ऐसी कितनी ही माताओं ने मानवता के सन्देश को पंख लगाए है

रामकुमार सेवक 

गीतकार जगत जी एक बार अपनी माता जी का संस्मरण सुना रहे थे |उन्होंने बताया कि एक बार कोई इंसान नेपाल स्थित उनके गांव में कुछ सामान बेचने आया |शाम तक सामान बेचने के बाद उसने महसूस किया कि रात होने वाली है इसलिए सोने का इंतजाम होना चाहिए |

उसे यह मालूम था कि अगर निरंकारियों को किसी प्रकार यह विश्वास दिलाया जाये कि मैं भी उन्हीं का गुरुभाई हूँ तो गाँव में रात गुजारने के पैसे बच सकते हैं |

जगत जी के घर के बाहर उस इंसान ने जोर से कहा था -धन निरंकार |

यह सुनकर माता को यकीन हो गया कि यह कोई निरंकारी सज्जन है |जगत जी तथा परिवार के अन्य सदस्य उन दिनों मुंबई में थे इसलिए आगन्तुक की सच्चाई को परखने के लिए घर में कोई न था |

माता जी ने भोले भाव से आगंतुक की सेवा की और निरंकारी मिशन का पहला सन्देश दे दिया |  

माता जी ने धन निरंकार का शब्द सुना तो उस इंसान का खूब स्वागत-सत्कार किया |

उस शाखा के महात्माओं ने उस दिन शाम को एक सत्संग का आयोजन किया हुआ था |शाम को सत्संग हुआ |वह इंसान जो कि जगत जी की माता जी से अतिथि सत्कार का आनंद ले रहा था ,वह उस गांव में नया था तो महापुरुषों ने उसी सज्जन को सतगुरु के आशीर्वाद प्रदान करने के लिए मुख्य मंच पर बैठा दिया |

सत्संग के अंत में सत्गुरु के आशीर्वाद देने की बारी आयी तो वह इंसान घबरा गया |चालाकी से किये गए कार्य सदा ही सफल नहीं होते |वह तो चालाक इंसान था तो गुरु का क्या सन्देश देता |वह घबरा गया   और अंततः रोने लगा |

उसने कहा-मैं तो मुफ्त का सत्कार पाने और अपने पैसे बचाने के लिए धन निरंकार बोल रहा था |

स्थानीय सज्जन जानते थे कि निरंकार का ज्ञान होना अर्थात ब्रह्मज्ञान होना ही निरंकारी होना है तो उन्होंने उससे ज्ञान के बारे में पूछा |उसने कहा -ज्ञान के बारे में मैं कटाई कुछ नहीं जानता हूँ |

जगत जी की माता जी ने उसका जो स्वागत -सत्कार किया था उसने उस इंसान को सन्त और  निरंकारी बना दिया और उसने ज्ञान का बीज आस- पास के गांवों में भी बोया | निरंकारियों की सहजता ने उस आदमी के मन में सच्ची भक्ति का एक नया अध्याय लिखकर मानवता का सन्देश गाँव -गाँव में फैलाने की नीव रख दी |

उस इंसान ने गुरु का सदेश सुना तो उसे बिलकुल सत्य पाया और मानवता और प्रेम का सन्देश गांव -गांव में फैला दिया | 

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गुरु हमको सदा देख रहा होता है इसलिए टिकट जरूर लेना चाहिए |मुंबई में जो बसें चलती हैं उन पर बेस्ट लिखा होता है |

उसमें एक माता अपने पोते के साथ यात्रा कर रही थी |

माता ने दो  टिकट मांगे जबकि कंडक्टर को लगता था कि माता को एक टिकट लेना ही काफी था |कंडक्टर का आग्रह था कि बच्चा बहुत ही छोटा है |

माता का कहना था कि बच्चा पांच साल का है इसलिए उसका टिकट लगेगा जबकि कंडक्टर माता को संदेह का लाभ देना चाहता था इसलिए  दूसरा टिकट बनाना ही नहीं चाहता था |

माता वास्तव में निरंकारी थी इसलिए मन में गुरु का भय रखती थी ,उसे लगता था कि गुरु से छिपकर कोई काम नहीं किया जा सकता जबकि आम तौर पर लोग ऐसी छोटी -मोटी चोरी की जरा भी परवाह नहीं करते बल्कि छोटी -मोटी चोरी कर लेने को वे अपना मूलभूत अधिकार मानते हैं |

कंडक्टर इसी दृष्टि से काम कर रहा था जबकि माता को लगता था कि गुरु हमको सदा देख रहा होता है इसलिए टिकट जरूर लेना चाहिए |

कंडक्टर से जब बार -बार कहा तो उसने टिकट दे दिया |

टिकट लेने की अपनी संतुष्टि होती है और संतुष्टि का अपना आत्मविश्वास होता है |

माता को लगा कि अब गुरु की दृष्टि में उसकी स्थिति बेहतर हो गयी है | 

माता मराठी थी और अपने पोते के बारे में ज्यादा आग्रह कर रही थी और कंडक्टर से बातचीत भी हो रही थी तो पूरी बस की सवारियों का ध्यान माता की ओर चला गया जबकि यह बात बहुत पुरानी है |बाबा गुरबचन सिंह जी का कार्यकाल था |

संगतों के बहन -भाई बस में बैठकर स्टेशन जा रहे थे ताकि रेल द्वारा दिल्ली जा सकें |वे सब गीत गाते हुए ख़ुशी -ख़ुशी जा रहे थे लेकिन माता की ईमानदारी ने मिशन का प्रचार कर दिया कि गुरु वाले लोग कितने ईमानदार होते हैं |

इस प्रकार माताओं का भी प्रचार में बहुत योगदान रहा है जबकि वे ज्यादा पढ़ी -लिखी भी नहीं थी |

उनका जो ज्ञान था वह किताबों पर नहीं आस्था पर आधारित था और जहाँ आस्था होती है वहां बंद दीवार में भी रास्ता होता है |इसीलिए कहते हैं-आस्था -जीवन का आधार |  

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