- रामकुमार सेवक
साम्प्रदायिकता आग लगाने का काम करती है और अध्यात्मिकता उसे बुझाने का |
इस प्रकार उस पर विवाद की कोई गुंजाईश नहीं होती चूंकि कोई अगर किसी स्थान को पवित्र मानकर यदि उसकी परिक्रमा करता है तो किसी अन्य को उस पर क्यों आपत्ति हो लेकिन उस परिक्रमा में यदि भड़काऊ नारे अथवा अन्य ऐसी गतिविधियां शुरू हो जाएँ तो साधारण देवी-देवता भी शक्तिशाली हो जाते हैं |यह शक्ति उनमें निहित नैतिक शक्ति से अलग होती है |
इसे उस सत्ता की अप्रत्यक्ष शक्ति भी कह सकते हैं | जो लोग बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करते अथवा चेतनता का ध्यान कम करते हैं ,वे साम्प्रदायिकता की चपेट में सबसे पहले आते हैं और नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर देश,समाज और नैतिकता का विनाश करते हैं |
नेता उनका इस्तेमाल अपनी ताक़त दिखाने के लिए करते हैं |गुलाम अली साहब एक बहुत बढ़िया गायक हैं |पूरी दुनिया उनके गायन को पसंद करती है |कल पता चला कि कुछ लोगो ने अपनी ताक़त दिखा दी और उनका शो रद्द करवा दिया |यह 1995 की बात है जो कि कानून- व्यवस्था के नाम पर बिलकुल आम है क्योकि समाज में अमन पर खतरा कोई भी सरकार नहीं चाहेगी |यद्यपि किसी कलाकार का शो रद्द होने से किसी सरकार का कुछ नहीं बिगड़ता क्यूंकि यह तो कला का दमन है जो कि पूरी तरह कला को हतोत्साहित करता है |किसी कलाकार का इसलिए शो रद्द कर दिया जाये कि वह किसी खास मजहब में जन्मा है तो यह एक साम्प्रदायिक कदम है |
पिछले दिनों हरियाणा के मेवात में भी हिंसा हो गयी जबकि हरियाणा का सांप्रदायिक इतिहास नहीं है |क्यूंकि हरियाणा के देहाती किसान बेहद सरल व्यक्तित्व रखते हैं |
जब मैं पहली बार हरियाणा के समालखा में गया तो मैंने किसी व्यक्ति से गंतव्य स्थल का पता पूछा | उस व्यक्ति ने कहा कि मैं खुद आपको उनके घर ले जाता लेकिन इस समय मुझे कुछ काम है और कहीं और जाना पड़ रहा है |लेकिन उसने मुझे इशारे से बता दिया कि रास्ता वह है |
हरियाणा के लोगों का यह पहला सकारात्मक प्रभाव आज तक मेरे मन में कायम है |वहां के बारे में यह कहावत आम है -देशों में देस हरियाणा ,जहाँ दूध -दही दूध का खाना |
लेकिन शरारती सोच वाले लोगों का क्या करें जो लोगों को भड़काकर अपनी रोटियां सेकते हैं |
हम भारतीय लोग साम्प्रदायिकता का बहुत गहरा ज़ख्म झेल चुके हैं -विभाजन के रूप में ,लेकिन शरारती लोग यह सब नहीं सोचते |हमारे देश के दो टुकड़े हो गए |लाखों लोग मर गए -दर्द का वह मंज़र हमने खूब पढ़ा है,सुना भी है ,बहुत गहराई से महसूस किया है |
क्या उसके बाद भी हमें किसी और सबक की ज़रुरत है ?फिर यह पागलपन क्यों ?
मेवात के लोगों से क्या किसी की स्थायी दुश्मनी है ?क्या गुलाम अली के आने से किसी दंगे-फसाद के होने का ख़तरा था ?
एक शायर,एक गायक तो दूसरों के दर्द को शब्द देता है,उसे अपनी आवाज़ देता है इसलिए लोग उसे प्यार करते हैं |फिर मज़हब भी पीछे छूट जाता है और गोरा-काला रंग भी |
देश भी पीछे छूट जाता है जब मानवता की धारा बहती है |किसी भी नागरिक को अपने देश पर गर्व होता है और वह होना भी चाहिए लेकिन हम मूलतः मानव हैं और उस देश के वासी हैं जहाँ की संस्कृति उन ऋषियों की वाणी से निर्मित हुई है ,जिन्होंने वर्षो पहले कहा था कि -सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् |
यानी कि-सबका भला करो भगवान ,सबका सब विधि हो कल्याण अर्थात वसुधैव कुटुंबकम ,
यह है -अध्यात्म ,जो कि भारत की महानता का कारण है,वास्तविक धर्म है |
इस धर्म का जन्मदाता होने के कारण हमें भारत देश पर और खुद के भारतीय होने पर गर्व होता है |
अब इस अध्यात्मिकता पर खतरे के बादल छाये हुए हैं क्यूंकि विशालता को साम्प्रदायिकता की आरी से लगातार काटा जा रहा रहा है |सहनशीलता ,जो कि मानव के इस धरती पर अस्तित्व की कारण है स्वभाव से लुप्त होती जा रही है |उसे एक कमजोरी मान लिया गया है |अहिंसा के सिर्फ नारे हैं और हिंसा मनुष्य के स्वभाव का हिस्सा बनी हुई है,इसके कारण देश के समतावादी और अध्यात्मिक चरित्र पर आंच आई है |मुझे लगता है कि धर्म के नाम पर जो षड्यंत्रकारी व्यवसायिकता और संकीर्णता पनप रही है ,उसे रोकने और सच्चे अध्यात्म के प्रचार-प्रसार की बहुत ज्यादा ज़रुरत है |