नैतिकता के बिना कोई धर्म सच्चा नहीं हो सकता

 -रामकुमार सेवक

पवित्र बाणी में एक शब्द आता है ,जो है तो धार्मिक लेकिन सिर्फ धार्मिक होने के कारण हम उसे नैतिकता से बेदखल नहीं कर सकते |

शब्द बहुत ही वास्तविक है -महात्मा कहते हैं -

जो मैं किया सो मैं पाया दोष दीजे अवरु जना |  

वास्तव में नैतिकता के बिना किसी धर्म का अस्तित्व हो नहीं सकता लेकिन जब दृष्टि अत्यंत सीमित हो जाए तो उसे धर्म कहना धर्म के विरुद्ध होगा |

कुछ घंटे पहले मैं कुछ लोगों की बहस सुन रहा था जो कि किसी के मकान पर बुलडोजर चला देने को धर्म और अमन का सबसे बड़ा काम बता रहे थे |

मुझे लगता नहीं कि उन्होंने कभी किसी चिड़िया को तिनका -तिनका जोड़कर घर बनाते देखा होगा अन्यथा वे किसी के घर पर बुलडोजर चलाने के दर्द को अपनी सोच से ओझल नहीं कर पाते |

बुलडोजर यदि किसी व्यक्ति की सोच पर चढ़ा हो तो उसकी ऐनक एक ही रंग की होती है |

वह केसरी रंग की हो सकती है ,हरे रंग की .नीले या पीले रंग की हो सकती है |

बुलडोजर के स्वभाव पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्यूंकि

बुलडोजर घर के बच्चों के बेघर होने का दर्द नहीं जानता |उनके घर में चूल्हा जले या जले ,बुलडोजर को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता |लेकिन एक माँ को ,एक पिता को या घर के बुजुर्गों को जरूर फर्क पड़ता है |

मुझे लगता है कि बुलडोजर किसी भी न्याय प्रणाली का हिस्सा नहीं हो सकता |

वर्तमान समय में बुलडोजर सत्ता के हाथों में है .उस सत्ता के हाथों में जो न्याय को भी अपने हाथों में ले लेती है |इस स्थिति में केसरी रंग का अर्थ कुछ और हो जाता है और हरे रंग का अर्थ कुछ और हो जाता है |

नैतिकता उससे गहरा सोचती है |नैतिकता का आधार है-अहंकार में कमी |कोई इंसान यदि अहंकार के वशीभूत होकर जीवन जीता है ,वह जीवन की वास्तविकताओं से रू--रू नहीं हो सकता |इस प्रकार जीवन में वह कभी सफल नहीं हो सकता |

हरे ,नीले और पीले रंग कभी भी आपस में नहीं लड़ते लेकिन इनके साथ जब समूह विशेष जुड़ जाये तो बुलडोजर किसी धर्म के लिए वरदान हो जाएगा और दूसरे धर्म के लिए अभिशाप |


एक ओर तो बचाने वाले को भी डंक मारने का बिच्छू का स्वभाव है। दूसरी तरफ परपीड़ा में भी मज़ा ढूंढने की मानवीय विकृति है।डंक मार रहे  बिच्छू को भी बचाना परोपकार की  पराकाष्ठा है और ऊँट की पीठ पर बंधे बच्चों की पीड़ा के क्रंदन में मज़ा ढूंढ़ना मानव के पतन की पराकाष्ठा है। ये दोनों ही अतिरेक अनावश्यक हैं। इन दोनों के मध्य मानव को मानवता के गुण को बचाने को सर्वोपरि मानना होगा |

ज्ञान का भी अगर हम अहम् करें तो दुनियावी ज्ञान भी अगर हमें हासिल होते हैं तो उनका भी अभिमान कर लेते हैं   तो जैसे रोशनी की अधिकता हो जाए तो जैसे आँखें चौंधियाँ जाती हैं,कुछ भी दिखाई नहीं देता ,इतनी तेज रोशनी आँखों में पड़ती है ।यह तुलना की कि अगर ज्ञान का भी अभिमान कर लिया तो फिर हमारा ज्ञानी होना प्रगट नहीं होता।

लेकिन नैतिकता हमेशा मानवता की ऐनक से देखती है इसलिए नैतिकता का नारा है -प्यार हमारा धर्म है इंसानियत ईमान है इसलिए कुछ भी कार्य करने से पहले गहरा सोचो |एक गीत में कहा गया है -देना पड़ेगा जवाब -नेकियां कमाइए इसलिए कुछ भी बनो मुबारक है पर पहले बस इंसान बनो |