-रामकुमार सेवक
पशु -पक्षियों की भाषा सीखने
की चाहत हम मनुष्यों में कभी -कभी पैदा होती है और खासकर तब ,जब मनुष्य
उनसे ज्यादा निकटता महसूस करने लगता है | जो
लोग कुत्ते-बिल्लियां आदि पालते हैं उनमें से कुछ लोग अपने इन पालतुओं को मनुष्यों
से भी ऊंचा दर्जा देने लगते हैं |अपने घरेलू नौकरों को सिर्फ इस बात पर डांटने लगते
हैं कि वह कुत्ते को डौगी क्यों कह रहा है?
तेरह जनवरी 2024को दिल्ली में आयोजित सत्संग समारोह में अपने अनुभव सुनाते हुए रोशनमीनार महात्मा वासदेव सिंह जी ने बाइबिल के पुराने नियम के एक प्रसंग को उद्धृत करते हुए गुरु के वचनो को सदैव हितकर मानने पर बल दिया |गुरु के वचनो को उन्होंने भक्ति में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया |
हजरत
मूसा के एक शिष्य में भी पशु-पक्षियों की भाषा
सीखने
की यह इच्छा उत्पन्न हुई |उसने मूसा से यह इच्छा पूरी करने की प्रार्थाना की |
हजरत
मूसा जानते थे कि यदि इससे मनुष्य का भला होना होता तो तो परमात्मा ने यह क्षमता अन्य
क्षमताओं के साथ मनुष्य को प्रदान कर दी होती इसलिए उन्होंने शिष्य की इस प्रार्थना
को स्वीकार नहीं किया |लेकिन शिष्य ज़िद्दी था
और मूसा का प्रिय भी था इसलिए उन्होंने उसकी इच्छा मान ली और पशु-पक्षियों की
भाषा समझने की क्षमता उसे प्रदान कर दी |
शिष्य
का पशु-पक्षियों से प्रेम भी कुछ ज्यादा ही था |उसके घर में तीन पालतू पशु थे-एक मुर्गा
,दूसरा कुत्ता और तीसरा -एक घोडा |
पहले दिन मुर्गे ने कुत्ते
से कहा-मुझे बहुत भूख लगी है इसलिए कृपा करके अपना भोजन मुझे दे दो |मुर्गे की प्रार्थना
पर कुत्ते का दिल पसीज गया और उसने अपना भोजन मुर्गे को दे दिया |
कुत्ते
का भोजन भी मिल जाने से मुर्गे को संतुष्ट हो जाना चाहिए था लेकिन मुर्गा अभी भूखा
था | अगले दिन फिर मुर्गे ने अपनी प्रार्थना दोहरा दी |लेकिन कुत्ते ने आज भी अपना
भोजन मुर्गे को दे दिया |
दिक्कत
तो तब हुई जब तीसरे दिन भी मुर्गे ने अपनी प्रार्थना फिर दोहरा दी |
कुत्ते
ने अपनी कठिनाई बताई कि भूख तो मुझे भी लगी हुई है |
लेकिन
मुर्गे ने अपनी प्रार्थना फिर दोहरा दी लेकिन कुत्ता आज मानने को राजी न था क्यूंकि
भूख तो उसे भी लगती थी और वैसे भी दया अनंत बार नहीं की जाती क्यूंकि भगवान ने पेट
सबको दिया हुआ है लेकिन मुर्गा कुत्ते की बात मानने को राजी न था और उसकी क्षुधा अब
तक तृप्त न हो सकी थी लेकिन कुत्ता आज दया करने को तैयार न था इसलिए मुर्गे ने उससे कहा -कल घोडा मरने वाला है इसलिए
सिर्फ आज दया कर दो |कल घोड़े का भोजन भी तुम्हीं खा लेना |कुत्ते ने मुर्गे की बात
मान ली |
लेकिन
घोडा तो पूरी तरह जीवित ,स्वस्थ और सही सलामत
था इसलिए मुर्गे को भोजन मिलता रहा लेकिन कुत्ता बेचारा जैसे ठगा गया |कुत्ते ने
मुर्गे से कहा तुम्हारे वादे का क्या हुआ ?
मुर्गा बोला -घोडा बहुत बेशर्म है अन्यथा आज कल जैसे हालात चल रहे हैं ,इसे तो शर्म से ही मर जाना चाहिए था |
सिर्फ बातों से कुत्ते की भूख कैसे मिटती लेकिन कुत्ते का भोजन खाकर भी मुर्गे की भूख अब तक मिटी न थी |
हजरत
मूसा के शिष्य ने सुना ,मुर्गा कुत्ते से कह
रहा था कि-घबरा मत ,कल हमारे मालिक की ही राम नाम सत्य हो जाने वाली है |मालिक खूब
पैसे वाला है |उसके मरने के बाद कम से कम पंद्रह दिन तो खूब दावतें होने वाली हैं
,भोजन की जरा भी कमी न रहेगी |कल से त्यौहार शुरू |बस मालिक के मरने तक इंतज़ार करो
|
शिष्य
मुर्गे की बात सुनकर हैरान हो गया |मुर्गा आजकल के नेताओं में से कोई रहा होगा क्यूंकि
अपने मालिक के मरने का उसे जरा भी दुःख नहीं था बल्कि वह तो मालिक अर्थात हजरत मूसा के प्रिय शिष्य के मरने से बहुत खुश था |
वह हजरत मूसा के पास पहुंचा
और बोला-गुरु जी ,मेरा पालतू मुर्गा तो जैसे मेरी बलि चढाने को उतारू है |
हजरत मूसा ने कहा- अब भुगतो
|मैंने तो पहले ही रोका था कि पशु -पक्षियों के चक्कर में मत पड़ो|परमात्मा का जो विधान
है,उसे काटने की क्षमता किसी में नहीं है इसलिए मौत आएगी तो उसे राजी-ख़ुशी मान लेना
|उसे मानने में ही भलाई है |
ऐसे जीवनदायी सन्देश सन्तों-महापुरुषों-सत्गुरुओं ने समय -समय पर अपने विचारों में दिए हैं लेकिन मानव सत्य संदेशों को जीवन में नहीं उतारता इसलिए मानव तन पाकर भी जीवन को व्यथ गंवाकर चला जाता है |
बाबा गुरबचन सिंह जी के युग से लेकर आज तक विभिन्न रूपों में गुरुवचनामृत की वर्षा में भीगने का अवसर मिला |
लेकिन प्रभु की इच्छा में सदा भक्त की भलाई छिपी होती है इसीलिए युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी ने सम्पूर्ण अवतार बाणी में कहा है-
सबर -सिदक दा चोला होवे तेरा इक सहारा रहे |
साधु रहकर दुनिया अंदर वांग कमल दे न्यारा रहे |
न हिन्दू न मुस्लिम जाणे , भेद न सिख-ईसाई दा |
उच्चा होके नीवां समझे ,मान नहीं दानाई दा |
सबर -शांति ते समदृष्टि संतजना दा गहणा ए|
संतजना दा वड्डा जेवर भाणे अन्दर रहणा ए |
सन्त हरी दे मित्तर मेरे कोल सुबह ते शाम मेरे |
कहे अवतार एहना संतां नू लक्खां ही प्रणाम मेरे |
आज हिन्दू और मुसलमान के साथ बराबरी का व्यवहार नहीं किया जा रहा है इसलिए बाबा अवतार सिंह जी के मानवीय संदेशों को व्यवहार का अंग बनाने की आवश्यकता है|
सन्त निरंकारी सेवादल में जब वर्दी पहनकर सेवा करने का अवसर मिलता था तो मुझे भी अनेक बार यह संकल्प दोहराने का अवसर मिला -
न हिन्दू ,न सिख ईसाई ,न हम मुसलमान हैं |
मानवता है धर्म हमारा हम केवल इंसान हैं |
इसी सत्यनिष्ठा से भक्ति चरितार्थ हो सकेगी और भक्तों के जीवन में क्रांति आ सकेगी |
निरंकारी मिशन सब गुरु -पीर पैगम्बरों की शिक्षाओं को व्यवहार में लाने पर बल देता है और भक्ति के तत्वों को मानव जीवन में
क्रांति
लाने
में
सक्षम
मानता
है
|