सुकून पर बाबा हरदेव सिंह जी का दृष्टिकोण

 रामकुमार सेवक 

बाबा हरदेव सिंह जी से एक बार किसी पत्रकार ने सुकून के बारे में पूछा -

बाबा जी ने दो गुणों को विकसित करने पर बल दिया -god ,s knowlodge  & tolerence 

वे कहते थे -bliss is real  happiness beyond senses.आनन्द इन्द्रियातीत और वास्तविक ख़ुशी है |   

सुकून पर चर्चा आजकल बहुत ज्यादा है जबकि सिर्फ चर्चा (जिसे कहते हैं )का सुकून से कोई सम्बन्ध नहीं क्यूंकि चर्चा सुकून हासिल करने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाती| सुकून का वास तो हृदय में होता है | 

Internal Peace  अर्थात सुकून हासिल करने का मंत्र बताते हुए निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी ने दो तत्वों को जीवन में धारण करने पर बल दिया |उन्होंने कहा -Gods knowledge अर्थात ब्रह्मज्ञान तथा tolerence अर्थात उन्होंने पहला स्थान ब्रह्मज्ञान को दिया और दूसरे स्थान पर रखा -सहनशीलता |

सहनशीलता ही है जो हमें शक्ति से भर देती है |

बाबा हरदेव सिंह जी कहा करते थे कि सहनशीलता की तुलना एक पुल से करें |वे कहते थे कि मजबूत पुल कैसा होता है ?मजबूत पुल वह होता है जो भारी से भारी वजन को भी आराम से ,सहजता से सह लेता है |

इसके विपरीत जो अधिक भारी वाहन के गुजरने से दरक जाए उसे हम मजबूत पुल नहीं मान सकते |

जो पुल भारी से भारी वाहनों को सह लेता है ,उसे हम मजबूत पुल मान सकते हैं |

इस प्रकार सहनशीलता अधिक शक्तिशाली होने की पहचान है |  

बाबा जी के कार्यकाल में ही दुनिया और भक्तसमूह सबको यह सन्देश दिया गया कि-अमन -चैन से रहना है तो सहनशील बन जाएँ सारे |

सन्देश तो बिलकुल ठीक है लेकिन आजकल तो हवा ही कुछ ऐसी चल रही है कि सहन करने को कोई तैयार ही नहीं है |

पति पत्नी एक दूसरे की बात सहन नहीं करते इसीलिए घर टूट रहे हैं  |

कुछ समय पहले तक एकपत्नीव्रत भारतीय संस्कृति का मूल तत्व था लेकिन आजकल तलाक़ के बहुत सारे मुक़दमे अदालतों में चल रहे है |यह चिंता का नया मुद्दा है |चिंतित व्यक्ति चाहे जिस भी अवस्था में हो लेकिन सुकून में नहीं होता |

अमेरिका से आये, सन्त निरंकारी मिशन के निष्ठ|वान अनुयाई डॉ .इक़बालजीत राय ने नवंबर 2023 के दूसरे सप्ताह में सुबह सन्त निरंकारी कॉलोनी में आयोजित प्रातःकालीन सत्संग को सम्बोधित करते हुए सुकून और सहनशीलता का उल्लेख किया |उन्होंने महाराष्ट्र के सन्त तुकाराम जी का भी अपने विचारों में उल्लेख किया |उन्होंने कहा कि वे अत्यंत सहनशील थे |

इसमें तो कोई शक नहीं कि तुकाराम जी सचमुच बहुत सहनशील थे |साथ ही निर्धन भी थे जिस कारण परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति भी अत्यंत कठिन थी |इस कारण पत्नी से उन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी |उनकी सहनशीलता के बहुत सारे प्रसंग अपनी पुस्तकों में हम लिख-पढ़ चुके हैं |प्रगतिशील साहित्य से प्रकाशित पुस्तक हमारे सन्त-महापुरुष (भाग -एक)में पृष्ठ 74 पर महात्मा तुकाराम जी पर लिखते हुए मुझे उनके कई प्रसंग पढ़ने को मिले |  

देखा गया है कि महात्मा जितना अधिक सहनशील होते हैं संसार के आम लोग उतना ही अधिक उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं |

डॉ.रॉय ने अपने विचारों में कहा कि- गाँव वालों ने तुकाराम जी के प्रति दुर्व्यवहार किया क्यूंकि वे लोग अज्ञानी थे और अपनी मूर्खता त्यागने को भी तैयार नहीं थे |

उन्होंने तुकाराम जी के गले में सब्जियों का हार बनाकर उनके गले में डाल दिया ,उनके सिर को उस्तरे से मुंडा और उन्हें पूरे गांव में घुमाया |

गाँव वाले  सहृदय नहीं थे |इसका कारण मुझे अज्ञानता लगती है |युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी सम्पूर्ण अवतार बाणी में लिखते हैं -

आये दी ते कदर न जानन,दीवे बालन मढ़ियाँ ते ,

कहे अवतार अड़े ने मूरख अज वी अपनी अड़ियाँ  ते |


बाबा अवतार सिंह जी ने इन पंक्तियों में संसार की प्रवृत्तियों पर भली भांति प्रकाश डाला है |संसार की यह प्रवृत्ति है कि जब भी गुरु -पीर -पैगम्बर और अवतार इस दुनिया में आये तो लोगों ने उनकी परवाह नहीं की |

यह केवल भारत की बात नहीं है बल्कि विश्व के अधिकांश भागों में ऐसा ही चलन देखने को मिला |मंसूर तो ईरान में थे लेकिन उन्होंने अनलहक़ क्या कहा कि तत्कालीन सत्ता उनकी जान की दुश्मन हो गयी और बेहद दर्दनाक ढंग से उनके जीवन का अंत किया गया |

तुकाराम जी सीधे -सच्चे इंसान थे और सरल भी बहुत थे |

उन्होंने पूरे दुर्व्यवहार को बहुत सकारात्मक ढंग से लिया |उन्होंने अपनी पत्नी को कहा कि गांव वालों ने कुछ भी गलत नहीं किया |सब्जियों की माला डालकर उन्होंने हमारे लिए जैसे सब्जियों की समस्या हल कर दी है,इन्हीं सब्जियों का तुम घर में इस्तेमाल करो | उन्होंने लोगों से कहा -काफी दिनों से मैं बाल नहीं कटवा पाया था ,आप लोगों ने मेरे सर में कटिंग करवाकर मेरा हुलिया भी बेहतर कर दिया है |

उन्होंने अपने परिवार में कहा -अब पूरा गांव मुझे पहचानने लगा है .पहले लोग कहते थे कि मेरी किसी से जान -पहचान नहीं है |इस प्रकार तुकाराम जी ने सकारात्मक सोच का भी कीर्तिमान बना दिया |



महात्माओं का दृष्टिकोण ऐसा ही होता है | गांव वाले किसी इंसान का घोर अपमान करें और उसके बावजूद वह व्यक्ति उसमें भी बेहतरी महसूस करें यह तो असंभव जैसा है |लेकिन महात्माओं के हिस्से में यह असंभव जैसा काम ही आया है |