- रामकुमार सेवक
एक महात्मा ने आज सत्संग में बताया कि बचपन में मैं पटियाला में रहता था |हमारे घर में जो दर्पण लगा हुआ था,वह एक खुले स्थान पर था |
मैंने देखा कि मम्मी -डैडी जब दफ्तर जाने के लिए घर से निकलते थे तो दर्पण के ऊपर एक कपडा ढक देते थे |
हम बच्चे रोज यह क्रिया देखा करते थे |
जब हम बड़े हुए तो महसूस हुआ कि शायद यह कोई पारिवारिक परस्म्परा है |
यह सोचकर ,जब हम बड़े हुए तो हम बच्चे भी जब स्कूल जाने के लिए घर से बाहर निकलते तो हम भी दर्पण पर कपडा डालने लगे |
लेकिन यह भी जरूर लग रहा था कि दर्पण पर कपडा ढकने का रहस्य क्या है ?
पिताजी ने बताया कि कपडा ढंकने से दर्पण के सामने पक्षी नहीं आते और इस प्रकार दर्पण गन्दा होने से बच जाता है |
अब दिमाग स्पष्ट हो गया था कि दर्पण पर कपडा डालना कोई रीति-रिवाज आदि का अंग नहीं है |
मेरा जन्म मुरादनगर (उत्तर प्रदेश )में हुआ था |यह शहर प्रसिद्द औद्योगिक नगर मोदीनगर के पास ही है |
मोदीनगर के पास एक गांव है,जिसका नाम सीकरी है |सीकरी में वर्ष में एक मेला लगता है |
जब मैं मुरादनगर में पढता था, हम लड़के अनुधानुकरण की प्रवृत्ति की खुलकर हंसी उड़ाते थे |
एक लड़का बताता था कि सीकरी मेले में किसी स्त्री ने करवे से पानी पिया |
हम्मरे इलाके में करवा जिसे कहते हैं ,वह मिटटी का एक बर्तन होता है,जिसमें रखा हुआ पानी इतना ठंडा होता है कि कुए का जल भी मात खा जाए |
पीने वाले ने करवे से पानी पिया तो कुछ पानी तालाब के किनारे पर बिखर गया |
उसके हाथ में मंदिर का प्रसाद था तो पानी के साथ प्रसाद भी बिखर गया |
तालाब के किनारे प्रसाद के बताशे और और पानी बिखरा देखा तो उसके पीछे आ रही स्त्रियों ने सोच लिया कि यहाँ भी कोई देवता स्थित है |
इसका नतीजा यह हुआ कि वहाँ भी एक देवता का वास मान लिया गया और उन स्त्रियों ने वहां भी प्रसाद चढ़ा दिया जबकि वहां कोई देवता न था |
इसे कहते हैं अंधानुकरण कि बात की गहराई में जाए बिना नक़ल करने लगना |यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है |
महात्मा दादूजी का एक प्रसंग मुझे याद आ रहा है |वास्तव में दादू जी बहुत विनम्र महात्मा थे |अक्सर वे अपनी कुटिया के बाहर निकलकर गाँव में झाडू लगा देते थे |
एक सैनिक को ब्रह्मज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा थी |उस समय यह रहमत महात्मा दादू जी के माध्यम से बरस रही थी इसलिए वह उस गाँव में आया जहाँ दादू जी की कुटिया थी |
सैनिक के पूछने पर ,शिष्यों ने बताया कि महात्मा गाँव में कहीं झाडू लगा रहे होंगे |
सैनिक को ध्यान आया कि थोड़ी देर पहले जिस बुजुर्ग पर मैंने अपनी खीझ मिटाने के लिए कोड़े मारे हैं,कहीं वही तो दादू जी नहीं हैं ,यह सोचकर उसमें पश्चाताप का भाव भी उत्पन्न हो गया |
वह डरता-डरता दादूजी के पास गया और क्षमा याचना की | महात्मा दादूजी ने कहा कि लोग यदि बर्तन भी खरीदते हैं तो उसे टंका -टंका कर देखते हैं,तुम तो ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने आये हो तो तुमने गुरु की परीक्षा ले ली तो कुछ भी गलत नहीं किया |परख हो गयी कि गुरु कहीं क्रोधी तो नहीं है | इस प्रकार दादूजी ने सत्यापित करने की प्रवृत्ति को जाग्रति का प्रतीक बताया |परख का भाव जागरूकता को प्रकट करता है |
अधिकांश लोग ब्रह्मज्ञान के इस मिशन में भी अंधानुकरण के रोग से पीड़ित हैं |वो बात की तह में जाये बिना अपना मनमाना आचरण करने लगते हैं |आश्चर्य तो तब होता है कि गुरु के आदेश की आड़ लेकर वे मिशन के सिद्धांतों को जैसे ताक पर रख देते हैं और मनमाना आचरण करने लगते हैं |
बाबा अवतार सिंह जी यथार्थवादी तो थे लेकिन क्षमाशील भी थे ,वे भक्तों को आचरण सँभालने की बात कहा करते थे ,
सतगुरु तक के अन डि ठ करदा मत्थे पाउँदा वट नहीं
इस प्रकार सतगुरु क्षमाशील होता है |
हममें से कई शिष्य ताक़त मिलने पर अहंकार में चूर हैकर आचरण से पतित हो जाते हैं इसलिए बाबा हरदेव सिंह जी ने भी अहंकार से दूर रहकर मर्यादित आचरण करने का सन्देश दिया |हमें मर्यादित आचरण को जीवन का अंग बनाना होगा | इसके बावजूद सत्य के प्रति जाग्रत रहना होगा |
इस प्रकार गुरु के आदेश का सही रूप में पालन नहीं हो पाता |
गुरु को प्रगतिशील होना ही चाहिए इसलिए ब्रह्मवेत्ता गुरु हमेशा ही प्रगतिशील रहे हैं |बाबा अवतार सिंह जी ने नारी सम्मान की आधारशिला रखी और बहनो बेटियों को परिवारों में प्रतिष्ठित किया |यह प्रगतिशील होने का लक्षण है |