और ऐसा लगा जैसे उस पहाड़ पर जंगल में मंगल हो गया हो |

    बाबा हरदेव सिंह जी मधुर स्मृतियों को याद करते हुए महात्मा ने पहाड़ पर एक दुकान संचालित करने वाले महात्मा के बारे में कहा-

    स्थानीय महापुरुषों का ध्यान था कि बाबा जी कुछ ऊपर चलेंगे तो बेहतर दृश्य देखने को मिलेंगे |

    बाबा जी ने देखा कि महात्मा की छोटी सी दुकान है लेकिन उनकी भावना अति उत्तम थी |

    लेकिन उन्हें लगता था कि बाबा जी शायद ही ऊपर आएं |गुरु और शिष्य का सम्बन्ध भावना के धागों से बुना जाता है |वास्तव में यह कोई सामान्य ही स्थान था लेकिन यहाँ के जो भक्त थे उनकी दृष्टि में यह अति उत्तम स्थान था |

    लेकिन बाबा जी के साथ जो भक्त भी स्थान -स्थान पर जाते हैं वे किसी भी स्थान का मूल्यांकन गुणात्मक दृष्टि से करते हैं |वे तुलनात्मक रूप से बेहतर मूल्यांकन कर सकते हैं |ऐसे भक्तों की दृष्टि में इस स्थान का महत्त्व अधिक न था |

    अब बाबा जी द्वारा उस स्थान से प्रस्थान करना था |प्रश्न यह था कि बाबा जी के पास बहुत ही सीमित समय होता है,इस दृष्टि से उनके लिए स्थानों का चयन अचिक बेहतर दृष्टि से किया जाना चाहिए |लेकिन भक्ति में भक्त की दृष्टि और गुरु के भाव में जो चयन की श्रेष्ठता होती है |उसमें भावनाओं का महत्व बहुत अधिक है | 

    जो महात्मा वहां दुकान करते थे वे उतने सक्षम नहीं थे कि प्रबंधक उनकी दुकान का चयन सत्गुरु के आगमन के लिए करें लेकिन गुरु की दृष्टि में किस शिष्य का कौन सा स्थान है यह तो गुरु ही बेहतर जानता है |

     बाबा हरदेव सिंह जी की दृष्टि में तो शिष्य की भावनाओं का ही महत्त्व था |उन्होंने उस महात्मा की दुकान में न सिर्फ चरण डाले बल्कि उसकी श्रेष्ठ भावनाओं को पूर्ण महत्त्व दिया |

    उनके हृदय के सब भाव परिपूर्ण हुए और ऐसा लगा जैसे उस पहाड़ पर जंगल में मंगल हो गया हो |

रामकुमार सेवक