विभिन्न विचारों के परिपेक्ष्य में मेरी अवधारणा सनातन धर्म, पूजा-पाठ कर्मकांड और निरंकारी मिशन

 -रामकुमार सेवक 

यह विषय यद्यपि अति प्राचीन है लेकिन इस समय विशेष चर्चा में है चूंकि तमिलनाडु के एक मंत्री श्री उदयनिधि  स्टालिन,जो कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे हैं और वहां के एक मंत्री भी | उदयनिधि स्टालिन ने हिन्दू (सनातन )धर्म को डेंगू और मलेरिया की तरह बताया और सनातन धर्म को ख़त्म करने की सलाह दी है जिसका कुछ धर्मप्रेमियों ने प्रबल बल्कि उग्र विरोध किया। अयोध्या के एक महंत ने उदयनिधि स्टालिन का सर कलम करने वाले को पांच करोड़ रूपये देने की उग्र घोषणा की।

सत्य तो यह है कि मोटे तौर पर निरंकारी मिशन का इससे कोई भी सम्बन्ध नहीं है। अब चूंकि हम(निरंकारी मिशन ) भी अप्रत्यक्ष रूप से एक धार्मिक संगठन हैं इसलिए सनातन धर्म सहित किसी भी धार्मिक संगठन को नष्ट करने का समर्थन हम नहीं कर सकते। इसका विरोध करना भी हमारा कर्तव्य नहीं है इसलिए हमें इससे  स्वयं को असम्बद्ध ही रखना चाहिए | कृपया इसे मेरी व्यक्तिगत राय ही समझा जाए।

सनातन धर्म यद्यपि निराकार का ही समर्थन करता है क्यूंकि सनातन तो निराकार ही है | इसके अलावा शेष जो कुछ भी नज़र आता है उसे तो क्षण -भंगुर ही माना गया है।  जो कुछ भी नज़र आता है वह सब वास्तविकता नहीं है। सम्पूर्ण अवतार बाणी में युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी कहते हैं कि-

कहे अवतार जो दृष्टि आवे भरम-भुलेखे सारे हैं।

 स्पष्ट है कि जो कुछ हमें आँखों से नज़र आता है,वह नष्ट हो जाने वाला है।

जो भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है वह निरंकार है। निरंकार सत्य और सनातन सत्ता है ,इसे चाहकर भी कोई नष्ट नहीं कर सकता।

 इस लेख को पढ़कर कोई भी मुझे सनातन धर्म का पक्षधर समझेगा लेकिन युवावस्था के प्रारम्भ में मैं संत निरंकारी सेवादल का निष्ठावान स्वयंसेवक रहा हूँ जिसमें मैं मार्चिंग गीत में गाता था  कि-

ना हिन्दू ,ना सिख ईसाई ना हम मुसलमान हैं,मानवता है धर्म हमारा हम केवल इंसान हैं।

आज भी मैं अपने आपको इसी गीत के आस-पास पाता हूँ।

ऐसा इंसान शायद ही कोई होगा जो सनातन धर्म का पक्षधर हो और खुद को हिन्दू कहने से इंकार करे। उपर्युक्त मार्चिंग गीत में तो हम कहते रहे हैं-मानवता है धर्म हमारा हम केवल इंसान हैं। यहाँ सीधा प्रश्न यह उठता है कि क्या मैं किसी के भी द्वारा लाया गया पानी पी सकता हूँ जबकि मैं कहता हूँ कि मानवता है धर्म हमारा हम केवल इंसान हैं।

इस पक्ष की अपनी सत्यनिष्ठा के बावजूद मैं हर किसी के द्वारा लाया गया पानी नहीं पी सकता। उसका कारण है-स्वच्छता और स्वास्थ्य के मेरे व्यक्तिगत नियम।

श्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म को नष्ट कर देने का समर्थक नहीं होने के बावजूद मैं किसी भी धर्म अथवा विचारधारा को नष्ट करने का समर्थन नहीं कर सकता |

हिन्दू धर्म की बहुत सारी चीजें मुझे स्वीकार्य नहीं हैं। मनुस्मृति के बहुत सारे उपबंध मुझे स्वीकार्य नहीं हैं क्यूंकि मनुस्मृति मनुष्य -मनुष्य में भेदभाव को स्वीकार करती है। सनातन धर्म में मूर्ति पूजा का पूर्ण समर्थन किया गया है।

 इस बारे में आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द जी और युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी को अपने अधिक निकट पाता हूँ |

मनुस्मृति में सती प्रथा को भी स्वीकार किया गया है जबकि कोई भी प्रगतिशील इंसान सती
प्रथा को स्वीकार नहीं कर सकता।अच्छी बात तो यह है कि ब्रिटिश सरकार यद्यपि हमारे देश की पक्षधर नहीं थी लेकिन प्रगतिशील विचारों की सत्यता  का अनुभव तो करती थी।

 राजा राममोहन राय और लार्ड विलियम बैंटिक ने सतीप्रथा को रोकने का बीड़ा उठाया और इस कार्य में सफलता प्राप्त की।

इस धर्म में पशुबलि का भी पूर्ण समर्थन किया गया है। माता के जितने मंदिर अथवा शक्तिपीठ हैं वहां पशुबलि दी जाती है।

ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले जी द्वारा शिक्षा के प्रचार-प्रसार  का भागीरथ प्रयास किया गया जबकि उच्च ब्राह्मण वर्ग उस जमाने में  स्त्रियों को शिक्षा देने के पक्ष में नहीं था।

ज्योति बा फुले के पिताजी ने उच्च वर्गों के इस विरोध के कारण अपने पुत्र और पुत्रवधु को अपने घर से निकाल दिया था क्यूंकि अधिकांश लोग यह जानते हुए भी कि कर्मकांडों का प्रचलन समाज की प्रगति के विरुद्ध है ,इसके बावजूद ज्यादातर लोग कर्मकांडों का विरोध नहीं करते और चाहे-अनचाहे  उसे अपनाने लगते है।

 हमने देखा है कि कुछ जातियों  का मंदिरों और पाठशालाओं में प्रवेश वर्जित था इसलिए धर्म के नाम पर बच्चों तक को पढ़ने से रोक दिया गया।


आज हम जिस दुनिया में विचरण कर रहे हैं यह पहले से अलग दुनिया है। कुछ लोगों की नज़र में यह कुछ बेहतर दुनिया है। कुछ लोगों की नज़र में यह बदतर दुनिया है लेकिन जब हम इस दुनिया को देखते हैं तो कुछ -कुछ तो यह दुनिया बेहतर लगती है और कुछ कुछ यह दुनिया बदतर लगती है।

 हम सबको यह मान लेना चाहिए कि इस दुनिया में जो जैसा है उसे उस रूप में जीने का अधिकार है इसलिए बाबा हरदेव सिंह जी की यह बात स्वीकार्य दिखाई देती है जो उन्होंने अपने एक प्रवचन में रविंद्रनाथ टैगोर जी का हवाला देकर कही थी कि-  इंसान के इतने गिरने के बावजूद अब भी इंसानो के जन्म हो रहे हैं यह इस बात का प्रमाण है कि परमात्मा इंसान से निराश नहीं हुआ है।

इसलिए हमें भी इतनी आशा तो रखनी ही चाहिए कि हम सब जो जीवित हैं एक दूसरे को जीवित रहने का अधिकार ख़ुशी - ख़ुशी देना चाहिए।