समय का भोजन छोड़ दें |

यह शुद्ध गांधीवादी प्रयोग था |इतिहास बताता है कि देश ने उनके आह्वान का सम्मान किया |यह इसलिए नहीं था कि यह देश के प्रधानमंत्री का आह्वान था बल्कि ऐसे महापुरुष का आह्वान था जिसकी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं था |जो कठोर निर्णय सबसे पहले स्वयं अपने ऊपर लागु करता था |लिंडसे जॉनसन की धमकी लाल बहादुर शास्त्री जी की बहादुरी को विचलित नहीं कर पायी | उन्होंने पाकिस्तान के आक्रमण का मुहतोड़ जवाब दिया |


- रामकुमार सेवक