निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी -दिव्य सत्गुरु कैसे थे?

 रामकुमार सेवक

 

 बाबा हरदेव सिंह जी सत्गुरु तो थे ही लेकिन दिव्य सत्गुरु थे ,यह कहने से पहले कुछ तर्क खोजने होंगे चूंकि यह दुनिया आसानी से तो परमात्मा को भी नहीं मानती ,फिर बाबा हरदेव सिंह जी को दिव्य आराम से मान लेगी ,लगता नहीं |

वे दिव्य थे ,इसके समर्थन में मुझे कुछ तर्क जुटाने होंगे |इसके लिए मुझे उनका यह प्रवचन ही आधार बन गया |

अगर आधार मजबूत मिल जाए तो तर्क गढ़ना कोई मुश्किल नहीं |वे कहते थे -एक को जानो,एक को मानो ,एक हो जाओ |दिव्य सत्गुरु मैंने उन्हें कुछ सोचकर लिखा है |

दिव्य वह होता है ,जो कोई चमत्कार करता है |

प्रायः हम दिव्य उसे ही कहते हैं ,जो राख से सेब पैदा कर दे |

भारत में कुछ गुरु ऐसे भी रहे हैं जो हवा में से घड़ियाँ पैदा कर देते थे |उन्हें तो दिव्य कह ही सकते हैं क्यूंकि निरंकार अथवा निराकार में से कोई वस्तु तो उत्पन्न नहीं होती इसलिए उन गुरु का घड़ियाँ पैदा कर देना ख़ास तो है ही लेकिन इतना ख़ास नहीं इसलिए आगे चलते हैं | 

मेरा पहला प्रश्न तो यही है कि वह एक कौन है जिसे जानने की बात बाबा जी कह रहे हैं ?

इस प्रश्न के कारण यह वाक्य साधारण नहीं रहा है |

हम लोग सामान्य तौर पर यही मानते हैं कि बाबा जी एक प्रभु को जानने की बात कह रहे हैं लेकिन दूसरी ओर कोई व्यक्ति परमात्मा को जानना संभव मानने को स्वीकार करने को तैयार ही नहीं है |

        किसी भी धर्म को मानने वाला व्यक्ति परमात्मा के अस्तित्व को तो मान ही लेगा लेकिन मेरे एक मित्र जो ब्रह्मज्ञानी भी थे ,उनसे एक व्यक्ति ने पूछ लिया कि आपको निरंकारी मिशन में क्या मिला ?उन्होंने कहा-परमात्मा |

वह कहने लगा ,आपने परमात्मा को देखा है ?

फूल कुमार जी ने कहा-हाँ ?

सामने से सज्जन ने कहा कि कहाँ है परमात्मा ,मुझे भी दिखाओ ?

फूलकुमार जी समझ गए कि वह परीक्षा लेना चाहता है,सच्चा जिज्ञासु नहीं है |

फूल कुमार जी ने खरी बात कही क्यूंकि वे खरे महात्मा थे |उन्होंने कहा कि-परमात्मा क्या बकरी का बच्चा है कि बगल में से निकालकर दिखा दूँ ?

इतने खरेपन की उम्मीद सामने वाले को भी नहीं थी इसलिए बगलें झाँकने लगा |

बहरहाल फूलकुमार जी ही नहीं बल्कि निरंकारी भक्त परमात्मा को जानना अति सरल बताते हैं |बहरहाल परमात्मा को जानने की बात में दम नज़र आता है क्यूंकि भक्त कवयित्री मीराबाई ने अपने एक भजन में,उस ज़माने में कहा-

पायो री मैंने राम रतन धन पायो | 

यह बात तर्कपूर्ण भी लगती है चूंकि एक अन्य भजन में शायर साहिर लुधियानवी ने लिखा है-

हे रोम -रोम में रमने वाले राम |

जब रोम-रोम में बसा हुआ है तो परमात्मा को वो कहना दोषपूर्ण है चूंकि बाबा जी परमात्मा को तू कहते थे |

उन्होंने कहा -एक को जानो 

निरंकारी मिशन का तत्व ज्ञान ही यही है-तत्वमसि अर्थात वही तो तू है |

इससे  आगे बाबा जी कहते हैं -एक को मानो |

भारत में बहुदेव वाद है क्यूंकि मेरा जन्म हिन्दू के रूप में हुआ और हिन्दुओं में भगवान एक नहीं है |मेरे बचपन में भी यह बड़ी समस्या थी |

राम जी अयोध्या में जन्मे थे और एक थे ,यह बात तो समझ में आती है लेकिन बाबा जी जिसे जानने की बात कह रहे थे वह आकार में नहीं था |

आजकल तो एक राजनीतिक पार्टी राम को लाने का दावा कर रही जबकि रोम -रोम में बसने वाले राम से उसका कोई सम्बन्ध नहीं |

बहरहाल परमात्मा को एक ही मानना बेहतर है |इसके समर्थन में मुझे हरिओमशरण जी का गाया हुआ यह भजन याद आ रहा है-

दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया 

      इसलिए बाबा जी की बात में बहुत सार है |

आगे वे कहते हैं -एक को मानो 

जैसे पहले ही कहा जा चुका है ,हिन्दुओं में देवी देवताओं की बड़ी संख्या है |यह संख्या लाखों -करोड़ों में हो सकती है लेकिन बाबा जी ने किसी को कुछ नहीं कहा |

भारतीय संविधान भी आस्था की स्वतंत्रता हर नागरिक को देता है इसलिए हम भी ज्यादा गहरे नहीं उतरेंगे |

आगे बाबा जी कहते हैं - 

एक हो जाओ |अब मामला ज्यादा गंभीर हो गया ,जिसकी विवेचना जरूरी है |

बाबा जी दिव्य सत्गुरु थे इसलिए उनकी बातों पर पूर्ण विचार किया जाना चाहिए |बाबा जी की बातों में तो ज्ञान का सम्पूर्ण सार निहित है इसलिए उनका जितना भी विवेचन करेंगे ,लाभप्रद ही होगा |

धन निरंकार जी