लेकिन गुरु अपने शिष्यों के परदे रखता है |

 रामकुमार सेवक 

आजकल एडवांस सेवा का समय चल रहा है |मुझे अपनी एक कविता याद आ रही है ,जो उन दिनों में लिखी गयी थी जब समागम हमारे घर से कुछ ही दूरी पर होते थे |

निरंकारी कॉलोनी की हमारी ब्रांच की सेवा आम तौर से मैरिज ग्राउंड में ही होती थी |लेकिन रविवार को अक्सर हम ग्राउंड न दो में चले जाते थे |वो दिन अक्सर याद आते हैं |हम लोग दिल्ली की संगतों के साथ खासकर यमुनापार की संगतों के साथ सेवा करते थे |

यह सिलसिला वर्ष 2017  तक चला ,बाबा हरदेव सिंह जी और माता सविंदर हरदेव जी के ब्रह्मलीन होने तक |उन दिनों मैंने यह कविता लिखी थी जिसकी कुछ पंक्तियाँ मुझे अब तक याद हैं-

जितनी कर लो उतनी कम है,

यह तो सेवा का मौसम है |

इसे पहली बार मैंने एक फर्शी मुशायरे में पढ़ा था |यह मुशायरा मैरिज ग्राउंड में ,उस्ताद मान सिंह जी मान की याद में हुआ था |दिल्ली के शीर्ष कवियों ने इसमें भाग लिया था |सुलेख साथी जी,भाषी मुल्तानी जी आदि के नाम मुझे अच्छी तरह याद हैं |

        हमारे एक और साथी चन्नी फ़रीदाबादी जी भी इस वर्ष हमसे जुदा हो गए |

 अब तो उन दिनों की यादें ही शेष हैं |

समालखा स्थित समागम मैदानों में बड़ी संख्या में संगतें एकत्रित होकर रोजाना सुबह साढ़े छह से साढ़े सात बजे तक सेवा हेतु एकत्रित होती हैं |

पिछले सप्ताह एक बच्चा माता जी को नमस्कार करने आया |नमस्कार स्वीकार करने के बाद सतगुरु माता सुदीक्षा जी और आदरणीय राजपिता जी ने बच्चे को चॉकलेट दी |

मैंने देखा बच्चे के पीछे आ रहे उसके पिता की आँखों में आंसू हैं |बच्चे के पिता में एक दर्द था जो अब विदा ले रहा था |

मैंने बच्चे के पिता को टटोला तो वे बोले -भाई साहब ,आपको अपने दिल की बात बताता हूँ |उन्होंने बताया -मेरा बच्चा पिछले पंद्रह दिनों से चॉकलेट दिलाने की इच्छा प्रकट कर रहा था और मेरी जेब में इतने पैसे नहीं थे कि अपने बच्चे की यह मामूली इच्छा पूरी कर सकूं |

हमारे गांव में चॉकलेट की कोई दुकान नहीं है इसलिए  मैं उससे कह देता था कि बेटा, जब शहर जाऊंगा तो आपको चॉकलेट दिला दूंगा जब कि मुझे मालूम था कि मेरी जेब यह allow नहीं करती |

आज भी बच्चे ने घर से चलते समय मुझसे कहा |उसने कहा कि आज हम सेवा में जा रहे हैं ,रास्ते में शहर आएगा ही इसलिए आज मुझे चॉकलेट दिला देना |

मुझे पिछले हफ्ते का सेवा का दिन याद आ गया |पिछले हफ्ते भी मैंने बहाना बनाया था |परिस्थितियां आज भी वैसी ही थीं |

लेकिन आज जब बच्चे ने नमस्कार की तो माता जी और राजपिता जी ने उसे एक-एक चॉकलेट दी तो मुझे याद आ गया कि गुरु ने कितनी खूबसूरती से मेरा काम कर दिया अन्यथा मेरी स्थिति तो आज भी पिछले सप्ताह से अलग न थी लेकिन गुरु अपने शिष्यों के परदे रखता है |  

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अन्तर्यामी से बात किन शब्दों में की जाए ?

एक इन्सान,कई बार पैसा इन्वेस्ट कर चुका था लेकिन मंजिल शायद अब भी दूर ही थी था | उसके पिताजी ने उससे कहा-बेटा,मैं देख रहा हूँ,तुमने कई बार पैसा लगाया है लेकिन तुम्हें सफलता नहीं मिली |इस बार बाबा जी के  पास दिल्ली चले जाओ ताकि सफलता तो मिले |

बेटे को पिताजी की बात सुनकर हैरानी तो हुई क्यूंकि उसने अपने पिताजी से ही सुना था कि निरंकार तो रोम-रोम में बसा हुआ है इसलिए किसी चीज की फ़िक्र नहीं करनी चाहिए |  

पिता जी का वचन आ गया था कि पैसा निवेश करने के लिए बाबा जी से पूछ लिया जाये |जो भी उनका वचन आये उसका हृदय से पालन किया जाए लेकिन दिल्ली जाने की बात बेटे के मन को स्वीकार नहीं हो रही थी |

समय आया तो पिताजी ने पूछा कि दिल्ली जा रहे हो या नहीं ?

बेटे ने कहा कि अब आपका वचन आ गया है तो दिल्ली तो जाऊँगा ही लेकिन बाबा जी से जब बात करूँ तो मेरे और उनके बीच फासला कितना होना चाहिए ?

पिताजी ने कहा-यह कोई प्रश्न ही नहीं है कि तुम्हारे और उनके कानो के बीच फासला कितना हो क्यूंकि बाबा जी की hearing power बिलकुल ठीक है ,तुम जिस टोन में बोलते हो,बाबा जी सुन ही लेंगे |

दो फ़ीट की दूरी ठीक रहेगी ?

बिलकुल ठीक रहेगी क्यूंकि बाबा जी को सुनने में कोई समस्या नहीं है ,पिता जी ने कहा |

बाबा जी को सुनने और मुझे कहने में कोई समस्या नहीं है लेकिन आप कहते हैं कि गुरु अंतर्यामी होता है |मुझे समस्या सिर्फ यही है कि बाबा जी इन्वेस्टमेंट की बात सुनकर क्या यह नहीं सोचेंगे कि मैं उन्हें अन्तर्यामी नहीं मानता |

अपने बेटे की बात सुनकर पिताजी को भी लगा कि बेटे की बात में वजन है ,उन्हें लगा कि बाबा जी को ऊपर ऊपर से अंतर्यामी कहना और बात है और वास्तव में उन्हें अंतर्यामी समझना बिलकुल अलग बात है |

उसने कहा -मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि बाबा जी से किन शब्दों में बात करूँ क्यूंकि अंतर्यामी से कैसे बात की जाए क्यूंकि जो अन्तर्यामी है उसे कुछ बताने की ज़रुरत मेरी अपनी भावना की वास्तविकता पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है |

मुझे लगता है कि बाबा जी से यह अरदास की जा सकती है कि निवेश की जो पिछली तीन योजनाएं थीं वे सफल नहीं हुईं तो उनके भी कुछ कारण रहे होंगे |

हम उन्हें निश्चय से नहीं जानते लेकिन बाबा जी तो अंतर्यामी हैं ,वे तो अच्छी तरह जानते हैं कि गलती कहाँ हो रही है इसलिए यही अरदास करनी चाहिए -वैसी गलती फिर न हो |फिर इन्वेस्टमेंट की योजना सफल रहेगी ही |

बेटा पिता से ज्यादा यथार्थवादी था सिद्ध हो  गया |श्रद्धा के साथ यथार्थ का भी प्रभाव हो तो ही सतगुरु की कृपा हम पर बरसेगी,मेरा ख्याल है |धन निरंकार जी