दीवानगी की बेखयाली में मंसूर ने कहा –अनलहक़

 -रामकुमार सेवक

अनलहक़ का अर्थ तोअहम ब्रह्मास्मि है लेकिन इस्लामी जगत में यह मंत्र मृत्युदंड का पात्र बना सकता है

यह मंसूर जानते तो थे  लेकिन जो कोठे चढ़कर नाचने लगे ,उसे क्या कहें?

मंसूर के गुरु थे-जुनैद।पहली बार उनकेआश्रम में मंसूर ने कहा-अनलहक़।अनलहक़ अर्थात -मैं सच हूँ।सच को कहते हैं-हक़। सत्य के पक्षधर को कहते हैं-हक़्क़ानी। 

मंसूर के गुरु ने सुना तो मंसूर के इस वचन से घबराये।डर इस बात का था कि शासकों के कानो तक यदि यह शब्द पहुँच गया तो जिन्दा रहना मुश्किल है लेकिन दीवाने यह सब कहाँ सोचते हैं।

लोग यह भी कहते हैं कि मसूर यदि भारत में पैदा हुआ  होता तो सम्मान का पात्र होता क्यूंकि यहाँ तो अहम्ब्रह्मास्मि को अध्यात्म का आधार माना जाता  है और अध्यात्म का आधार यह है भी क्यूंकि इस निरंकार ने मनुष्य को अपनी छवि से निर्मित किया है इसलिए बाबा हरदेव सिंह जीअपने प्रवचनों में फरमाते थे कि

हरजन ऐसा चाहिए ,हर ही जैसा होय।

इस प्रकार भारत में धर्म का विकसित रूप हावी रहा है।यहाँ तो वसुधैव कुटुंबकम की विशालता को जीवन शैली का रूप दिया गया है।इस प्रकार मंसूर को भारत में खूब सम्मान मिलता लेकिन उनके गुरु जुनैद ने मंसूरसे कहा -मेरे बच्चे ,बात तुम्हारी ठीक है लेकिन इस बात को बाहर निकलकर मत कहना।

एक दिन वहां के एक अधिकारी ने समस्त फकीरों को भोजन हेतु आमंत्रित किया।

जुनैद अपने साथ मंसूर को भी समझाकर ले गए कि तुम्हें कसम है खुदा की कि जुबान परअनलहक़ को नहीं लाओगे।इस निर्देश को मानने का मंसूर ने पूर्ण भरोसा दिया।

मंसूर ईरान में पैदा हुए थे | फिर यह बसरा और बग़दाद में हज़रत जुनैद बगदादी की सोहबत में रहे |

जुनैद इनसे कहते थे कि एक दिन वह आएगा जब लकड़ी का एक सिरा तेरे खून से लाल होगा | तब यह कहते थे कि हाँ यह जरुर होगा पर उससे पहले आपको यह फकीराना लिबास उतार फेंकना होगा | लकड़ी के एक सिरे के लाल होने का मतलब सूली पर चढ़ने से था | इन्होने अपना नाम '' हुसैन बिन मंसूर '' मतलब कि मंसूर का बेटा मंसूर रखा था | इनका पूरा नाम '' हुसैन बिन मंसूर अल हलाज'' था | यह बहुत बड़े विद्वान् थे | देश -देश घूमते रहते थे | पूरे एक साल तक बिना कपडों के रहकर इन्होने सर्दी और गर्मी में तपस्या की | कहते हैं कि इनका शरीर पिघलने लगा था , फिर भी यह तेज़ धूप में खड़े रहे |

एक बार यह हिन्दुस्तान भी आये थे पर अंत में बग़दाद में रहने लगे| खुदा का इनपर ऐसा नशा था कि एक बार यह '' अनलहक , अनलहक '' कहने लगे , जिसका मतलब है कि- '' मैं ही सच हूँ'' |
सबने इन्हें काफिर बताया यह सोचकर कि यह अपने को खुदा बताता है | पर यह नहीं माने --कहते थे कि '' मैं वही हूँ जो कि मुझमें है , इसलिए जब तुम लोग मुझे देखते हो इसका मतलब उस खुदाको देखते हो , इसलिए मैं खुदा का ही तो रूप हूँ '' |
मौलवियों ने फतवा जारी किया कि यह काफिर है , इसे सूली पर चढाया जाए | इन्हें कैद खाने में बंद किया गया | खलीफा ने कहा कि जब तक जुनैद बगदादी नहीं लिख देंगे कि यह कत्ल के योग्य है , मैं फतवे पर दस्तखत नहीं करूँगा | तब जुनैद बगदादी को बुलाया गया | उन्होंने परेशान होकर अपने फकीराना कपडे फाड़ दिए और विद्वानों वाले कपडे पहन लिए | फिर हुक्म की तामील की और लिख कर दिया कि '' बाहरी हालात को देखकर कत्ल का फतवा जारी किया जाता है पर अन्दर का हाल खुदा जानता है ''|

लेकिन जो इंसान परमात्मा के प्रति इतना आसक्त हो कि और कुछ सोच ही पाए उसकी दीवानगी की कोई सीमा नहीं।ऐसे दीवाने की दीवानगी की कोई सीमा नहीं।

दावत में जो भी फ़कीर थे ,सबने अपने -अपने अनुभव सुनाये।इतने महात्मा ,जहाँ मौजूद होतो सत्संग का अनूठा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।ऐसे वातावरण में मंसूर अचानक चिल्ला उठे-अनलहक़।

यह सुनकर जुनैद बेहद दुखी हुए क्यूंकि वे जानते थे कि सत्ता मंसूर को छोड़ेगी नहीं।उन्होंने मंसूर से कहा-तूने खुदा की झूठी कसम क्यों खायी ?

मंसूर बोले -उस्ताद जी ,मैंआप से सत्य कहता हूँ कि-मैंने अनलहक़ नहीं कहा।यह तो स्वयं खुदा ने ही कहा होगा क्यूंकि मैं तो आपको वचन दे चुका था।जुनैद मंसूर की खुदा के प्रति प्रेम की गहराई जानते थे।

वे कहते हैं-

अगर है शौक मिलने का, तो हरदम लौ लगाता जा,

जलाकर ख़ुदनुमाई को, भसम तन पर लगाता जा।

पकड़कर इश्क की झाड़ू, सफा कर हिज्र-ए-दिल को,

दुई की धूल को लेकर, मुसल्ले पर उड़ाता जा।

मुसल्ला छोड़, तसवी तोड़, किताबें डाल पानी में,

पकड़ तू दस्त फरिश्तों का, गुलाम उनका कहाता जा।

न मर भूखा, न रख रोज़ा, न जा मस्जिद, न कर सज्दा,

वजू का  तोड़  दे  कूजा, शराबे  शौक  पीता  जा।

हमेशा खा, हमेशा पी, न गफलत से रहो एकदम

नशे में सैर कर अपनी, ख़ुदी को तू जलाता जा।

न हो मुल्ला, न हो बह्मन, दुई की छोड़कर पूजा,

हुकुम शाहे कलंदर का, अनल हक तू कहाता जा।

कहे ‘मंसूर‘ मस्ताना, ये मैंने दिल में पहचाना,.



वही मस्तों का मयख़ाना, उसी के बीच आता जा।

उन्होंने कहा -तू सच कहता है।खुद खुदा ने ही तेरे मुँह से सच्चाई बयान की है।बाबा अवतार सिंह जी कहा करते थे कि-

गुरसिक्खां दा रूप धारके सतगुरु परगट हुंदाए,

सतगुरु अपना आप सदा गुरसिक्खां विच समोंदा 

इस प्रकार स्पष्ट है कि ऐसे भक्त निरंकार से एकमेक हो जाते हैं और भक्ति का अनूठा आनंद लेते हैं।

लेकिन जो इंसान परमात्मा के प्रति इतना आसक्त हो कि और कुछ सोच ही न पाए उसकी दीवानगी की कोई सीमा नहीं।ऐसे दीवाने की दीवानगी की कोई सीमा नहीं।

दावत में जो भी फ़कीर थे ,सबने अपने -अपने अनुभव सुनाये।इतने महात्मा ,जहाँ मौजूद होतो सत्संग का अनूठा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।ऐसे वातावरण में मंसूर अचानक चिल्ला उठे-अनलहक़।

यह सुनकर जुनैद बेहद दुखी हुए क्यूंकि वे जानते थे कि सत्ता मंसूर को छोड़ेगी नहीं।उन्होंने मंसूर से कहा-तूने खुदा की झूठी कसम क्यों खायी ?

मंसूर बोले -उस्ताद जी ,मैंआप से सत्य कहता हूँ कि-मैंने अनलहक़ नहीं कहा।यह तो स्वयं खुदा ने ही कहा होगा क्यूंकि मैं तो आपको वचन दे चुका था।

जुनैद मंसूर की खुदा के प्रति प्रेम की गहराई जानते थे।उन्होंने कहा -तू सच कहता है।खुद खुदा ने ही तेरे मुँह से सच्चाई बयान की है।बाबा अवतार सिंह जी कहा करते थे कि-

गुरसिक्खां दा रूप धारके सतगुरु परगट हुंदाए,

सतगुरु अपना आप सदा गुरसिक्खां विच समोंदा ए

इस प्रकार स्पष्ट है कि ऐसे भक्त निरंकार से एकमेक हो जाते हैं और भक्ति का अनूठा आनंद लेते हैं।