गुरु-शिष्य संबंधों का आधार -कुछ लौकिक कुछ अलौकिक

 - रामकुमार सेवक 

       एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार ,शिमला में एक बार बाबा हरदेव सिंह जी के साथ घूम रहे थे ,अचानक बरसात हो गयी |बाबा जी ने सैर रोक दी लेकिन गुरु का कोई भी कार्य अकारण नहीं हुआ करता ,किसी भक्त की अरदास पूरी करने जैसे अनेक कारण होते हैं |

       बाबा जी घर के भीतर चले गए |घर में एक माता थी जो काफी समय से बीमार थी और बिस्तर पर थी |परिवार के सदस्यों ने माता जी को बताया कि बाबा जी आये हैं तो माता जी बेहद प्रसन्न हुई. लगा जैसे उनकी लम्बी इंतजार पूर्ण हुई हो | 

         यह बात माता जी ने कही भी क्यूंकि जीवन पथ के अंतिम क्षणों को पास आते देखकर भक्त के मन में क्या-क्या अरमान मचलते होंगे ,कौन कह सकता है |

         निरंकार और हमारे मध्य कोई दूरी नहीं है यह तथ्य आज भी ज़ाहिर हो गया जब उस घर की माता की लगन को देखा |

         बाबा जी के दर्शन करके माता जी की जैसे लम्बी इंतज़ार पूरी हुई |उस माता ने कहा कि  इतने दिनों से आपके दर्शनों में मन अटका हुआ था |लगता था जैसे दर्शन बिना हुए ही आत्मा का पंछी पिंजरे  को खाली कर जाएगा |

        मन में ऐसी आशंका अक्सर ही होती है लेकिन गुरु और शिष्य का सम्बन्ध माता और संतान के संबंधों से भी अधिक गहरा होता है |

            माता और संतान का नाता तो खून का नाता है लेकिन गुरु और शिष्य का सम्बन्ध रूहानी सम्बन्ध है इसका आधार तो आत्मिक है ,अध्यात्मिक है |     

           बारिश तो माता की अरदास पूरी होने की कारण अनायास ही हो गयी |

ऐसी ही अरदास एक बार कलकत्ते में भी पूरी होते देखी गयी |

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           उन दिनों बाबा जी ने पोर्टब्लेयर जाना था |यह संभवतः 1997 की बात है |उत्तर पूर्वी राज्यों का प्रादेशिक सन्त समागम बर्दवान में होना था |

           समागम में बाबा जी ने जाना ही था लेकिन एक माता की पुकार थी, कि बहुत दिनों से बाबा जी के दर्शन नहीं कर पायी,अगर कलकत्ते में बाबा जी उन्हें दर्शन दे सकें तो आभारी होऊँगी,

बाबा जी ने जाना तो बर्दवान था लेकिन आदेश आया कि कलकत्ता जाना है |

            उधर बंगाल पुलिस परेशान थी |उनका कहना था कि बाबा जी कलकत्ते अभी कैसे आ सकते हैं ?कलकत्ते की सूचना तो नहीं है |

           उन्होंने कलकत्ते और आस-पास के क्षेत्रों के प्रभारी अर्जुन सिंह जी को शिकायत दर्ज करवाई कि आप बाबा जी के पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम को कैसे बदल सकते हैं ?

           अर्जुन सिंह जी ने स्पष्ट किया कि हमने बाबा जी के कार्यक्रम में कोई परिवर्तन नहीं किया है |कार्यक्रम में परिवर्तन तो दिल्ली से ही हो सकता है |

           बाबा जी हवाई अड्डे से सीधे कलकत्ते के सन्त निरंकारी सत्संग भवन में पहुँचे | 

वहॉँ पहले ही बहुत सारे दर्शनार्थी जुटे हुए थे | 

           दर्शनार्थियों में माता हरप्यार कौर जी भी थी जो घर से सन्देश भेज रही थी कि बाबा जी अगर कलकत्ते में आकर दर्शन दे सकें तो अति कृपा होगी |

           पुलिस वालों को क्या पता कि बाबा जी अर्जुन सिंह जी की इच्छा से नहीं बल्कि माता हरप्यार कौर की प्रेम भरी अरदास के धागे में बंधे कलकत्ता आ रहे थे |

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           भक्त और सत्गुरु का नाता तो भाव का नाता है | एक बार बाबा जी उड़ीसा पहुँच गए ,बिना किसी औपचारिक निमंत्रण के |

           निमंत्रण तो कहीं और का था लेकिन गुरु ने किसकी अरदास को कहाँ ,कब और कैसे पूरा करना है यह किसी को भी पता नहीं होता था |

          उड़ीसा के पुरी जिले के ब्रह्मगिरि नगर के पच्चीपाड़ा में एक बहन शांति जी रहती थी |

मुझे तो सिर्फ एक ही कल्याण यात्रा में शामिल होने का सौभाग्य मिला है जबकि कुछ मित्र तो बाबा जी की हर यात्रा के अंग होते थे |

          ब्रह्मगिरि नगर के एक दुर्गम गांव में बहन शांति रहती थी |उनसे मेरी मुलाक़ात तब हुई ,जब मुझे बाबा जी के साथ कलकत्ते जाने का अवसर मिला था |

          जो लोग बाबा जी के साथ बहन शांति जी के गांव में गए थे उनमें से ज्यादातर कलकत्ते की उस यात्रा में भी थे जिसमें मुझे भी साथ रहने का अवसर मिला था |

           इन लोगों में एक आर्टिस्ट भी थे जो लम्बी सी दाढ़ी रखते थे |मुझे वे सज्जन आर्टिस्ट से ज्यादा दार्शनिक लगते थे |

           उस समय तक दिल्ली में निरंकारी सरोवर स्थित ,सन्त निरंकारी संग्रहालय का उद्घाटन नहीं हुआ था |ये आर्टिस्ट शांति जी को बहुत श्रद्धा से देख रहे थे जबकि मिशन के लिए वे एक अतिथि थे लेकिन जब मैं बहन शांति जी का इंटरव्यू ले रहा था, वे भी मेरे पास ही बैठे थे |

          मैंने बहन शांति जी से काफी कुछ पूछा था और कलकत्ते से दिल्ली वापस आने पर सन्त निरंकारी पत्रिका में उसे प्रकाशित भी किया था |

          मुझे बहन शांति जी का परिचय बाबा जी  जी के प्रवचनों को सुनकर ही प्राप्त हुआ था क्यूंकि ब्रह्मगिरि की अपनी यात्रा संपन्न करके जब बाबा जी दिल्ली लौटे तो बहन शांति जी की निर्मल-निश्छल भक्ति की उन्होंने भूरि-भूरि प्रशंसा की थी | 

          मुझे अच्छी तरह ध्यान है कि बाबा जी ने इस बहन की भक्ति के बारे में बताया था कि उड़ीसा का वह भीतरी इलाका जो आदिवासी बहुल था और पूरी तरह अभावग्रस्त था |

          बहन शांति जी ने बहुत श्रद्धा से बाबा जी का दिल से अभिनन्दन किया और गांव में शोभा यात्रा भी निकाली |

      उस बहन के घर में लाइट तक भी नहीं थी लेकिन इस बहन ने साइकिलों पर जाकर ही पूरे इलाके में ब्रह्मज्ञान का प्रचार -प्रसार किया था |

       बाबा जी ने दिल्ली के प्रचारकों से तुलना करते हुए इस बहन की इस भक्ति भावना की खूब प्रशंसा की थी कि यहां अगर संगत में जाना हो तो भी गाड़ियों की मांग की जाती है जबकि वहां गाड़ियां हैं ही नहीं |इस प्रकार बाबा जी ने हम लोगों को दर्पण दिखा दिया था |

       उनका कमरा छोटा सा था लेकिन बाबा जी ने उनकी सहज श्रद्धा को हृदय से स्वीकार किया था कि छोटी-छोटी सुविधाओं के भी न होने के बावजूद इस बहन ने गुरु के हृदय को स्पर्श किया था |

       उसने बाबा जी और उनके भक्तों को भरपूर सम्मान दिया था |मेरी जब इस बहन से बात हो रही थी उस समय तक बहन शांति के गांव की यात्रा को कई वर्ष हो चुके थे तब भी ऐसे दोस्तों  की दृष्टि में इस बहन के प्रति असाधारण श्रद्धा दिखाई दे रही थी |

              आज तक मेरा ह्रदय इस बहन के प्रति श्रद्धा से नत है |