-रामकुमार सेवक
कुछ वर्ष पहले हम किसी घर में आमंत्रित थे |वहाँ हमें नाश्ता करने के लिए आमंत्रित किया गया था |
वहाँ उपस्थित एक सज्जन कह रहे थे कि इंसान इतना चालाक है कि परमात्मा के सामने चढ़ाता तो पांच रूपये है अर्थात आरती की थाली में डालता तो सिर्फ पांच रूपये है लेकिन बदले में परमात्मा से इतनी फरमाइशें कर देता है कि शायद पांच लाख में भी पूरी न हों |
वे सज्जन शायद मुझसे यह उम्मीद कर रहे थे कि मैं उनकी हाँ में हाँ मिलाऊँगा या उनकी बात को और आगे बढ़ाऊंगा |
इसमें तो कोई शक नहीं कि इंसान की demands(मांगें )बहुत ज्यादा हैं |मैंने सहज ही कहा कि-भाई साहब आपकी बात तो ठीक है, इंसान की demands तो हनुमान जी की पूंछ को भी पीछे छोड़ सकती हैं लेकिन जिससे हमने प्रार्थना अथवा अरदास की है ऐसे परमात्मा ने तो हमसे कोई demands नहीं कीं इसलिए पांच रूपये थाली में डालने से इंसान की demands को जोड़ना अनुचित है |
भाई साहब ने मेरी बात का विरोध तो नहीं किया लेकिन भीतर से वे मेरी बात से असहमत थे |मुझे साहिर लुधियानवी साहब याद आ गए |
फिल्म नीलकमल में उन्होंने नायिका वहीदा रहमान से कहलवाया-
हे रोम-रोम में बसने वाले राम ,जगत के स्वामी ,हे अन्तर्यामी ,मैं तुझसे क्या मांगू
मैं कई बार सोचता हूँ कि माँगना इंसान की बिलकुल आम आदत है |मुफ्त में कुछ भी मिल जाये ,हाथ फैल ही जाता है |
फिर साहिर साहब ने -
मैं तुझसे क्या मांगू का प्रश्न प्रभु से क्यों किया ?
वास्तव में रोम -रोम में बसने वाला प्रभु हमारे मांगने से पहले ही जानता है कि हमें किस चीज की ज़रुरत है |
साहिर साहब को इसीलिए मैंने आध्यात्मिक कहा क्यूंकि उन्होंने प्रभु को
काबा या काशी,मंदिर या मस्जिद से नहीं जोड़ा |
फिर भी अगर साहिर साहब ने खुद राम से ही पूछा कि-मैं तुझसे क्या माँगूँ ,इससे लगता है कि राम से उनके रिश्ते बहुत गहरे हैं अन्यथा राम से इतना सहज संवाद कोई नहीं करता |
लोग तो परमात्मा को भी मज़ाक का विषय बना लेते हैं-एक मुहावरा भी है-
राम नाम जपना ,पराया माल अपना
|
इसके विपरीत भक्त तो प्रभु को पूर्ण समर्पित होता है इसलिए कहता है-
हे संमरथ परमात्मा,हे निर्गुण निरंकार -तू कर्ता है जगत का,तू सबका आधार
भक्त को अपने दर्द ,अपनी भूख के बारे में बताने की ज़रुरत ही नहीं रहती क्यूंकि यह हमारी हर ज़रुरत को जानता है |भक्त के ईष्ट को ,हर स्थान पर हाज़िर अर्थात मौजूद और नाज़िर अर्थात नज़र आने वाला होना चाहिए |
यह सब पढ़ने में जितना आसान है व्यवहार में उतना ही कठिन है |उस के व्यवहार के बारे में कोई भी निश्चय से कुछ नहीं कह सकता क्यूंकि हम तिलक को तो मस्तक पर प्रदर्शित कर सकते हैं लेकिन हृदय की पवित्रता को प्रदर्शित नहीं किया जा सकता |
ऐसे भक्त भी होते हैं जिनकी किसी भी मांग को प्रभु नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता इसलिए प्रभु से हमारा सम्बन्ध गहरा होना चाहिए दिखावे का नहीं |