मुक्ति पर्व प्रतीक है - विकारों से सम्पूर्ण आज़ादी का

- रामकुमार 'सेवक' 


14 अगस्त को रात के बारह तो कुछ घंटे पहले ही बज चुके हैं |यह तो किसी भी प्राकृतिक इंसान के सोने का वक़्त है लेकिन मैं जाग रहा हूँ क्यूंकि मेरा ध्यान चौदह अगस्त 1947 की रात्रि की तरफ जा रहा है |

वह क्षण जब हमारा भारत आज़ाद हो रहा था |संसद में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भाषण दे रहे थे |वह ऐतिहासिक भाषण जो देश के भाग्य को बदलने वाला था |

मैं तब पैदा नहीं हुआ था लेकिन मेरे पैदा होने या न होने से कुछ फर्क नहीं पड़ता क्युंकि यह सब मैंने किताबों में पढ़ा |किताबें ही हमें हमारे अतीत से रूबरू करवाती हैं |

व्यक्तिगत रूप से मेरा सम्बन्ध अध्यात्म से है चूंकि अध्यात्म का अर्थ है -आत्मा का अध्ययन |

समझने की बात यह है कि आत्मा सबकी अलग अलग होती है चूंकि यह मेरे होने का आधार है |अगर आत्मा नहीं तो मैं भी नहीं |

   निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी के श्रीमुख से मैंने अनेक बार एक बुजुर्ग कवि महात्मा की बात सुनी है ,जो उस जानने में एक काव्यांश बोलते थे कि-

की होया जो देश आज़ाद होया अगर रूह न होई आज़ाद साड्डी

अर्थात देश की आज़ादी तो हमें प्राप्त हो गयी लेकिन आत्मा तो आज़ाद न हुई ?यह एक बड़ा चैलेंज उस दिन भी था और आज भी है |

आज शाम मुझे बाबा हरदेव सिंह जी प्रवचन याद आ रहे थे चूंकि उनके प्रवचन सुनने का मौका बहुत बार मिला है |उनके प्रवचन सुनकर आज़ादी के सही अर्थ जानने का अवसर बहुत बार मिला है |

मंदिर -मस्जिद विवाद के दिनों में जबकि देश में रथयात्रा निकल रही थी तब बाबा जी ने हम लोगों का ध्यान उस समय चल रही परिस्थितियों की और दिलाया था |

वह युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी का युग रहा था जब 1956 में सन्त निरंकारी सेवादल की स्थापना हुई |

जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था ,तब से मुझे भी सेवादल में स्वयंसेवक के रूप में सेवाएं देने का सौभाग्य मिला है |

सेवादल के मार्चिंग गीत में कहा गया है-

न हिन्दू ,न सिख -ईसाई ,न हम मुसलमान हैं ,मानवता है धर्म हमारा ,हम केवल इंसान हैं |

हमें बिलकुल स्पष्ट कर दिया गया है कि-

मानवता ही मानव का सच्चा धर्म है |

मुझे याद आ रहा है-वर्ष 1977 ,तब बाबा हरदेव सिंह जी की बड़ी सुपुत्री (बहन समता जी )को बाबा गुरबचन सिंह जी ने दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में 15 अगस्त को उनदिनों आयोजित होने वाले जगतमाता शहनशाह दिवस के समागम में सेवादल की वर्दी पहनाई और नामकरण किया था -समता |

अर्थात उस समय भी हम मानवता के पथ पर अडिग थे |

जगतमाता बुद्धवंती के सेवा प्रसंगों को मैंने आदरणीय निर्मल जोशी जी से सुना है |उन्होंने एक छोटी सी किताब भी लिखी थी ,जिसका नाम था -जगतमाता |

जोशी जी बताते थे कि माता जी सेवादारों का बहुत ख्याल रखते थे |सेवादारों के लिए उनका प्रेम विशिष्ट था |वे वंचितों का बहुत ख्याल रखती थी इसलिए निर्मल जोशी जी उनकी महानता के किस्से जब तब हमें सुनाया करते थे |

जगतमाता बुद्धवंती का शरीरांत 15 अगस्त 1964 को हुआ |

कल भी सत्संग में एक बहन उनके जीवन का जिक्र कर रही थी क्यूंकि सेवा करनी आसान नहीं है |

वे बाबा अवतार सिंह जी की सुपत्नी थीं और बाबा जी भारत में निरंकारी मिशन की स्थापना कर रहे थे |उनकी जीवन संगिनी होने के नाते जगतमाता जी को बाबा जी के सब सेवादारों को संभालना पड़ता था |

उनके लिए जरूरी था मानवता को व्यवहारिक रूप देना और जगतमाता जी ने वह सब किया |

आज़ादी नयी नयी मिली थी और असंतोष सर्वत्र था |माता जी असंतोष के उन दिनों में निरंकारी परिवार को संभाल रही थीं -सेवा के संकल्प और विशालता के गुण द्वारा |

यह संभव हुआ मानवता के विशिष्ट गुण के कारण |            

बाबा हरदेव सिंह जी युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी और जगतमाता जी के पौत्र थे इसलिए भक्ति उनका पारिवारिक गुण भी था |

सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी ने मंदिर मस्जिद विवाद के दिनों में भी मानवता के पथ पर हमें दृढ रखा |बाबा जी ने देश के कर्णधारों को सचेत करते हुए कहा था कि-

फायर ब्रिगेड का काम है-देश को जलने से बचाना लेकिन फायर ब्रिगेड के पाइप में यदि पानी के स्थान पर पेट्रोल भरा हो तो हम समझ सकते हैं कि आग घटेगी या बढ़ेगी ?इस प्रकार हमें किसी भी विवाद से दूर रखा |हमें सदैव हमारे सत्गुरु ने बताया कि-मानवता ही हमारा धर्म है | 

आज मुक्ति पर्व के इस दिन हम मानवता के पथ पर डटे रहने का संकल्प लेते हैं |धन निरंकार जी