सत्गुरु चमत्कार तो कर सकता है लेकिन आधार निरंकार का ही लेना चाहिए

-  रामकुमार सेवक 

मुझे ब्रह्मज्ञान की दात सत्गुरु बाबा गुरबचन सिंह जी के युग में मिली थी |यह उत्तर प्रदेश का एक क़स्बा मुरादनगर था |

मैं तब 6 th कक्षा में पढता था |निरंकारी मिशन के काव्य मंच लोक कवि सभा के पुराने लोकप्रिय- कवि थे बलवंत सिंह जी कमला | उनके माध्यम से ही सत्गुरु ने मुझे ब्रह्मज्ञान की दात बख्शी |

धीरे -धीरे महसूस हुआ कि यह कोई सामान्य घटना नहीं है बल्कि जीवन मुक्ति प्राप्ति की एक संभावना उत्पन्न हो गयी है |

इस कलियुग में तो कोई मुक्ति अथवा मोक्ष की बात भी नहीं करता लेकिन बाबा हरदेव सिंह जी के युग में मिशन में मर्यादा की स्थापना साकार होते देखी |

मर्यादा की स्थापना के माध्यम थे -युगदृष्टा बाबा हरदेव सिंह जी ,जिन्होंने अपने कर्म से मर्यादा की व्यावहारिक शिक्षा दी |

बाबा जी की क्षमता जबरदस्त थी |वे अपनी क्षमता का प्रदर्शन कभी नहीं करते थे |इसी का परिणाम था कि हम लोगों को बाबा जी का स्पष्ट आदेश था कि चमत्कारों का आधार कमजोर होता है इसलिए निरंकार के विश्वास को ही मजबूत करने वाली रचनाएँ छापी जाएँ |

यह एक अलग बात है कि खुद मैंने अपने जीवन में उन्हें घटित होते देखा है |अक्टूबर अथवा नवंबर 1993 की बात है,युग सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी का था |15 अगस्त 1993 को दिल्ली में आकर नया-नया बसा था |

1993 में आदरणीय महात्मा निर्मल जोशी जी उन दिनों भी प्रकाशन विभाग में हमारे मुख्य संपादक हुआ करते थे |

फरवरी 1986 में जब मैंने प्रकाशन विभाग में सेवा प्रारम्भ की थी तो तब से लगातार उनका प्रेम मिल रहा था |

जब मैं मुरादनगर में अपने घर आया तो मैंने अपने परिजनों से आदरणीय महात्मा निर्मल जोशी जी को जब मिलवाया तो उनका परिचय इस तरह दिया कि कुछ लोग सख्त किस्म के होते हैं |लेकिन इनमें से कुछ नारियल के प्रकार के होते हैं ऊपर से सख्त लेकिन भीतर माँ का दिल |

मैं जब दिल्ली पहली बार आया तो उनसे बात करने की भी हिम्मत न पडी थी हालांकि वे किसी को भी डांटते नहीं थे बल्कि बहुत प्रेम से बात करते थे लेकिन ऊपर से बहुत सख्त लगते थे |

जोशी जी पहले किसी को भी परखते थे और एक बार समझ लेते थे तो उससे वे खुलकर प्यार करते थे |मैं ऐसा ही खुशकिस्मत इंसान रहा हूँ |मुझे वे प्यार भी बहुत करते थे |

उनके सुपुत्र विनय जोशी जी से भी मेरा बहुत प्रेम था |उन्होंने बताया था कि पापा जी जिसको भी प्यार करते हैं फिर उसकी हर बात का ख्याल करते हैं |

वे ताऱीफ खुलकर करते हैं और डाँटते भी खुलकर हैं |वे तारीफ भी सबके सामने करते हैं और आलोचना भी सबके सामने |वे आम तौर से किसी का कुछ भी छिपाते नहीं हैं |

मैंने यह महसूस भी किया कि जब मैं मुज़फ्फर नगर से दिल्ली आया अथवा यदि मुझे दिल्ली में कहीं जाना होता था तो वे पूरी कोशिश करते कि मुझे कहीं भटकना न पड़े जबकि दिल्ली में तब भी किसी को कोई रास्ता बताने पर यकीन नहीं रखता था |कई लोग तो सीधे गर्दन हिला देते थे इसका अर्थ था कि अपना रास्ता देखो |

लेकिन सब जगह ऐसा नहीं है बहुत लोग जोशी जी की तरह दयालु भी हैं और ऐसे ही लोग इंसानियत को जीवित रखे हुए हैं |

1993 में मैं पहली बार कलकत्ता गया ,यह फरवरी 1992 की बात है |जोशी जी का मुझसे प्यार बहुत था |मुरादनगर ,जहाँ मेरा जन्म हुआ ,वे वहाँ भी जा चुके थे |विवाह के बाद मैं पांच वर्ष वहीं रहा |

9 जनवरी 1989को सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने वहां कृपा पूर्वक दर्शन दिए |  

मेरा विवाह 1987 में हुआ था |तब मेरी नियुक्ति दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में थी |मुरादनगर एक टाउन है ,छोटे शहरों का अपना वातावरण होता है |निर्मल जोशी जी भली भांति जानते थे कि हमारे घर का वातावरण इतना सहज नहीं था |उसका बड़ा कारण मेरे शुभचिंतक यह बताते थे कि मेरे परिवार में पहली संतान दो बेटियां थीं |

यद्यपि हम प्रगतिशील लोग थे और आध्यात्मिक भी थे ही लेकिन वहां के वातावरण के नकारात्मक प्रभावों का नकारात्मक असर मुझे नज़र आ रहा था |

आदरणीय निर्मल जोशी जी मेरे पिता की उम्र के थे और विद्वान ब्राह्मण भी थे |उनकी विद्वता का मुझ पर गहरा असर था |

निरंकारी मिशन में जो मौलिक वक्ता थे ,उनमें से एक वे भी थे |

कलकत्ता के लिए जब हम राजधानी एक्सप्रेस से चले ,जोशी जी ने बहुत आशीर्वाद दिए |सन्त निरंकारी  के संपादक भूपेंद्र बेकल जी भी उस समय जीवित थे और कलकत्ता में ही नियुक्त थे |

फरवरी 2012 में मैं अपनी पत्नी,माता-पिता और दो रिश्तेदारों के साथ कलकत्ता पहुँच गया |

कलकत्ता पहुँचने से पहले ही मेरी श्रद्धा प्रेरक विभूतियों  स्वामी विवेकानंद,नेताजी सुभाष चंद्र बोस,कवि गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के प्रति बहुत गहरी थी |उनके स्मृति स्थलों पर मेरा जाने का इरादा था |

समागम के पहले दिन मुझे सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी और निरंकारी राजमाता जी के दर्शन हुए |समागम के पहले दिन एक चमत्कार सा घटित हुआ |

रात्रि को जब हम सोये तो एक सपना मैंने देखा जैसे हमें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है |यह हम चाहते थी थे |पत्नी से जब मैंने सपने का वर्णन किया तो मुझे यह जानकर घोर आश्चर्य हुआ कि पत्नी ने स्वयं भी ऐसा स्वप्न देखा था |

इस प्रकार कलकत्ता समागम का पहला दिन हर्षमय लगा |

समागम के बाद कलकत्ते से जब मैं दिल्ली पहुँचा तो आदरणीय निर्मल जोशी जी ने दो नवजात शिशुओं के जन्म की मिठाई खिलाई और विनोदपूर्ण स्वर में बोले कि-सेवक जी,बाबा जी इन दिनों पुत्र बाँट रहे हैं ,आप भी लाइन में लग जाओ |

यह संभवतः 20फरवरी थी |19  नवंबर 1993  को बड़े पुत्र कुणाल का जन्म हुआ |इस प्रकार कलकत्ते में एक अलग प्रकार की भूमिका बनी | 

निरंकार पर यकीन का यह एक अलग प्रसंग था जिससे यह भाव सिद्ध हुआ कि निरंका
र अपना विश्वास खुद ही प्रदान करता है |