रामकुमार सेवक
निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी अक्सर फरमाते थे कि गुरमुख -भक्त किसी विवाद को पत्थर की लकीर नहीं बनाते |वे तो पानी पर लकीर खींचते हैं इसलिए वे दीवारें नहीं खड़ी करते बल्कि दो दिलों के बीच पुल बनाते हैं | मुक्ति अथवा मोक्ष की एक मात्र शर्त यही है कि मन में जरा भी अहंकार न हो |गीता में स्पष्ट कहा गया है अध्यात्म पथ में महात्मा कोशिश करते हैं ,मन में जरा भी अहंकार न हो |
अहंकार को मन से दूर रखने के लिए महात्मा विभिन्न यत्न करते हैं जैसे निरंकारी मिशन के पांच प्रण अहंकार को दूर रखने की ही कोशिश हैं |
तन ,मन और धन यदि सोचकर देखें तो इसे अर्पित करने के बाद शेष कुछ बचता ही नहीं |सोच कर देखें तो शरीर को बनाये रखने के इंसान कितनी ही exercises
(व्यायाम) आदि शरीर का महत्व कम नहीं होता |तन को स्वस्थ रखने के लिए हम कितने अधिक उपाय करते हैं |इसी प्रकार मन और धन भी बेहद महत्वपूर्ण हैं |.
मिशन का प्रण है कि तन,मन ,धन ईश्वर की देंन हैं इन्हें ईश्वर के ही समझिये |अगर हम इस सिद्धांत को प्रण मान लें तो इनकी महत्ता बहुत अभिक बढ़ जाती है |
इस दृष्टि से अहंकार आने की गुंजाईश ख़त्म हो जाती है |लेकिन हर इंसान ने तो परमात्मा का बोध हासिल नहीं किया है इसलिए अहंकार एक बड़ी समस्या है |
पिछले दिनों अहंकार का विचित्र नमूना सामने आया |एक पिता अपने ही बेटे के विरुद्ध मुकदमा दायर करने के लिए अपने भतीजे के पास,जो कि एक सफल वकील था के पास पहुंचे |
भतीजे ने कहा -ताऊ जी,क्यों न मामला घर में बैठकर ही सुलझा लिया जाए क्यूंकि केस चलेगा तो परिवार की बदनामी होगी |
बुजुर्ग ने बड़ा दिल दिखाया और बड़ा दिल होना ही बुजुर्गी का लक्षण है इस प्रकार उन्होंने अपनी महानता सिद्ध की |
भतीजे को लगा कि कोर्ट्स में पैसा खर्च करने की बजाय क्यों न बड़ों से माफी मांग ली जाए |इससे परिवार की फूट पर पर्दा पड़ा रहेगा और मेहनत से कमाया हुआ धन भी घर में ही रहेगा | लगता था कि इस प्रकार मामला सुलझ जाएगा |
वास्तव में बुजुर्ग की एक छोटी सी शर्त थी और उन्होंने भतीजे से कहा भी कि तेरी सोच बढ़िया है लेकिन तेरे भाई यानी बुजुर्ग का पुत्र क्या मुझसे बिना शर्त माफ़ी माँगेंगा ?
भतीजे ने कहा -आप तो उसके पिता हैं उसे माफी मांगने में कैसी शर्म ?वो आपसे जरूर माफी माँगेंगा इसलिए केस करने की बात अपने मन से निकाल दें |
बुजुर्ग ने भी यही सोचा लेकिन किसी ने एक फिल्म में गीत गाया था कि-हम उस देश के वासी हैं ,जिस देश में गंगा बहती है |
वाकई यह वही देश है जिसमें गंगा बहती है लेकिन यही पूरा सच नहीं है |यह वह देश भी है जिसमें छोटे भाई ने बड़े भाई को पांच गांव देने से भी इंकार कर दिया था |उसने पांच गाँव देने की बजाय महाभारत के युद्ध का विकल्प चुनना बेहतर समझा |
दुर्योधन ने भगवान कृष्ण के शांति प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि हे केशव ,मैं बिना युद्ध के सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं दूंगा |
इस प्रकार शांति का देश युद्ध का देश बन गया |और युद्ध का देश इंसान ने ही बनाया |भगवान के सन्देश तो हमेशा शांति के लिए ही होते हैं लेकिन इंसान भगवान की बात मानता कहाँ है |
ज्ञात हुआ कि बुजुर्ग के बेटे ने बुजुर्ग के भतीजे से कहा -मामला बात का है |हम अपनी बात को नीची नहीं होने देंगे |
बुड्ढा केस करे तो सही |
भतीजे ने कहा भी ,क्या बाप और बेटे का सम्बन्ध कुछ भी नहीं ?
बुजुर्ग के पुत्र ने कहा -भले ही जितने साल की जेल क्यों न झेलनी पड़े ,मैं माफी नहीं मांगूंगा |
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इस दृष्टिकोण से देखें तो पिता और पुत्र के प्रेम में भी वह सहजता नहीं बची है |जबकि निरंकारी मिशन में यह बिलकुल आम है |निरंकारी मिशन में यह बिलकुल आम इसलिए है क्यूंकि यहाँ सुमिरन में ही क्षमा याचना का भाव समाहित है |
इस दृष्टिकोण में तीन पंक्तियों का समूह मिशन के अनुयाइयों को चेतना से भर देता है |अगर गहराई से सोचें तो पहली पंक्ति -ज्ञान योग है ,जब हम कहते हैं-तू ही निरंकार अर्थात इस सर्वव्यापी निरंकार से हमारा संवाद कायम है |
अब एक शिष्य दंडवत प्रणाम करता है-कहता है-मैं तेरी शरण हाँ --पहली पंक्ति ज्ञान योग ,दूसरी पंक्ति-कर्म योग और तीसरी पंक्ति -भक्ति योग |
सत्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी भक्ति की परिभाषा करते हुए पक्षी से तुलना करते हैं कि-एक पंख से पक्षी उड़ान नहीं भर सकता |ज्ञान और कर्म के दो पंखों के सहारे पक्षी ऊंची उड़ान भर लेता है और भक्ति के आकाश की बुलन्दी पर पहुँचा खुद को महसूस करते हैं |
यही भक्ति मनुष्य को झुकने की प्रेरणा देती है और इसी में आनंद है |धन निरंकार जी