यह श्री गुरु अर्जुन देव जी का शब्द है शायद ,
पूरा शब्द इस प्रकार है-पूछत है पथिक
पर मार्ग पे न धरे पग |
पीतम के देस कैसे
बातन से जाइए
मुझे पीतम के देस के आस-पास आये पचास साल से ज्यादा का वक़्त बीत चुका है |महात्मा कह रहे हैं-पीतम के देस कैसे बातन से जाइए ,मैंने भी अब तक शायद बातों के ही पुल बनाये हैं इन इक्यावन सालों में मैंने इसके अलावा और किया क्या है ?
पच्चीस साल तक सन्त निरंकारी (हिंदी )का संपादन किया |प्रश्न उठता है कि क्या पीतम के देस में मैं संपादक होने के लिए आया था ?जवाब है -नहीं |
पीतम तो प्रियतम होता है ,प्रियतम को उपहार में क्या देंगे जब मिलेगा ?
बरसों पहले बाबा हरदेव सिंह जी के लिए मैंने यह कविता लिखी थी -क्या भेंट करूँ स्वागत में तुम्हें ?
और निष्कर्ष निकालते हुए लिखा था -जैसे कल रात तुम ,दिल्ली पधारे ,
उसी तरह -आजाओ,जम जाओ , बस जाओ दिल में हमारे
ताकि इस दिल को तुम्हें भेंट कर सकूं |
मेरे मित्र सुलेख साथी जी से समकालीन कवियों में से किसी ने जब पूछा -क्या लिखा है सेवक जी ने तो उन्होंने कहा था -इसने तो दिल ही निकालकर रख दिया है ?
उनका- मेरा दोस्ती का रिश्ता था |उन्होंने मजाक में कहा था-अरे,एक दिल किस -किसको देगा ?
संगतों ने भी कविता को बहुत सराहा था लेकिन सवाल अब भी वैसे का वैसा खड़ा है कि-
पीतम के देस कैसे बातन से जाइये ?
एक सुन्दर कविता द्वारा क्या प्रियतम के देश में पहुंचा जा सकता है ?
यद्यपि वह दुर्लभ अवसर था |जून माह की रात रही होगी बाबा जी का नूरानी जलवा था |
एक दिन पहले रात बारह बजे के आस पास बाबा जी की गाड़ियां दिल्ली (निरंकारी कॉलोनी )पहुँची थीं |
अभी बहुत साल नहीं बीते हैं ,बाबा जी ने रात को दिल्ली लौटना था ,मुझे एक मित्र पड़ोसी ने कहा -कल कविता पढ़ने की तैयारी करो |
यह सूचना कुछ ज्यादा ही एडवांस थी क्यूंकि मुझे उस कार्यक्रम में कविता पढ़े जाने की उम्मीद ही नहीं थी इसलिए महात्मा और पड़ोसी की बात को मैंने गंभीरता से नहीं लिया |
बाबा जी के आने में अभी कुछ समय था ,मुझे सुलेख जी ने कहा -आपने कल कविता पढ़नी है |
सुलेख जी लोक कवि सभा के सचिव भी थे इसलिए कविता पढ़ने की official ड्यूटी लग गयी थी |अब मैंने सच्चे बादशाह से प्रार्थना करनी शुरू की क्यूंकि ,लोक कवि सभा अगर खुद आपकी ड्यूटी लगाए तो performance बढ़िया होनी चाहिए अन्यथा फिर काफी समय तक बारी खटास में पड़ सकती है इसलिए मैंने निरंकार-सत्गुरु से प्रार्थना की कि मुझसे अच्छी कविता लिखी जाए |
कविता पढ़ने का निमंत्रण इतना भारी था कि अगले दिन मैं दफ्तर नहीं गया बल्कि शब्द ही ढूंढता रहा |संगत ग्राउंड न.दो में थी |
साढ़े पांच बजे के आस-पास मैं कविता पूरी कर पाया और ग्राउंड में चला गया |
होम वर्क जब किया होता है तो स्कूल जाते समय घबराहट नहीं होती ,मेरी मनोवस्था कुछ ऐसी ही थी | खैर मालिक की कृपा हुई और प्रस्तुति ठीक हो गयी |
लेकिन प्रश्न यही कि प्रीतम के देश कैसे जाया जाए ?
कुछ साल पहले कोरोना का संक्रामक रोग आया ,काफी खर्चा करने पर भी ऑक्सीजन नहीं मिल रही थी मुझे ख्याल आया कि क्या दुनिया से विदाई इसी प्रकार बात करते -करते ही हो जाएगी ?
सत्गुरु ने हमसे पाँच प्रण लिये हैं इसका अर्थ है कि पाँच प्रण जिन सिद्धांतों के इर्द-गिर्द घूमते हैं उनका पालन सुनिश्चित होना चाहिए |
यह मेरी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है क्यूंकि सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी कहा करते थे-क्या भरोसा है ज़िंदगानी का,आदमी बुलबुला है पानी का |
इस प्रकार सिर्फ बातों का सिलसिला अनंत काल तक नहीं चलाया जा सकता |बातों को कभी क्रियान्वित भी तो करना होगा |महात्मा ने जो प्रश्न उठाया है कि-पीतम के देस कैसे बातन से जाइये ?
वर्ष 2020 के फरवरी माह में कोरोना के संक्रामक रोग के कारण संगतों को बंद कर दिया ,onlinr संगतें शुरू हो गयीं |
उन दिनों मुंबई निवासी ,नेवी के कुछ महात्माओं ने उद्यम किया ,कुछ महापुरुषों ने मुझे भी इस कार्यक्रम से जोड़ दिया |इस कार्यक्रम ने विचार विमर्श के नए आयाम खोले | मैंने सोचा कि निरंकार से अपना connetion (सम्बन्ध )कैसे मजबूत बनाया जाए इस पर विचार करने का सही वक़्त यही है ?
बाबा हरदेव सिंह जी ने वर्ष 2004 में ,गुरु वन्दना के कार्यक्रम को सम्बोशित करते हुए सुमिरन की कमी दूर करने का आह्वान किया था |
सुमिरन में गहरी ताक़त है ,सुमिरन से असंभव कार्य भी सम्भव हो सकते हैं |सोचने की बात यह है कि सुमिरन कहाँ से हो रहा है?
जब मैं मुरादनगर से रोजाना दिल्ली आता था तो गाज़ियाबाद के रेलवे स्टेशन की सीढ़ियों पर मैं एक भिखारी को बैठे देखता था जो जोर -जोर से राम बोलता रहता था |उन दिनों सरसंग में विचार प्रकट करते हुए मैंने कई बार कहा कि वह भिखारी सुबह से रात तक राम -राम बोलता रहता था चूंकि उसका अंतर्मन यात्रियों को देखता रहता था कि कौन यात्री रूककर अपना बटुवा बिकालता है और उसके कटोरे में कितने सिक्के डालता है |
चूंकि उसका ध्यान बटुए या कटोरे में रहता है इस कारण उसका राम-राम कहना सुमिरन नहीं है |
मुझे खुद को टटोलकर यह देखना होगा कि गुरु के प्रति मेरा प्रेम किस केंद्र से संचालित हो रहा है क्यूंकि यह जवाब ही मेरी वास्तविकता को सुनिश्चित करेगा |