पहेलियों की भारतीय परंपरा और ब्रह्मज्ञान

पहेलियों का अपना इतिहास है |जैसे वो गीत है -

ताल मिले नदी के जल में,नदी मिले सागर में,सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना...

यह गीत फ़िल्मी है लेकिन सवाल एकदम सत्य है | 


एक और गीत है -

दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई ,तूने काहे को दुनिया बनाई...?


यह सवाल भी सत्य है जबकि गीत फ़िल्मी है |इस प्रकार आप किसी गीत को यह कहकर ख़ारिज नहीं कर सकते कि फ़िल्मी है |


द्वितीय निरंकारी सत्गुरु बाबा अवतार सिंह जी  कहा करते थे कि हम हर किसी से सीख सकते हैं इसलिए किसी के भी गुण ग्रहण करने चाहिए |इस बारे में एक प्रसंग भी है लेकिन आज उस प्रसंग की बात नहीं करूंगा |बात सिर्फ इतनी सी है कि गुण अथवा अच्छा विचार चाहे फ़िल्मी गीत से ही क्यों न मिले .ले लेना चाहिए | 

दुनिया बनाने वाले अर्थात ईश्वर ने  दुनिया किसलिए बनायीं, इस पर विचार करता हूँ तो मुझे एक और गीत याद आ जाता है | बचपन में यह गीत भी खूब सुना और गया भी है -


दुनिया बगीचा, किसने है सींचा, छिप के खड़ा है माली - पहचानो |


निष्कर्ष यह निकलता है कि दुनिया बनाने वाले माली की पहचान करनी चाहिए इसीलिए मालिक ने इस दुनिया को बनाया है |


यहाँ इंसान चालाकी पर उतर जाता है और अपना निष्कर्ष निकाल लेता है कि ईश्वर को किसने देखा है, इसके लिए तो लाखों जन्म लेने पड़ते हैं |निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी कहा करते थे कि क्या आपको पता है कि इससे पहले आप कितने जन्म ले चुके हैं ? यदि नहीं तो क्या यह नहीं हो सकता कि यही वह जन्म हो,जिसमें प्रभु का ज्ञान होना हो |    


यहाँ भी मुझे एक फ़िल्मी गीत याद आ रहा है ,जिसमें गीतकार ने लिखा कि - 

हे रोम - रोम में बसने वाले राम,जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी मैं तुझसे क्या माँगूँ |


जो रोम-रोम में रमा हुआ है उसके लिए कितने जन्म चाहिए ?चलो इसे एक कमजोर तर्क मानकर ख़ारिज करने वाले धार्मिकों की मनोस्थिति को सामने रखकर विचार करते हैं |


वास्तव में धार्मिकों का एक बड़ा वर्ग जीवन में प्रभु मिलन की बात को असंभव मानता है इसलिए मैं एक और प्रमाण प्रस्तुत करना चाहता हूँ ,जो कवि की कल्पना नहीं,एक भक्त का अनुभव ,उसकी भक्ति रचना है |भक्त कवयित्री  मीराबाई याद आती हैं जिन्होंने अपनी कविताओं में स्पष्ट कहा-


पायो री मैंने राम रतन धन पायो |

वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुर कर किरपा अपनायो | 


उन्होंने राम का अर्थात प्रभु का ज्ञान सत्गुरु की कृपा से प्राप्त लिया |इसका अर्थ है कि परमेश्वर के ज्ञान के लिए हज़ारों जन्म लेने की बात सत्य नहीं है |


और अंत में मुझे एक और पहेली याद आ रही है -बाबा हरदेव सिंह जी ने अपने एक प्रवचन में अमीर खुसरो की पहेली को याद किया |बाबा हरदेव सिंह जी ने अपने एक प्रवचन में अमीर खुसरो की पहेली को याद किया |उन्होंने कहा कि-पहेली है-बीसों का  सिर काट दिया,न मारा न खून किया |बाबा जी ने कहा कि पहेली को सुलझाने की भी रमज़ है |सब सोच रहे थे कि बीस सिर काट दिए गए लेकिन लोग न तो मरे और न किसी का खून हुआ ,यही आश्चर्य है | बाबा जी ने कहा कि दस नाखून हाथों के और दस पैरों के ,बीस नाखून काटे गए और कवि ने लिखा पहेली के रूप में कि बीस सिर काटे गए और न कोई मारा न खून निकला | यह बात कहने का ढंग है |यह पहेली जब बाबा जी ने सुलझाई तो हम सबको बहुत अच्छा लगा |   


इस प्रकार पहेलियाँ कहने -सुनने की लम्बी परम्परारा रही है |मेरी माँ को बहुत पहेलियाँ याद थी |सारे बहन -भाई रात को सोने के समय उनके पास चले आते थे |मैं सबसे छोटा था तो उनके पास ही सोता था ,यह समझ लीजिए कि भारत में जब टी.वी.अवतरित नहीं हुआ था तो पहेलियाँ जनसामान्य के मनोरंजन की बड़ी माध्यम थीं |

इस प्रकार जनसाधारण को  पहेलियाँ शिक्षित भी करती थीं तथा सागर कौन से जल में मिलेगा,यह खोजने को प्रेरित भी |

- रामकुमार सेवक