रामकुमार सेवक
आज माता सविंदर निरंकारी जी की पुण्य तिथि है|वर्ष 2018 में आज ही के दिन उन्होंने नश्वर शरीर त्यागा |आज (5अगस्त 2024)सुबह सत्संग (सन्त निरंकारी कॉलोनी दिल्ली )में उन्हें विशेषतः याद किया गया |
श्री वरिंदर पाहवा (बंटी जी ) ने उनके दया भाव को समर्पित एक प्रसंग साध संगत के समक्ष प्रस्तुत किया |उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले तक महाराष्ट्र समागम मुंबई में ही होता था |उन दिनों की बात है कि नमस्कार की पंक्ति में एक युवक (शारीरिक रूप से विकलांग )गुजरा |
पूज्य माता जी की दृष्टि करुणा भाव से इस युवक पर पडी |उन्होंने बंटी जी को आदेश दिया कि सत्संग के बाद इन्हें मेरे पास लेकर आना |
बंटी जी ने युवक से उस का व्यवसाय पूछा तो ज्ञात हुआ कि ये अख़बार के लिफाफे बनाकर बसों में सप्लाई करते हैं |वह निरंकारी मिशन से नियमित रूप से जुड़ा हुआ भी नहीं था |
माता जी ने ब्रिगेडियर चीमा (सन्त निरंकारी मंडल के स्वास्थ्य तथा चिकित्सा विभाग के प्रभारी ) को आदेश दिया कि इस युवक को विकलांगों के लिए विशेष रूप से जो tri cycle होती है को प्रदान करने की व्यवस्था संत निरंकारी मंडल की तरफ से कर दी जाए |
इस प्रकार माता सविंदर जी निष्काम भाव से सेवाएं करती रहती थीं |उस युवक ने भी कहा कि पूरे दिन में कितनी ही बसों में मुझे पहुंचना होता है |कितने ही लोग मुझे देखते हैं |मेरी शारीरिक अक्षमता किसी से छिपी हुई नहीं है |उसे देखकर अक्सर लोग सहानुभूति तो प्रकट कर देते हैं लेकिन माताजी ने कार्य रुप में उसका समाधान खोजा और महत्वपूर्ण सेवा कर दी |
यह युवक निरंकारी अनुयाई नहीं था वह तो समागम के पोस्टर देखकर बाबा जी की तरफ आकर्षित हो गया था |समागम में आया तो निरंकारी मिशन का सन्देश सुनने को मिला |
माता सविंदर जी की व्यवहारिक दया भी देखने को मिली | व्यवहारिक जीवन स्थायी प्रभाव डालता है |माता जी के व्यावहारिक जीवन ने उस युवक पर गहरा असर डाला |
माता जी के दयामय जीवन को मुझे प्रकाशन विभाग में कार्यरत रहते हुए निकट से देखने का काफी अवसर मिला |
यद्यपि माता जी को कान्वेंट शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला था |वे मेधावी छात्र रहीं |इस प्रकार उनकी शिक्षा काफी बेहतर हुई थी |इसके बावजूद उनमें सेवा के संस्कार गहराई से मौजूद थे |
बाबा जी की पत्नी होने की बड़ी योग्यता को वे भक्ति भाव के नीचे दबा देती थीं |
वे जीवन में पूरी मर्यादा का पालन करती थी |
नब्बे के दशक में अनेक प्रकार के रोग फैलते रहते थे |माता जी मंडल के दफ्तर में चरणामृत भेजती थीं |चरणामृत पर विश्वास भक्ति की गहराई और गुरमत की ऊँचाई को प्रकट करता है |वे अपने निकटवर्ती सेवादारों के द्वारा चरणामृत भेजती थीं ,यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी है |
इससे रोग से राहत का वातावरण बनता था |
मेरी वार्षिक समागमों में सेवा प्रायः प्रदर्शनी में भी होती थीं |जब से उनकी सुपुत्री (बहन रेणुका जी ) निरंकारी प्रदर्शनी में सक्रिय हुए तो माता जी से अनेक बार सीधा संवाद होता था |
इस प्रकार उन्हें निकट से देखने के अनेक अवसर मिले |
ग्राउंड न .आठ में संगत हो रही थी ,किसी बहन ने माता जी का एक संस्मरण सुनाया जिससे ज्ञात हुआ कि माता जी के स्वभाव में कितनी विनम्रता थी |उन्होंने बताया कि माता जी के साथ किसी अस्पताल में जाने का अवसर मिला |
माता जी आयीं तो अस्पताल में हलचल हो गयी |
सबके मन में जिज्ञासा थी कि अभी अस्पताल में जो आयी हैं ,वे कौन हैं ?
माता जी ने उस बहन से कहो कि उनसे कहो -निरंकारी बाबा जी की एक शिष्या आयी हैं |इस प्रकार माता जी ने अपने अस्तित्व को सत्गुरु के अस्तित्व में विलीन कर दिया |
उन्होंने अपना परिचय निरंकारी बाबा जी की धर्मपत्नी के रूप में देने की बजाय उनकी शिष्या के रूप में दिया जबकि धर्मपत्नी के रूप में परिचय उन्हें अधिक सम्मान का हक़दार बनाता |
पत्नी के रूप में परिचय निश्चय ही उन्हें अधिक सम्माननीय बनाता लेकिन गुरु के अस्तित्व में खुद को विलीन कर देना उन्हें अधिक संतुष्टि देता था |भक्तों का सदैव से यही चलन भी रहा है |
इस प्रकार माता सविंदर जी के व्यक्तित्व में भक्ति का ऐसा उच्च भाव था |