स्मृति -बाबा गुरबचन सिंह जी-२ दृढ संकल्प और प्रेम के जीवंत स्वरूप थे बाबा गुरबचन सिंह जी

 -रामकुमार सेवक  

जिन्हें हम युगप्रवर्तक के विशेषण से श्रद्धापूर्वक सम्बोधित करते हैं ,उन्होंने हर मानव को विवेकपूर्वक कर्म करने का सन्देश दिया और समाज को दूरदर्शिता का सन्देश दिया ,बाबा गुरबचन सिंह जी बहुत मेहनतकश महात्मा थे |उन्होंने हर इंसान को मानवता और कर्म का सन्देश दिया |

वे पूर्णतः सत्यनिष्ठ थे क्यूंकि  कभी  भी वे सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों से विचलित नहीं हुए |

यद्यपि उनके जीवन पर अस्तित्व का सर्वोच्च खतरा मंडरा रहा था लेकिन मानवता से वे रत्ती भर भी अलग नहीं हुए |उन्हें सत्यमेव जयते के सिद्धांत में अटल भरोसा था |

1978  के दौर में जबकि निरंकारी मिशन के विरुद्ध एक प्रकार का अभियान तो चल ही रहा था साथ ही निरंकारी अनुयाइयों को पंजाब के अलग -अलग शहरों में गोलियों का शिकार भी बनाया जा रहा था |

लोग महसूस कर रहे थे कि क्या निरंकारी मिशन ख़त्म हो जाएगा ?

लोगों ने बाबा जी से यह प्रश्न किया -बाबा जी-जीत सत्य की होती है या झूठ की ?

बाबा जी ने कहा -दोनों की |

पूछने वाला इस उत्तर से चौंका और उसने पूछा- कहा तो गया है -सत्य की जीत होती है|

वास्तव में उन दिनों मिशन पर संकट के बादल छाये हुए थे |सत्य की विजय के तो कोई लक्षण नज़र नहीं आ रहे थे |

बाबा जी ने इसीलिए तो कहा-दोनों की |प्रश्न पूछने वाले की जिज्ञासा शांत करते हुए बाबा जी ने कहा -शुरू में लगता है कि जैसे झूठ जीत रहा है लेकिन अंत में जीत सत्य की ही होती है |

जनवरी 1980  में करनाल की सेशन कोर्ट द्वारा निरंकारी अनुयाइयों को रिहा कर दिया गया |

उस समय सन्त निरंकारी मंडल के प्रकाशन विभाग ने एक प्रपत्र प्रकाशित किया था ,जिसका शीर्षक ही था सत्यमेव जयते |इस विश्वास के बावजूद परिस्थितियां अच्छी नहीं थी |बाबा जी के जीवन पर अनेकों हमले हो चुके थे लेकिन बाबा जी की सत्यनिष्ठा डिगी नहीं |बाबा गुरबचन सिंह जी पूरे देश में मिशन के सत्य सिद्धांतों का प्रचार प्रसार कर रहे थे |

उनके जीवन पर चौथा हमला दुर्ग (मध्य प्रदेश )में किया गया |इससे पहले ही बाबा जी अपने जीवन पर खतरा महसूस कर रहे थे लेकिन उनके संकल्प फौलादी थे और सत्यमय सिद्धांतों में उनकी गहरी निष्ठा थी |

मुझे 21अप्रैल 2024  को निरंकारी कॉलोनी दिल्ली स्थित सन्त निरंकारी सत्संग में यह कविता प्रस्तुत करने और बाबा गुरबचन सिंह जी को अपनी श्रद्धा प्रकट करने का अवसर मिला -

फौलादी संकल्पों का था -नाम बाबा गुरबचन 

था एकता और शांति का काम बाबा गुरबचन 

जिंदादिली से वे रहे ,जब तक जिये संसार में 

जिन्दा है हर इक सांस में पैगाम बाबा गुरबचन

 

गुरबचन इक ध्येय था ,इंसानियत का दोस्तों 

फूल की खुशबू सरीखा ,विश्व भर में छा गया 

दुश्मनी के बदले में भी, दी थी उसने दोस्ती 

इंसानियत का फलसफा वो कर्म से समझा गया  

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इस दुनिया के रंग हजार 

प्यार के बदले करती ख्वार 

ऐसा मानव का किरदार 

मानवता पर करता वार 

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हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख ईसाई 

अलग अलग हैं चारों भाई  

इक दूजे से पीठ सटी है,

जैसे प्यार की शामत आयी 

लहू के छींटों की बौछार ,इस दुनिया के रंग हज़ार 

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अलग -अलग रंगों के झंडे 

झंडों से बाहर हैं डंडे 

इक -दूजे को नहीं सुहाते,

मुल्ला ,क़ाज़ी ,पादरी ,पण्डे 

मार में खोजें धर्म का सार ,इस दुनिया के रंग हजार 

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अत्याचारी ढंग थे देखे 

कैसे-कैसे रंग थे देखे 

मानवता पर बढ़ते खतरे 

दिल सत्ता के तंग थे देखे 

धरती पर बढ़ रहा था भार ,इस दुनिया के रंग हजार 

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धर्म का लक्षण -करना प्यार 

मानवता मनवता और सद-व्यवहार 

गुरु वचन ने समझाया था 

मानव -नानव का सत्कार 

रहमत -बख्शीश का आचार ,इस दुनिया के रंग हजार ---

 1980 में बैसाखी के अवसर पर चंडीगढ़ में आयोजित मानव एकता सम्मेलन में बाबा जी स्पष्ट कर दिया कि - 

अब तो लाखों गुरबचन सिंह हैं इसलिए सत्य का यह मिशन इस शरीर के नहीं रहने पर भी चलता रहेगा |

बाबा गुरबचन सिंह जी का सत्य और अहिंसा में अटल विश्वास था |

अप्रैल 1980 में प्रकाशित  माया पाक्षिक पत्रिका को दी गयी एक वार्ता में बाबा जी ने सत्य और अहिंसा पर अटल विश्वास प्रकट किया था |डॉ.कुसुम भार्गव से उन्होंने कहा -हम तो अहिंसा पर विश्वास करने वाले लोग हैं |हम हिंसा नहीं कर सकते ,हम तो सहन ही करेंगे |

और 24 अप्रैल 1980 को बाबा जी ने शांति की बलिवेदी पर अपना बलिदान दे दिया |

ध्यान देने योग्य बात यह है कि उन्होंने सहनशीलता और प्रेम के सिद्धांतों को जरा भी नहीं छोड़ा |         

       उन्होंने जीवन को बहुत करीब से देखा था |विभाजन के दिनों में जब वे भारत आ रहे थे |बहुत ही कठिनाई भरे दिन थे |लेकिन  वे तब बहुत जिम्मेदार थे |मिली हुई हर जिम्मेदारी को बहुत निष्ठां से निभाते थे |जैसे जब वो भारत आ रहे थे तो उन्होंने साथ आ रहे हर श्रद्धालु को उनके सामान सहित सुरक्षित भारत में पहुँचाया |

        यह एक बड़ी परीक्षा थी क्यूंकि भारत में भी सांप्रदायिक दंगे फैले हुए थे |इस विषम परिस्थिति में अध्यात्मिकता ही सुरक्षा एक मात्र साधन था चूंकि विवेक ही इंसान का सबसे बड़ा आत्मविश्वास है |

जाग्रत विवेक के कारण ही निरंकारी सन्त किसी विपरीत दिशा में नहीं बहे | 

इस प्रकार बाबा जी ने मानव को शांति और प्रेम की दिशा दी |

इस दिशा में ही मानवता को अग्रसर करते हुए बाबा गुरबचन सिंह जी ने समय के सीने पर अहिंसा और    प्रेम के ऐसे निशान बनाये जो निरंकारी मिशन की जीवंत प्रेरणा को हर मानव के हृदय में जीवंत बनाये रखेंगे |