समागम के किस अंग का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा? रामकुमार सेवक

- रामकुमार सेवक 

फिछले दिनों 77  वां  वार्षिक निरंकारी सन्त समागम  हरियाणा के समालखा क्षेत्र में संपन्न हुआ था, ,जिसमें विश्व के अनेक भागों से श्रद्धालु सम्मिलित हुए |

       एक मित्र ,जो कि विधि (कानून ) के क्षेत्र में कार्यरत हैं | वे अपना अनुभव बता रहे थे कि एक न्यायाधीश ,जिन्हें समागम में आने के निमंत्रण हर वर्ष भेजे जाते थे मगर वो अक्सर आ नहीं पाते थे |

       मित्र ने उनसे संपर्क किया और उन्हें इस समागम में आने का निमंत्रण दिया |

वे समागम में आ भी गए लेकिन मित्र जानना चाहते थे कि समागम का कौन सा अंग उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावशाली लगा |

      सन्त समागम शब्द मेरी जानकारी में तब आया जब मैं 6th class में पढता था |यह अक्टूबर का महीना था |शहर में रामलीलाओं के आयोजन हो रहे थे |वास्तव में सन्त समागम शब्द का उपयोग गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रामचरित मानस में किया गया है,1973 से जब मैं निरंकारी मिशन से जुड़ा तो मैंने शहर में चल रही रामलीला की सूचना   को ध्यान से पढ़ना शुरू किया |उसी में मुझे यह चौपाई पढ़ने को मिली |

         चौपाई ने सन्त समागम शब्द की ओर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया क्यूंकि समागम शब्द इससे पहले कभी सुनने को नहीं मिला था |

        समागम क्या होता है यह जानने की जिज्ञासा हुई तो लगा कि तुलसीदास जी ने सिर्फ समागम नहीं बल्कि सन्त समागम शब्द का उल्लेख किया है इसलिए ध्यान गया कि बाबा हरदेव सिंह जी एक संस्कृत का शब्द सुनाया करते थे कि-

सन्तन के मन रहत है ,सबके हित की बात

घट घट देखे अलख को ,पूछे जात न पाँत 

ऐसे सन्तों से विचार विमर्श को ही समागम कहा गया |

       वास्तव में  मानस में जिन सन्तों का जिक्र है वे तो रामजी के जीवन काल में ही थे | लगा कि वनवास के दौरान राम जी ने अनेक सन्तों के साथ जो विचार विमर्श किया था ,वह तो विशुद्ध ज्ञान था |

  इन सन्तों में विश्वमित्र जी तो थे ही लेकिन वामदेव जी और शरभंग आदि भी थे |

मित्र को लगा कि न्यायाधीश महोदय विद्वान हैं तो निश्चय ही सन्त समागम में चल रहे सत्संग कार्यक्रम का सर्वाधिक अनुकूल प्रभाव पड़ा होगा लेकिन ऐसा था नहीं |

       मित्र ने बताया कि न्यायाधीश महोदय को लेकर मैं कैंटीन की तरफ आ गया |वहॉँ हम दोनों ने चाय ली और वहीं एक ओर खड़े हो गए |

      जिस टेबल पर हम खड़े थे उसी के दूसरी तरफ दो अन्य अज़नबी सज्जन आकर खड़े हो गये |उन्होंने भी चाय ली |अभी उसका आनन्द वे लेना शुरू कर पाते कि उनमें से एक का हाथ सामने वाले सज्जन के हाथ में पकडे कप पर लगा और पूरी चाय उनके नये सूट पर बिखर गयी |

       सज्जन बहुत ही मायूस हो गये |नए सूट पर चाय बिखर जाने के कारण दोनों लोग परेशान हुए लेकिन दोनों मिशन के पुराने महात्मा थे |लेकिन न्यायाधीश महोदय ने उन दोनों की गतिविधि को नोट किया |पहले आदमी  के सूट पर लगे चाय के चिपके हुए धब्बों को दूसरे ने अपने रुमाल से साफ़ करने की कोशिश की |इसके बाद दोनों ही कैंटीन से बाहर निकल गये |

       मैंने न्यायाधीश महोदय से समागम का प्रभाव जानने की कोशिश की |मुझे प्रदर्शनी के शानदार चित्रों और सत्संग में हो रहे विद्वतापूर्ण भाषणों पर पूरा भरोसा था लेकिन न्यायाधीश महोदय ने उन सज्जनो की बहुत प्रशंसा की जिनके नए सूट पर चाय का कप बिखर गया था और उन्होंने जरा सा भी विपरीत प्रभाव प्रकट नहीं किया था जबकि महानगरों के मोहल्लों में जरा -जरा सी बातों पर दर्दनाक खबरें सुनने-पढ़ने  को मिल जाती हैं | धन निरंकार जी