-रामकुमार सेवक
किसी
वक़्त में श्री गुरु
नानक देव जी ने
कहा था -उजड़ जाओ
और बसे रहो। बसे
रहो जिन्हें कहा ,वे बुरे
लोग थे और उजड़
जाओ जिन्हें कहा वे अच्छे
लोग थे जिन्होंने भी
यह सुना वे आशीर्वाद
का मर्म समझ नहीं
सके क्यूंकि गुरुओं की बातों का
मर्म समझना इतना आसान नहीं
होता।
निरंकारी मिशन के द्वितीय सत्गुरु युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी ने भी पूर्ण प्रकाश साक़ी साहब
को एक ऐसा ही कार्य करने को कहा था।
साक़ी साहब
ने
अपनी
समझ
से
बिलकुल
ठीक
किया
लेकिन
बाबा
जी
की
बात
का
लाभ
साक़ी
साहब
मिशन
को
दे
नहीं
सके
क्यूंकि
सतगुरु
के
आदेश
का
मर्म
वे
समझ
नहीं
पाए
थे
इसलिए
बाबा
जी
ने
अपना
आशय
जब
समझाया तो
साक़ी
साहब
को
लगा
कि
यह
सब
तो
हमने
सोचा
ही
नहीं
था।
वास्तविकता यह
है
कि
गुरु
की
सोच
बिलकुल
अलग
होती
है।
वास्तव
में स्वतंत्रता के बाद का
समय था। निरंकारी सन्त
भी अविभाजित भारत के उस
हिस्से से इस हिस्से
में बस रहे थे
जो कि हिदुस्तान कहलाता
था। जिस हिस्से से
वे आये थे वह
पाकिस्तान कहलाता था।
हिंदुस्तान जिसे
साहित्यिक
भाषा
में
भारत
कहा
जाता
था
,में
अचानक
ही
समस्याएं
बहुत
बढ़
गयी
थीं।
लोगों
का
एक
बहुत
बड़ा
वर्ग
पाकिस्तान
से
आया
था
और
दिल्ली
और
दूसरे
शहरों
में
बस
रहा
था।
इन
शहरों
की
जनसँख्या
अचानक
ही
बहुत
बढ़
गयी
थी
लेकिन
हिंदुस्तान
ने
अपनी
समझदारी
और
प्रशासनिक
योग्यता
के
बल
पर
समस्या
को
सुलझाने
की
कवायद
शुरू
कर
दी
थी।
बाबा अवतार सिंह जी और उनके साथ आये लोग भी अलग -अलग शहरों में अपनी छोटी सी दुनिया संभालने में लगे थे। बाबा अवतार सिंह जी और साक़ी साहब भी स्वतंत्रता के बाद की दिल्ली में बस रहे थे।
यह
बात
अलग
थी
कि
बाबा अवतार सिंह जी
के
सपने
बड़े
थे
क्यूंकि
वे
सिर्फ
अपनी
रोजी-रोटी
तक
सीमित
नहीं
थे
बल्कि
लोगों
को
जीवन
जीने
का
नया
मार्ग
दिखाना
चाहते
थे ,जो कि गैरपारंपरिक था क्यूंकि यह अध्यात्मिक था
।
उत्तरी दिल्ली
के
निरंकारी
कॉलोनी
क्षेत्र
को
विकसित
किया
जा
रहा
था
ताकि
लूट-मार
के
जिस
वातावरण
में
असुरक्षा
और
अविश्वास
का
बोलबाला
था
वहां
शांति
और
समृद्धि
की
बयार
बह
सके।
दिल्ली छोड़ने
से
पहले
बाबा
अवतार
सिंह
जी
ने
साक़ी
साहब
को
आदेश
दिया
कि
जो
समागम
किया
जाना
है
उसके
लिए
मैदानों
को
समतल
किया
जाना
जरूरी
है।
मेरे
लौटने
से
पहले
यह
काम
हो
जाए
तो
बहुत
अच्छा
रहेगा।
बाबा जी
ने
कहा
कि
दिल्ली
में
जो
निरंकारी
अनुयाई
हैं
उन्हें
बारी
- बारी बुलवा
लेना।
इससे
मैदान
समतल
भी
हो
जायेगा
और
समागम
के
लिए
नयी
ऊर्जा
भी
मिलेगी।
साक़ी
साहब थे लेखक आदमी।
उनके सपने थोड़े अलग
होते थे। कुछ दिन
तक तो उन्हें बाबा
जी के आदेश का
ख्याल भी न आया
लेकिन बाबा जी के
दिल्ली आगमन की तिथि
जैसे जैसे नजदीक आनी
शुरू हुई ,साक़ी साहब
को बाबा जी का
आदेश याद आना शुरू
हो गया। लेकिन अब
इतना समय शेष नहीं
था कि बाबा जी
के आदेश को उसी
तरह पूरा कराया जा
सके जैसा वे कहकर
गए थे।
इसलिए
साक़ी साहब ने मशीनों
का सहारा लिया और मैदानों
को समतल करवा दिया।
साक़ी
साहब का ख्याल था
कि उन्होंने बाबा जी के
आदेश को सही तरह
माना है।
बाबा
जी दिल्ली आ चुके थे
लेकिन गुरु की दृष्टि
असीम होती है।
उनकी
दूरदर्शिता ने उन्हें बता
दिया कि मैदान तो
समतल हो चुके हैं
लेकिन उसमें उनका विज़न शामिल
नहीं है।
साक़ी
साहब के स्थान पर
कोई भी होता तो
वह शाबाशी पाने की इच्छा
रखता और वो वक़्त
सरल भी था चूंकि बाबा अवतार सिंह
जी एक कुशल शिल्पी
की भांति निरंकारी मिशन का कायाकल्प
कर रहे थे। कोई
भी भक्त बाबा जी
से वार्तालाप कर सकता था।
बाबा जी व्यक्तिगत रूप से अधिकांश भक्तों को जानते थे। साथ ही देश में जिस प्रकार का अविश्वास का वातावरण था उसमें निरंकार का ज्ञान ही इंसान को राहत पहुंचा सकता है बल्कि निरंकार का ज्ञान ही नफरत को प्यार में बदल सकता है।
बाबा अवतार सिंह जी के आदेशानुसार की जाने वाली समागम सेवा
अध्यात्म
की
प्रयोगशाला
सिद्ध
होती
लेकिन
साक़ी
साहब
इस
दूरदर्शिता
को
समझ
नहीं
सके
इसलिए
मशीनों
पर
ज्यादा
भरोसा
किया।
उन्होंने चाहा
कि
बाबा
जी
मैदान
का
नया
रूप
देखें
लेकिन
बाबा
जी
शायद
साक़ी
साहब
की
मशीन
द्वारा
की
गयी
सेवा
की
प्रोत्साहित
नहीं
करना
चाहते
थे
इसलिए
उन्होंने
स्पष्ट
कहा
कि
साक़ी
साहब
,मैदान
तो
इतने
खराब
नहीं
हुए
थे
लेकिन
सन्त-महात्माओं को सेवा के
मौके
मिलने
चाहिए
थे
क्युँकि
तन
की
सेवा
से
तन
स्वस्थ
होता
है,मन
की
सेवा
करने
से
मन
स्वस्थ
होता
और
धन
की
सेवा
करने
से
धन
की
समृद्धि
बढ़ती
है
इस
प्रकार
सेवा
पूरे
परिवार
को
सुखी
और
समृद्ध
बनाती
है।
बाबा अवतार
सिंह
जी
ने
अपने
ग्रन्थ
अवतार
बाणी
में जीवन में
सेवा
की
महत्ता
पर
बहुत
बल
दिया
है।
निष्काम
सेवा
पर
बल
देते
हुए
उन्होंने
कहा
है-
तन
,मन,धन तिन्ना तों उच्ची वो सेवा कहलांदी ए ,जो होवे निष्काम निरिच्छित और सतगुर नू भांदी ए।