-रामकुमार सेवक
सम्पूर्ण अवतार बाणी में युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी धर्म की परिभाषा बताते हुए कहते हैं कि-
रब नू हाज़िर-नाज़िर तकना इस तों वड्डा धर्म नहीं
देखा जाये तो धर्म की आज एक बड़ी मार्किट है जिससे अलग-अलग तीर्थ स्थानों के पण्डे- पुजारी जुड़े हुए हैं|
यह तो सिर्फ हिंदुत्व की बात हुई लेकिन इस्लाम में भी यह सिलसिला वैसा ही है |पण्डे -पुजारियों की जगह हाफिज -इमाम आदि हैं |जिन्हें संक्षेप में लोग मुल्ला-मौलवी कहते हैं |कहने का भाव यह है कि अन्य धर्मो में भी लोभ और झूठ वैसे ही पसरा हुआ जैसे किसी एक में |
हम लोगों की आदत है कि सत्य को महत्व नहीं देते और जहाँ सत्य बोलने से कोई नुक्सान नहीं भी होता वहाँ भी प्रायः झूठ ही बोलना पसंद करते हैं | यद्यपि बोले गए झूठ को याद रखना एक बड़ी समस्या है क्यूंकि याददाश्त कम होने के कारण हमारा झूठ पकड़ में आ जाता है लेकिन सच बोलने का जोखिम कौन ले क्यूंकि सच तो कभी बोला नहीं इसलिए सच बोलने का जोखिम कौन ले इसलिए जिम्हें ब्रह्मज्ञानी कहा जाता है और जो इस बात का गर्व भी करते हैं वे भी सच बोलने से प्रायः
बचते हैं क्यूंकि प्रैक्टिस ही झूठ बोलने की हो चुकी है |
पिछले दिनों मुझे मुंबई स्थित हाजी अली की दरगाह में जाने का अवसर मिला |यहाँ मैं पहली बार 1989 में आया था |
इस बार मैंने देखा कि भिखारी किस्म के लोग प्रचुर मात्रा में थे जबकि भीख मांगने का अध्यात्म से कोई सम्बन्ध नहीं है |ऐसा लगता है कि गरीबी की दृष्टि से भी ,धर्म एक-दूसरे से पूरी तरह अलग नहीं हैं |
जहाँ तक धर्म की अध्यात्मिक शिक्षाओं का सवाल है ,उनमें आपसी प्रेम,मिलवर्तन ,दया और सेवा के तत्व हैं और वे थोड़े -बहुत नज़र भी आते हैं |
लगभग हर धर्म समाज सेवा में कुछ धन अवश्य खर्च करता है |
इस्लामी अनुयाइयों की आर्थिक स्थिति चूंकि भारत में बहुत मजबूत नहीं है इसलिए वहाँ सेवा हेतु बहुत अधिक धन खर्च नहीं किया जाता लेकिन किसी भी धर्म में परमात्मा के अस्तित्व के अलावा पैसा ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण तत्व नज़र आता है |
महाशिव रात्रि के अवसर पर दिल्ली के छतरपुर इलाके में भी जाने का अवसर मिला था |वहाँ काफी भीड़ थी और यह भीड़ ही धर्म की वास्तविक ताक़त है चूंकि प्रजातंत्र की शासन पद्धति में भीड़ का काफी महत्व है |
लेकिन धर्म वास्तव में व्यक्तिगत आस्था का नाम है |छतरपुर क्षेत्र में मैंने उस दिन देखा कि एक अन्य धार्मिक संस्था विशेष के लोग दान लेने में अधिक रूचि दिखा रहे थे जबकि जहाँ हम गए थे वहाँ धन को उतना ज्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा था लेकिन कोई भी धर्म हो उसके लिए तो धन ही प्रधान है |कहा भी गया है -राम नाम जपना पराया माल अपना | जब मुझे मुंबई जाने का अवसर मिला तो सिद्धि विनायक मंदिर और अगले दिन महालक्ष्मी मंदिर में भी जाने का अवसर मिला |इसके पीछे कोई मेरा धार्मिक कारण नहीं था क्यूंकि मेरी व्यक्तिगत आस्था एक निराकार परमेश्वर में है और उसे प्रकट करने के लिए हृदय के वास्तविक भाव ही पर्याप्त हैं | सम्पूर्ण अवतार बाणी में अध्यात्म को ही सर्वाधिक महत्व दिया हैं|सेवा ,सुमिरन और सत्संग ही निरंकारी दर्शन के केंद्रबिंदु हैं |मूलतः सम्पूर्ण अवतार बाणी में इंसान का ध्यान सत्य की ओर आकृष्ट किया गया है |निरंकारी शिक्षाएं बहुत सहज,सरल और आकर्षक हैं |मूलतः निरंकारी आंदोलन बीसवीं सदी में ही उभरा इसलिए यहाँ अध्यात्म में धन से अधिक भावनाओं की शुद्धता को अधिक महत्व दिया जाता है |
बाबा अवतार सिंह जी अविभाजित भारत के उस क्षेत्र में जन्मे जिसे आजकल पाकिस्तान कहा जाता है |सिख पृष्ठभूमि से सम्बंधित और सरल स्वभाव होने के कारण बाबा अवतार सिंह जी ने बहुत सरल भाषा में धर्म के तत्व को प्रकट किया | उन्होंने मानव धर्म को सर्वाधिक महत्व दिया चूंकि उन्होंने जो शिक्षाएं दीं उनमें मानव मात्र को एकसमान माना गया इसलिए उनकी दी गयी परिभाषा बिलकुल स्पष्ट है-वे कहते हैं कि धर्म का लक्षण है -
परम पिता परमात्मा को हाज़िर -नाज़िर देखना अर्थात प्रभु को सर्वत्र देखना |इसमें मूल आवश्यकता तो यह है कि परमेश्वर का ज्ञान सबको होना चाहिए |लेकिन परमेश्वर का ज्ञान सबको है नहीं इसलिए मनमर्जी की भक्ति हो रही है |वास्तव में परमेश्वर कोई second person नहीं है कि कोई अन्य आपका परिचय परमात्मा से करवा सके |चूंकि परमात्मा कोई व्यक्ति विशेष नहीं है बल्कि शक्ति विशेष है |सवाल यह ही है कि हम इंसान परमात्मा से ओत-प्रोत हैं फिर भी हमें ज़रा -सी बातों का अहंकार घेर लेता है क्यूंकि हमें लगता है कि हम ही सब कुछ के कर्ता हैं ,यह कर्तापन का अहंकार ही हमें तत्वज्ञानी नहीं होने देता |कबीर दास जी ने तो बहुत पहले ही हमें समझा दिया था कि-जब मैं था तब हरी नाही ,सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहि
परमात्मा की शक्ति हर व्यक्ति में काम कर रही है इसलिए यह तय है कि
परमात्मा का किसी भी बन्दे से अलगाव नहीं है |अहंकार ही है जो बन्दे को रब से अलग करता है और अहंकार से बचने का एक मात्र उपाय है-परमेश्वर की हर जगह मौजूद मानना -धन्यवाद |