संस्मरण -पोस्टर लगाने के बाद सन्त -महापुरुष हमें सेनानियों वाला सम्मान देते थे

 रामकुमार सेवक 

 

यह सन्त समागम का समय चल रहा है |इस समय की अनेक यादें हैं |बाबा हरदेव सिंह जी का aura

इतना जबरदस्त था कि उनकी दृष्टि पड़ते ही मनोवस्था बिलकुल बदल जाती थी |उनके सम्बन्ध में अनेक संस्मरण मैं अपनी पुस्तक युगांतरकारी व्यक्तित्व निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी में लिख चुका हूँ लेकिन पचास साल की यादें इतनी जल्दी कहाँ लिखी जा सकती हैं |

उन दिनों समागम का प्रचार करने के लिए हम ज्यादातर पोस्टर ही चिपकाते थे |

मुज़फ्फरनगर की संगत के एक महापुरुष रिक्शा चलाते थे |पोस्टर्स लगाने के लिए हम अधिकांशतः रात में निकलते थे |

किसी एक मित्र के घर से हम लेही बनवाकर बड़े डिब्बे में भर लेते थे |

पोस्टर्स ,सीढ़ी और लेही हम मेहरचंद जी के रिक्शे में रख लेते थे और ऐसी जगह पोस्टर चिपकाते थे जो समागम संपन्न होने तक चिपका ही रहे |कोशिश करते थे उन पर कोई फ़िल्मी posters  न चिपका दे |

समागम वाली सुबह तक यदि पोस्टर चिपका रहता तो संगतों की नज़रों में भी आ जाता था |जब हम लोग रेल द्वारा समागम में संगतों के साथ आ रहे होते थे और पोस्टर चिपकाने वाली टीम में हमारा भी नाम आता तो संगतें हमें आशीर्वादों से जैसे लाद देती थीं |

शायद 1984 -85 की बात रही होगी ,जिला हस्पताल के सामने हम लोग पोस्टर चिपका रहे थे |मैं सीढ़ी के ऊपर के डंडे पर चढ़ा हुआ था |

नीचे कुछ लोग बाते  कर रहे थे कि ये लोग किस चीज के पोस्टर लगा रहे हैं ?

1980के बाद हमारे मिशन के बारे में लोग जानने लगे थे लेकिन मिशन के बारे में बहुत अच्छी राय नहीं थी |

पंजाब में तो हिंसक घटनाएं भी होती रहती थीं लेकिन बाबा हरदेव सिंह जी पर विश्वास के भरोसे हमें जरा भी डर नहीं था |

सन्त निरंकारी (हिंदी )में मेरा पहला लेख जनवरी 1981 में छपा था तो मिशन में एक जगह बन रही थी |उस समय के सब साथी इस तथ्य को जानते थे कि मिशन के बारे में कोई कुछ पूछेगा तो मेरे पास उसके सवालों का जवाब होगा |

बाबा हरदेव सिंह जी पर अच्छी खासी श्रद्धा थी और बाबा जी सिर्फ व्यक्ति नहीं थे चूंकि वे निरंकार के साकार रूप थे इसलिए उनकी शक्ति पर सहज विश्वास था |साहित्य पढ़ने की आदत थी |अवतार बाणी,मेरी आवाज़ ,युगपुरुष और शिव शक्ति पढ़ चुका था इसके लिए मुरादनगर और मुज़फ्फरनगर में पुस्तकालय खोलने के अभियान भी चलाये थे इसलिए जरा भी घबराहट नहीं थी |

पास खड़े लोगों ने पूछा -निरंकारी समागम में क्या होगा ?

मैंने कहा-समागम में रोजाना सत्संग का मुख्य कार्यक्रम होता है जिसमें हिन्दू -मुस्लिम -सिख ईसाई आदि सब लोग भाग लेते हैं |मुझे एक शब्द समन्वय अब तक ध्यान है ,जिसे मैंने उन लोगों से बातचीत में इस्तेमाल किया था | 

मैंने कहा कि हम परमात्मा को निराकार मानते हैं लेकिन साकार को भी हम सत्य स्वीकार करते हैं |

पास खड़े व्यक्तियों ने कहा-ये तो अच्छे लोग हैं |

वे अपने रास्ते चले गए और हम भी अंसारी रोड की तरफ पोस्टर्स लगाने लगे |फरवरी 1986 में मुझे सन्त निरंकारी मंडल के प्रकाशन विभाग में सेवा मिल गयी और जीवन का एक नया दौर शुरू हो गया लेकिन उस दौर में जो सहजता थी वह जैसे इतिहास के बीच में कहीं छिप गयी है |मालिक कृपा करे कि हमारे दिल हमारी दृष्टि में विस्तार पा सकें |निरंकार की हमारी अनुभूति व्यवहारिक क्रांति में परिवर्तित हो सके | धन निरंकार जी

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- बंगलौर में पिछले दिनों सेवादल रैली के दौरान एक लघु नाटिका प्रस्तुत की गयी 

किसी घर में एक पार्टी आयोजित की गयी थी |उसमें लोगों को जूस दिया जाना था लेकिन जूस आ नहीं सका |इसलिए मेजबान महिला के सामने बड़ी समस्या हो गयी लेकिन उसने manage कर लिया 

उसने घोषणा की कि पार्टी में जो सर्व किया गया ,गिलासों में कुछ जूस और शेष गिलासों में पानी भरा हुआ है ,ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिन मेहमानो के गिलासों में पानी का स्वाद वाला पेय है उन्हीं में से किसी एक के घर अगली दावत का आयोजन होगा |

जूस तो घर में था ही नहीं इसलिए हर गिलास में पानी था | लोगों ने जूस की बहुत तारीफ़ की जबकि घर  में जूस आया ही नहीं था |

वास्तव में जिस घर में अगली दावत का आयोजन होना था उसका निर्धारण उन्हीं लोगों में से होना था जिनके गिलासों में जूस होना था चूंकि महिला ने घोषणा की थी कि गिलासों में जूस भी है और पानी भी लेकिन अगले आयोजक का नाम उनमें से तय होगा जिनके गिलासों में जूस होगा लेकिन हर कोई जूस की तारीफ कर रहा था जबकि जूस घर में आया ही नहीं था |


वह महिला जानती थी कि लालच सबको प्रिय है और सच किसी को भी प्रिय नहीं |