इस युग के दृष्टा की लीलाएं

कुछ वर्ष पहले जब वार्षिक समागम दिल्ली में होता था ,बाबा हरदेव सिंह जी संतोख सरोवर के आस-पास के मैदानों में प्रेम की लीलाएं दिखाते थे |टी.वी.पर हम इन लीलाओं का सीधा प्रसारण देखते थे |उन दिनों की याद करते हुए मुझे अपनी यह टिप्पणी मुझे सहज ही याद आ रही है |कोई महात्मा मुझसे फोन पर पूछ रहे थे कि-निरंकारी कॉलोनी के आस-पास क्या हो रहा है तो मुझे ध्यान में वह दृश्य आ गया जिसमें बाबा जी श्रद्धालुओं के सागर में आनंदित भक्तों को प्रेम लीलाएं दिखा रहे होते थे |

समय के साथ हमने उस दौर को अस्त होते हुए देखा |   

भगवान की लीलाओं में आज भी बहुत आनंद है ,यह अलग बात है कि भक्ति का पथ आसान नहीं है |इसके बावजूद उस्ताद मान सिंह जी मान ने बहुत वर्ष पहले भक्ति पर्व समागम के अवसर पर मुझे कविता लिखने के लिए शीर्षक दिया था कि-भक्ति मार्ग जितना मुश्किल उतना ही आसान भी है |

सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी की छत्रछाया में आयोजित मुझे इस समागम में कविता प्रस्तुत करने का सुअवसर मिला था |

उस्ताद जी का कहना था कि भक्ति मार्ग है तो कठिन चूंकि इसके बारे में सिख मत में कहा गया है-वालयो निक्की और खंड्यो तिक्खी ,कहते हैं कि यह मार्ग ऐसी तलवार की धार पर चलने जैसा है,जिसके बारे में कहा गया कि यह तलवार बाल से भी बारीक है और बेहद तीखी है |

जो तलवार से भी तेज हो और बाल से भी बारीक हो,तो उसमें किसी के भी ज़ख़्मी होने की संभावना बहुत ज्यादा है |वास्तव में दिक्कत यह है कि यहाँ दिखावा नहीं चलता और आजकल धर्म में दिखावा बिलकुल आम है |

इस दृष्टि से भक्ति को तलवार से भी तेज और बाल से भी बारीक माना जा रहा है तो स्पष्ट है भक्त होना आसान नहीं है |      

आज सुबह सत्संग में महात्मा बता रहे थे कि राम जी की बहुत महिमा है |जब उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त कर ली तो अयोध्या लौटने पर उन्होंने उन सबका धन्यवाद किया जिन्होंने लंका विजय के अभियान में थोड़ा सा भी योगदान दिया था |

विभीषण जी,सुग्रीव जी ,नल-नील आदि सब छोटे -बड़े पात्रों का तो उन्होंने जिक्र किया ही ,हनुमान जी को उन्होंने कोई उपहार नहीं दिया |महात्मा ने बताया कि भरत जी ने हनुमान जी की प्रशंसा करते हुए उनके सम्बन्ध में बहुत सी बातें कहीं |

भरत जी की बात सुनकर रामजी बोले-भरत भाई कपि से उऋण हम नाहीं अर्थात हनुमान जी ने जो योगदान दिए हैं ,उनसे हम कभी उऋण नहीँ हो सकते | 

अर्थात राम जी को तो सब भगवान मानते हैं और वे स्वयं को हनुमान जी का ऋण चुकाने में स्वयं को असमर्थ मानते हैं |इसे रामजी की विनम्रता समझें अथवा सामर्थ्य की कमी ?

मुझे लगता है कि अगर राम जी असमर्थ हैं तो दुनिया में कोई भी समर्थ नहीँ हो सकता | 

उन्होंने एक और प्रसंग सुनाया -रामकृष्णपरमहंस के बारे में उन्होंने एक दिव्य प्रसंग सुनाया |उसमें एक गहरा रहस्य था क्यूंकि अक्सर उस पक्ष की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता है |

कलकत्ता के एक सेठ को रामकृष्ण जी के दिव्य चरित्र ने बहुत प्रभावित किया |सेठ जी रामकृष्ण जी की कुटिया पर पहुंचे और बोले कि -मैंने सुना है कि आपके भगवान् के साथ बहुत गहरे सम्बन्ध हैं |काली माता जी के साथ भी आपका वार्तालाप चलता रहता है |

सेठ ने जो भी कहा उसे सुनकर रामकृष्ण जी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ |

सेठ जी काली माता को अपने घर बुलाकर उनकी सेवा करना चाहते थे |  

रामकृष्ण जी ने सेठ जी से उनका पता पूछा |

सेठ जी ने अपनी महलनुमा कोठी का पता लिखकर दे दिया |

रामकृष्ण जी ने कोठी का पता पढ़ा और पढ़कर बोले -यह तो आपकी कोठी का पता है,यह आपका पता तो नहीं है |अब सेठ जी ने अपने व्यापार और दुकान का पता दे दिया |

रामकृष्ण आश्चर्य करते हुए बोले-ये तो आपकी दुकान का पता है ,आपका पता कहाँ है ?

दुकान और घर के अलावा उनका पता और क्या हो सकता है ,सेठ जी सोच नहीं सके |रामकृष्ण जी ने कहा कि अपना खुद का पता मालूम करो |जब आपको खुद का पता मालूम हो जाएगा तो माँ और आपके बीच जरा भी दूरी नहीं रहेगी |

सिर्फ सत्गुरु ही हमारा निज से साक्षात्कार करवा सकते है चूंकि यह बाहर की खोज नहीं बल्कि भीतरी खोज है |कबीर जी कहते हैं -घूंघट के पट खोल री तुझे पिया मिलेंगे |         

 -रामकुमार सेवक