- रामकुमार सेवक
अध्यात्म किसे कहते है ,इस की शाब्दिक परिभाषा कठिन नहीं है लेकिन समझना और समझना कुछ मुश्किल |है अक्सर हम सत्य को सत्य की तरह स्वीकार नहीं करते बल्कि अपने मन के सत्य का आरोपण उस पर कर देते हैं |
जैसे पीली रोटियों के किसी भीअस्तित्व को हम अक्सर मक्का की रोटी समझ लेते हैं |
कई बार वह पीली प्लास्टिक की कोई चीज होती है जिस पर हम मक्का की रोटी का आरोपण कर देते हैं और हम सत्य से काफी दूर चले जाते हैं |
निरंकार स्थूल नहीं है क्यूंकि हम इसे उँगलियों से स्पर्श नहीं कर सकते इसी प्रकार अध्यात्म को दिलो दिमाग से महसूस करना होता है |
कुछ साल पहले हम तीन -चार लोग एक महात्मा की गाड़ी में लेडी इरविन कॉलेज में सत्संग करने जाते थे |गाड़ी में बैठते ही हम जैसे सत्संग करना शुरू कर देते थे |
मैं उन दिनों सन्त निरंकारी (हिंदी )का संपादक था तो अध्यात्म के प्रयोग करने का वह सही वक़्त लगता था |हम ऐसी चर्चा करते थे जिसके प्रभाव में हम प्रायः भूल ही जाते थे कि हम कहाँ और किसलिए हैं |यह एक आनदपूर्ण एहसास होता था |
हमारे साथी शशिपाल रावत जी ने एक बार मुझसे कहा-हम सत्यमोहन जी की कार में बैठकर हर सप्ताह लेडी इरविन कॉलेज में जाते हैं |
गाड़ी में बैठते ही आप सत्यमोहन जी से कोई चर्चा करना शुरू कर देते हैं |उस बहाव में हम ऐसे बहते हैं कि हम उस संक्षिप्त यात्रा के कष्ट को तो बिलकुल भूल ही जाते हैं |
कई बार तो हम निरंकार-सतगुरु से किसी ट्रैफिक लाइट के रेड हो जाने की प्रार्थना भी करते हैं क्यूंकि प्रसंग में बहुत ऱस आ रहा होता है |
अब चकित होने की बारी मेरी थी चूंकि हम सब सत्संग से लौटकर अपने -अपने दफ्तर में चले जाते थे ,इस बाध्यता के कारण हम सबको समय से अपने दफ्तर लौटना पड़ता था और रावत जी ट्रैफिक लाइट के रेड होने की इंतज़ार करते थे ,यह आश्चर्य की बात थी |
रावत जी ने कहा -उन प्रसंगों में ऐसा आनंद आ रहा होता है कि मन कर रहा होता है कि अगर जरा देर को गाडी रुके तो प्रसंग पूरा हो जाए |इसके लिए ट्रैफिक लाइट का रेड होना जरूरी है |
यह रस वास्तव में अध्यात्म का रस है |
बाबा बूटा सिंह जी इस रस का भरपूर आनद लेते थे |
पुराने समय में आवागमन के साधन अत्यंत सीमित हुआ करते थे |
मान सिंह जी मान ने अपनी किशोरावस्था में बाबा बूटा सिंह जी के दर्शन किये थे |एक बार बाबा जी ने किन्हीं सज्जनो को ताँगा लाने के लिए भेजा क्यूंकि उन्हें सत्संग करने के लिए किसी गांव में जाना था |
जिन्हें तांगा लेने भेजा ,वे जब ताँगा लेकर आये तो बाबा जी ने उस तांगे के स्थान पर दूसरा ताँगा लाने को कहा |
बाबा जी ने कहा कि किसी कमजोर से घोड़े वाला तांगा लेकर आना |
कोई भी इंसान कभी कमजोर चीज नहीं चाहता इसलिए मजबूत घोड़े वाले टाँगे को वापस भेजने की बात किसी को समझ नहीं आयी लेकिन गुरु का भाव गहरा था |
बाबा जी तांगे में जाते समय ज्ञान चर्चा किया करते थे |
बाबा जी ने कहा कि मजबूत तांगे में यात्रा जल्दी पूरी हो जायेगी इसलिए ,ज्ञान चर्चा समय काम मिलेगा क्यूंकि मजबूत घोडा कुछ ही समय में हमें महात्माओं के घर पहुंचा देगा इस प्रकार अध्यात्म का रास कम आएगा |
शशिपाल रावत जी जिस ट्रैफिक लाइट के रेड होने की बात कर रहे थे उस बात का एक सिरा बाबा बूटा सिंह जी के युग के साथ मिलता था |
इस प्रकार अध्यात्म की परिभाषा हर युग में एक जैसी ही रही है |