आज सुबह (06-12-2016)सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी के प्रवचन सुने |
-रामकुमार सेवक
बाबा जी ने कहा-निरंकार को मन में बसाओ |उन्होंने कहा-इसके लिए चाहिए-पक्का इरादा अर्थात जैसे अर्जुन का था ,निशाना लगाने के समय अर्थात सिर्फ चिड़िया की आँख दिखाई दे| अंत में उन्होंने कहा कि-ऐसे संत और प्रभु के बीच कोई अंतर नहीं रहता |इस अवस्था के लिए महात्माओं ने कहा है-तोहि-मोहि,मोहि-तोहि अंतर कैसा अर्थात भक्त भगवान हो जाए |
दोनों एक हो जाएँ |उसके लिए शब्द दिया गया-वननेस(Oneness) इसका अनुवाद कुछ लोगों ने एकता किया लेकिन अंत में एकत्व पर सहमति बनी|
यद्यपि वो लोग सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार नहीं करेंगे जो एकत्व और एकता को एक ही मानते हैं |लेकिन सत्य यही है कि वे एकत्व के मर्म को नहीं जानते लेकिन प्रबंध व्यवस्था की शक्तियां उन्हीं के पास हैं |
हम लोग तो शांत रहते हैं क्योंकि लोग सत्य के साथ नहीं हैं |यद्यपि परम्परा से वे सत्य के ही साथ हैं लेकिन वे सत्य को विभिन्न व्यक्तियों के साथ जोड़ते हैं और अधिकारी की बात को ही मानने योग्य मानते हैं |
सदैव अनुभव किये गए सत्य को स्वीकार करना चाहिए चाहे कहने वाला कोई भी क्यों न हो |
मेरा कहना है कि हमारा एकत्व कभी क्रोध के साथ होता है तो कभी विनम्रता के साथ |
बाबा हरदेव सिंह जी चाहते थे कि हमारा एकत्व निरंकार के साथ हो लेकिन हम में से काफी लोग उनका मर्म ही नहीं समझे और एकत्व जैसा सबसे ऊंचा शब्द मात्र नारा बनकर रह गया |
निश्चित ही बाबा जी को इससे निराश हुई |जो समय-समय पर उनके प्रवचनों में फूटकर बाहर भी आती रही लेकिन उनकी अपनी मर्यादा थी जिसका वे एकतरफा पालन कर रहे थे |
हालांकि हम लोग भी कोई पाप नहीं कर रहे थे |उनके प्रति हमारा प्रेम बिलकुल वास्तविक था लेकिन कुछ लोग बाबा जी को नापसंद भी करते थे |
पता नहीं वे ऐसा क्यों करते थे लेकिन उन्होंने ऐसा गुरु हमसे जुदा कर दिया जिनके जैसा व्यक्तित्व रोज पैदा नहीं हुआ करता |बाबा हरदेव सिंह जी के लिए तो शेर याद आता है-
हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है जहाँ में दीदावर पैदा |
बहरहाल एकत्व की उपलब्धि को हासिल करने वाले ही शरीर में रहते हुए भी और शरीर छोड़ने के बाद भी ब्रह्मलीन होते हैं |