वे इस प्रकार भी प्रभु की बनायीं सृष्टि को सजाना और संवारना चाहते थे

 -रामकुमार सेवक       

       बाबा हरदेव सिंह की दृष्टि बहुत ही पैनी थी |वे टेंटों और शामियानों को सौंदर्य पूर्ण ढंग से लगवाते थे और मिशन का सकारात्मक प्रभाव प्रस्तुत करना चाहते थे |उनका पूरा विज़न ही रचनात्मक था |

       यह 1988 की बात है जब दिल्ली में हो रहे कवि सम्मेलन का शीर्षक रखा गया - बनकर रहिये इंसान यहाँ यह धरती है इंसानो की |

      मैं प्रकाशन विभाग में आदरणीय महात्मा निर्मल जोशी जी के मार्गदर्शन में सन्त निरंकारी हिंदी में सेवाएं देने के लिए सेवारत था |

      प्रकाशन विभाग में जितने सेवादार अथवा सम्पादक थे ,उनमें से ज्यादातर कवि थे |निर्मल जोशी जी,मान सिंह जी मान,बेदिल सरहदी साहब,विनय जोशी जी,सुलेख साथी जी ,अविनाश फितरत जी ,भूपेंद्र बेकल जी,अशोक शौक़ जी आदि सब के सब जोशीले लोग थे |

       1988  में पहली बार मुझे भी इस वैश्विक मंच पर अपनी कविता प्रस्तुत करने का अवसर मिला और बाबा जी के कार्यकाल के अन्त तक यह सौभाग्य मुझे मिलता रहा |

      आदरणीय जे.आर.डी.सत्यार्थी जी मुख्यतः लेखक थे लेकिन चिंतक और विचारशील कवि भी थे |

वे बाबा हरदेव सिंह जी के व्यक्तिगत सचिव भी थे |

     निरंकारी कवियों की संख्या भी काफी थी |पूर्ण प्रकाश साक़ी साहब बहुत बड़े लेखक थे |उनकी पुस्तक युगपुरुष पढ़कर ही मुझे मिशन के इतिहास का ज्ञान हुआ था |वे भी उस्ताद शायर थे |बाबा गुरबचन सिंह जी से उनकी काफी निकटता थी |बाबा हरदेव सिंह जी उनका भी बहुत सम्मान करते थे |

     कवियों में एक धारा साहित्यिक कवियों की भी थी |जिनका नेतृत्व डॉ.जगन्नाथ शर्मा हंस जी करते थे |बाबा हरदेव सिंह जी की छत्रछाया में लोक कवि सभा की हर धारा खूब फल फूल रही थी |

मुझे गुलशन सभरवाल (कानपुरी )जी की याद आ रही है |गुलशन सभरवाल (कानपुरी )जी (हिंदी ,पंजाबी  के प्रतिष्ठित कवि )ने मेरे पूछने पर अपनी कविता ज्ञान और कर्म की पृष्ठभूमि के बारे में एक बार मुझे बताया था कि समागम की कविता लिखनी थी |दोपहर का वक़्त था ,लगभग चार बजे ,बाबा जी मैदान में आये और बोले -कविता लिख ली ?

    जो कवि हैं वे समझ सकते हैं कि कविता का आधार किसी न किसी विचार के रूप में होता है और वह विचार निरंकार भेजता है |धर्म सिंह जी शौक़ साहब कहा करते थे-गैब से आते हैं ख्याल तो आने दे शौक़ ,तेरा क्या जाता है,उन्हें लिख देने के सिवा |

   इस प्रकार बाबा हरदेव सिंह जी कवियों के साथ सीथे सम्बन्ध जोड़कर उन पर कृपा बरसाते थे |      

    लम्बे समय तक सेवादल से जुड़े रहे एक महात्मा ने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि देखा जाता है कि समागमों के आयोजन से पहले विभिन्न स्थानों पर ठेकेदार के आदमी सब सामान बेतरतीब फ़ेंक जाते हैं लेकिन बाबा जी का ध्यान होता था कि उन को इस खूबसूरती से लगाया जाये कि हर किसी पर बेहतर प्रभाव पड़े |

      सेवादल को पूरा नक्शा खड़ा करने से पहले गुरु की दृष्टि की बारीकी का ध्यान रखना पड़ता था |सिर्फ शामियाने खड़े करने में ही सौंदर्य का ध्यान रखा जाये ऐसी बात नहीं ,बाबा जी की दृष्टि दरियों आदि पर भी रहती थी |बिछाई आदि में भी वे स्थान की सुंदरता का पूरा ख्याल रखते थे |उन्होंने एक बार कवि सम्मेलन का शीर्षक दिया था कि-प्यार सजाता है गुलशन को और नफरत वीरान करे |

        यह जैसे उनके अंतर्मन का भाव था कि प्यार इस सृष्टि के गुलशन को सजता है जबकि नफरत वीरानी लाती है |उनकी भीतरी दृष्टि इस जहाँ को सजाना और संवारना चाहती थी |

उन्हें शोर जरा भी पसंद न था |

        महात्मा ने बताया कि बाबा जी के कार्यक्रम में चार माइक होते थे ,उनकी आवाज़ को वे ऐसे लेवल पर रखते थे कि ज़रा भी शोरो गुल न हो |

        इस प्रकार बाबा जी जीवन को सुव्यवस्थित करना चाहते थे |सुगन्धित रखना चाहते थे |