संकल्प की दिशा किस तरफ होनी चाहिए ?

रामकुमार सेवक     

उसूलों को मानने की भावना अगर है तो उसके असर जीवन में अवश्य देखने को मिलते हैं। निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी कहा करते थे कि-अक्सर नए वर्ष पर लोग अलग -अलग प्रकार के संकल्प लेते हैं लेकिन इन संकल्पों के पीछे कितनी गंभीरता है इसी से संकल्प का महत्व तय होता है।

संकल्पवान जो होते हैं ,उनके लिए असंभव कुछ नहीं है

नैपोलियन कहा करता था कि केवल मूर्खों के शब्द कोश में ही असंभव शब्द होता है| इसका अर्थ है कि संकल्पवान के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

 कुछ वर्ष पहले एक गाना भी बजा करता था -कोई काम नहीं है मुश्किल जब किया इरादा पक्का।

पक्के इरादे वाले लोग अपने लक्ष्य को कभी नहीं भूलते।

जैसे ही परिस्थितियां अनुकूल होती हैं वे अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ जाते हैं। उस संकल्प की दृढ़ता आस -पास के लोगों को भी प्रेरित करती है।

जैसे किसी इंसान में अगर आलस्य की समस्या है बड़े -बड़े लोग समझाकर थक चुके हैं लेकिन किसी ने कहा कि नए वर्ष में कुछ नया संकल्प करना चाहिए और कोई अपना उसे समझाए कि जीवन अनंत नहीं है। आलस्य में जीवन के दुर्लभ क्षणों को गंवा तो नहीं सकते। क्या भरोसा है ज़िंदगानी का। आदमी बुलबुला है पानी का इसलिए आलस्य को जड़ से उखाड़ फेंको।

इंसान इस बात की सत्यता को भीतर से महसूस करे तो निश्चित ही उस इंसान के जीवन में बड़ा परिवर्तन हो सकता है। अध्यात्म में कुछ बड़ा करने वालों की बड़ी संख्या है। उदाहरण के लिए रत्नाकर का जीवन देखें। वे एक लुटेरे का जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनसे नारद जी का सामना हुआ तो उन्हें भी लुटेरे की ही ऐनक से देखा।

नारद जी ने प्रश्न किया कि अपने परिजनों से पूछो कि लूट -मार के पतित कार्य में क्या वे तुम्हारे दंड में सहभागी होंगे ?

उन्होंने कहा कि परिवार का स्वामी होने के नाते आपका कर्तव्य है कि परिवार का भरण -पोषण करें। पाप के दंड में कोई किसी का सहभागी नहीं होता। यह सुनते ही रत्नाकर ने वह काम छोड़ दिया ,इस प्रकार उनके जीवन में क्रांति गयी।

कुछ संकल्प तो एक सप्ताह भी नहीं चलते और कुछ संकल्प जीवन में क्रांति ला देते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि किये गए संकल्प के पीछे कितनी गंभीरता है।

उसूलों को मानने की भावना अगर है तो उसके असर जीवन में अवश्य देखने को मिलते हैं। समाजविरोधी कार्यों को छोड़ना आसान नहीं है क्यूंकि किसी भी धर्म ग्रन्थ में नहीं लिखा है कि-लूटमार करो। शायद ही कोई अभिभावक चाहता हो कि मेरा बच्चा लूटमार करे लेकिन यह सिलसिला बचपन से ही शुरू हो जाता है। निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी ने एक बार एक प्रवचन में कहा कि एक बच्चा ऐसे ही कामो में लग गया।

स्कूल जाता तो कभी पेंसिल चुरा लेता तो कभी कॉपी -किताब। यह कार्य करता वह बड़ा चोर बन गया। माँ ही जब ध्यान रखे तो यही होना था। घटनाक्रम में आगे कहा गया है कि उसे फांसी के आदेश हुए। जब उसे फांसी देने के लिए ले जाया जा रहा था तो उसने अपनी माँ से मिलने की इच्छा प्रकट की।

उसे उसकी माँ से मिलवाया गया। माँ जब उसके पास आयी तो पुत्र ने अपनी माँ का कान काट लिया। माँ ने उसे बहुत बुरा -भला कहा और पास खड़े लोगों ने भी उसे डांटा लेकिन उसने कहा कि-माँ ने कभी मुझे चोरी से रोका नहीं। अगर यह मुझे बचपन में ही रोक देती तो मुझे आज फांसी के तख्ते पर चढ़ना पड़ता।

राजमाता जी कहती थीं कि बच्चों का पालन -पोषण करने में पूरा ध्यान रखना चाहिए ,जरा भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए।

कुछ संकल्प तो एक सप्ताह भी नहीं चलते और कुछ संकल्प जीवन में क्रांति ला देते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि किये गए संकल्प के पीछे कितनी गंभीरता है।

माताओं को पहला गुरु माना जाता है तो पूरे परिवार के विकास के लिए उन्हें दूरदर्शितापूर्वक बच्चों को सत्पथ पर अग्रसर करने के लिए समुचित शिक्षा देते रहना चाहिए।

माताएं अपने बच्चों में ऐसे गुण विकसित कर सकती हैं जो देश ,समाज और विश्व में उनकी उल्लेखनीय भूमिका विकसित कर सकें।

इसके लिए माताओं को भी संकल्पवान होना चाहिए। आजकल की माताएं उतने मजबूत संकल्प वाली नहीं लगतीं। समाज की गिरावट का असर माताओं पर भी निश्चय ही पड़ेगा। ऐसे में समाज को जाग्रत होना होगा क्यूंकि भावी पीढ़ी के विकास के लिए माताओं को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध करवाना जरूरी है।

समाज में लोगों को जाग्रत किया जाना बहुत जरूरी है। सच के नाम पर जो झूठ फैलाया जाता है समाज को अपने नागरिकों को उसके प्रति जाग्रत करना चाहिए। अन्यथा हर नागरिक हिंसक हो सकता है क्यूंकि अवगुणो का अपना आकर्षण होता है ,जो किसी को भी दिग्भ्रमित कर सकता है इसलिए हर नागरिक को विवेकी होना चाहिए जो सच और झूठ में फर्क कर सके और सम्पूर्ण दृढ़ता से मानवता और विश्व शांति के लिए सक्रिय रह सके इसलिए अपनी कुछ हानिकारक आदतों को बदलना होगा अन्यथा कुछ संकल्प तो एक सप्ताह भी नहीं चलते और जो ऊंचे जीवन मूल्य होते हैं उनसे प्रेरित कुछ संकल्प जीवन में क्रांति ला देते हैं। मूलतः यह इस बात पर निर्भर करता है कि किये गए संकल्प के पीछे कितनी गंभीरता है।