सर्व धर्म समभाव का आदर्श और रेहड़ी लगाने वालों का संवैधानिक अधिकार

 रामकुमार सेवक  

निरंकारी मिशन के मार्चिंग गीत में सर्व धर्म समभाव की बात कही गयी है लेकिन बदलते राजनीतिक दौर का असर थोड़ा -बहुत मिशन के कुछ उत्साही अनुयाइयों पर भी होता हुआ  महसूस हुआ है |

खासकर महाराष्ट्र के अति उत्साही मित्रों ने पिछले दस वर्षों के असर को निकट से महसूस किया है |

पिछले दस वर्षों में काफी कुछ बदवाव महसूस हुआ है |

उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर ,लखनऊ ,शामली ,सहारनपुर आदि इलाकों में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव की ख़बरें बड़ी संख्या में पढ़ने को मिल रही हैं |उत्तराखंड की राज्य सरकार तो इसमें भागीदार है ही | 

जब भी मुझे इस परिस्थिति का  नकारात्मक असर महसूस हुआ है मैंने लोगों का धयान गुरु के वचनो की और आकर्षित किया है |

निरंकारी मिशन वास्तव में मानवता का मिशन है और मानवता का मार्ग ही मिशन ने अबतक की यात्रा में स्वीकार किया है लेकिन एक राजनीतिक दल के प्रभाव में जो लोग आ जाते हैं वे बहुत सहजता से एक धर्म विशेष का विरोध करने लगते हैं |जबकि नारों के स्तर पर कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता |

अस्सी के दशक से ही सन्त निरंकारी सेवादल के नारे वही रहे हैं -

ना हिन्दू ना सिख ईसाई ,ना हम मुसलमान हैं ,

मानवता है धर्म हमारा हम केवल इंसान हैं|


सेवादल के  रचनात्मक जवानो द्वारा मार्चिंग गीत में आज भी वही भावनाएं गाई जा रही हैं जो कि युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी ,बाबा गुरबचन सिंह जी और बाबा हरदेव सिंह जी के समय में गायी जा रही थी |

यह तो बहुत ही अच्छा हुआ कि कुछ लोगों की इस बहाव में बह जाने वाली मानसिकता के बावजूद ज्यादातर निरंकारी अनुयाई सेवादल के मार्चिंग गीत की वास्तविक भावना को स्वीकार करते हैं और आम लोगों से किसी भी किस्म का भेद भाव नहीं रखते |

भारत एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य है जिसे कुछ लोग बहुत हद तक स्वीकार नहीं करते इसलिए संविधान बदलने की बात भी कही जाती रही है लेकिन संविधान के निर्माण में जो पवित्रता महसूस हुई है वह असाधारण है इसलिए संविधान को ही सर्वोच्च वरीयता दी जानी चाहिए |

संविधान को जो लोग विशेष महत्व नहीं देते उन्हें महत्व नहीं दिया जाना चाहिए क्यूंकि ऐसे लोग तो छुआछूत भी मानते हैं |वे तो मानवता का भी विरोध करते हैं |लेकिन निरंकारी मिशन का तो मुख्य स्वर ही मानवता का है |

बाबा हरदेव सिंह जी से अक्सर एक प्रश्न आम तौर से पूछा जाता रहा है और हम लोग जो बाबा जी अथवा माता जी के अनुयाई कहलाते हैं हमसे अक्सर लोग पूछते हैं कि आपके मिशन में और तो सब बातें सही हैं लेकिन एक-दूसरे के चरण स्पर्श का जो चलन है वह हमें मिशन से जुड़ने में बाधा उत्पन्न करता है |

एक सज्जन जो कुछ साल पहले मेरे अफसर थे |उन्होंने मुझसे पूछा कि हमारे कुछ रिश्तेदार भी निरंकारी हैं ,आप लोग एक दूसरे के पैर क्यों छूते हैं ,मैंने एक अति साधारण तर्क दिया |मैंने उनसे पूछा-सर,हम चरण किसके स्पर्श करते हैं ?

वे बोले-जिनको हम असाधारण तौर पर सम्मान देने योग्य मानते हैं |

अब कोई इंसान हमें असाधारण सम्मान देने योग्य मान ले और हम भी उसे उतने ही सम्मान का न्यूनतम पात्र स्वीकार कर लें तो जो स्थिति उत्पन्न होगी उसे समानता ही तो कहेंगे ?

इस प्रकार निरंकारी मिशन समानता और मानवता का बड़ा काम कर रहा है |

उन्होंने मेरी कही बात को एकदम स्वीकार कर लिया |

इस आदर्श स्थिति के समकक्ष जब हम किसी का रोजी -रोटी कमाने का संवैधानिक अधिकार भी छीन लेंगे तो इसे क्या कहेंगे ?

हम यह भली भांति जानते हैं कि जो रेहड़ी पर फल बेचकर गुजारा कर रहा है उसे जीविकोपार्जन अर्थात रोटी कमाने का अधिकार भारतीय संविधान ने दिया है और अभी तक तो देश में संविधान का ही शासन है तो क्या किसी मुख्यमंत्री को भारतीय संविधान से इतर अपना अलग शासन चलाने का अधिकार है ?

सब जानते हैं कि पेड़ से टूटे फल में कोई मिलावट नहीं हो सकती |

और नब्बे के दशक में जब मैं मुज़फ्फरनगर में था तो सावन के महीने में सड़क के दोनों तरफ कावड़ियों के झुण्ड के झुण्ड चलते थे |

स समय तो हमने कावड़ियों और फल बेचने वालों में कोई विवाद नहीं सुना और कावड़िये कभी भी कमजोर नहीं थे तो विवाद तो कभी कोई रहा नहीं ,फिर संविधान द्वारा दिए गए अधिकार की हत्या क्यों की जा रही है यह मेरी समझ से तो परे है |

निरंकारी मिशन का छोटा सा अनुयाई होने के नाते सिर्फ यही विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ कि-मानवता के ज़ख्मो को प्रेम से सीने दो ,जियो और जीने दो