शिवजी मुझे क्यों आकर्षित करते हैं ?

 रामकुमार सेवक 

           न जाने क्यों शिव मुझे आकर्षित करते हैं ?इस बारे में सोचता हूँ तो पाता हूँ कि शिव में कई ऐसे तत्व हैं जो कि परस्पर विरोधी हैं |जैसे उनके मस्तक पर चन्द्रमा है और जटाओं में गंगा |वे अर्द्धनारीश्वर हैं और साथ-साथ नीलकंठ भी हैं |समुद्रमंथन के परिणामस्वरूप निकले हलाहल विष को उन्होंने ग्रहण कर लिया लेकिन कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया इसीलिए कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाये |         

       वास्तव में  शिव निराकार हैं |वास्तव में शिव कोई आकार हो ही नहीं सकते |शिव जी का जो रूप दिखाया गया है उसके अनुसार उनके मस्तक पर चन्द्रमा विराजमान है |हम जो इस पृथ्वी पर रहते हैं ,भली भाँति जानते हैं कि चन्द्रमा एक पृथक धरती है |

        उनके सिर पर लम्बी जटाये हैं |उन जटाओं के बीच में से ही गंगा प्रवाहित हो रही है |मैं जब पहली बार गंगा स्नान के लिए गढ़मुक्तेश्वर गया था ,बचपन में ,तब भी मुझे इस तथ्य का ज्ञान था कि गंगा जी की धारा के बीच में ही चन्द्रमा भी विराजमान होना चाहिए |

         चन्द्रमा रात्रि में ज्यादातर दीखता है ,उस दृष्टि से शिवजी भी आस-पास ही होने चाहिए |शिवजी को यदि शरीर मानेंगे तो हम उन्हें सीमित करने का पाप करेंगे |

         मेरी इस धारणा का पहला आधार तो यही है कि वे चन्द्रमा को मस्तक पर आधारित कर लेते हैं |इस प्रकार उनकी शक्ति असीम है | पूर्व मंत्री और कश्मीर रियासत  के पूर्व राजकुमार डॉ.कर्ण सिंह जी को मैंने निरंकारी मिशन के एक कार्यक्रम में,जो कि कुछ वर्ष पहले इंडिया हैबिटैट सेंटर में हो रहा था ,में मैंने सुना ,निरंकारी मिशन के पूर्व संरक्षक निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी के प्रति वे अपने भाव प्रकट करते हुए ,वे कह रहे थे,बाबा जी,निरंकारी मिशन तो निराकार का उपासक है लेकिन मुझे तो नटराज शिव में बहुत आनन्द आता है | 

         शिवजी के गले में सर्पों की माला ,मस्तक पर गंगा ,हाथों में डमरू और त्रिशूल |डमरू में कला है और त्रिशूल में शस्त्र और शक्ति |उनकी जटाओं से गंगा निकल रही है ,इस प्रकार शीश पर माता गंगा को धारण किये हुए हैं| ऐसे शिव का अद्भुत रूप हृदय को आह्लाद से भर देता है |वे महाक्रोधी हैं अहंकार को मारने के लिए को रौद्र रूप धारण कर लेते हैं और रुद्र कहे जाते हैं |

         दक्ष के यज्ञ में उनकी पत्नी सती ने बलिदान दे दिया लेकिन महाप्रेमी शिवजी ने सती को अपने कंधे पर उठाया और निकल पड़े |सती के अंग नीचे गिरते रहे और जहाँ-जहाँ उनके अंग गिरे वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ स्थापित  हो गए |

          शिव जी को औघड़दानी कहा जाता है | औघड़ तो वे हैं क्यूंकि भूत-प्रेत आदि सबको उनकी बारात में शामिल होने की अनुमति है | 

          इस प्रकार शिवजी मन को प्रभावित करते हैं |लेकिन लोगों की सोच काफी भिन्न है ,जैसे आदि शंकराचार्य कहते हैं और लोगों की सोच अलग होती है -विद्वान कहते हैं-मुण्डे मुण्डे मति भिन्ना |हर किसी को शिव दर्शन इतना प्रभावित नहीं करता |शिव जी की सास अर्थात दक्ष प्रजापति की पत्नी तो शिव को देखकर डर गयी थी माता पार्वती शिव के प्रति मोहसिक्त थी |