- रामकुमार 'सेवक'
जीवन के कितने ही आयाम हैं जिनमें तारतम्य बनाना और जीवन को संतुलित रखना एक कला है। इस कला में जो पारंगत हो जाते हैं वे प्रायः अहंकार के घेरे में आ जाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि जीवन में व्यवहारिक क्षेत्र में इंसान पारंगत हो ही नहीं।
इसके लिए जीवन जीने की कला सीखनी पड़ती है।बाबा
अवतार सिंह जी के जीवन
का जब हम अध्ययन
करते हैं तो पाते हैं
कि उन्होंने जीवन पूर्ण संतुलन साधा और एक महान
आंदोलन को कर्मरूप दे
पाये,जिसका शुभारम्भ उनके सत्गुरु बाबा बूटा सिंह जी ने किया
था।
यह एक
आध्यात्मिक
आंदोलन
था
जिसमें
जीवन
जीने
की
कला
को
केवल
सीखना
नहीं
बल्कि
रोशन
मीनार
अर्थात
प्रकाश
स्तम्भ
की
भाँति
लोगों
को
सही
मार्ग
भी
समझाना
होता
है।
यह
एक
जिम्मेदारी
भरा
कार्य
है
लेकिन
बाबा
अवतार
सिंह
जी
को
अपने
सत्गुरु
से
जो
मार्गदर्शन
मिला
उसे
उन्होंने
सुनकर
ही
नहीं
छोड़
दिया
बल्कि
उसे
व्यवहार
की
कसौटी
पर
कैसा
और
पूर्ण
अनुभव
के
साथ
जीवन
को
सही
दिशा
दी।
बाबा अवतार सिंह जी का जन्म उन्नीसवीं सदी के
अंतिम चरण 31 दिसंबर और पहली जनवरी की मध्य रात्रि को अविभाजित भारत के रावलपिंडी के निकटवर्ती गांव लत्तिफाल में माता नारायणी देवी और पिता मुक्खा सिंह जी के परिवार में हुआ था लेकिन जो विशिष्ट कार्य के लिए प्रभु ने भेजे होते हैं उनका जीवन कठिन परिस्थितियों से भरा होता है। बाबा अवतार सिंह जी के जीवन में भी विषम परिस्थितियां थीं। बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया और बालक अवतार के जीवन की गाडी खींचने की जिम्मेदारी माता नारायणी देवी पर आ गयी।महान
साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द जी
ने लिखा है कठिन परिस्थितियों
से
बढ़कर
कोई
विद्यालय
आज
तक
नहीं
बना
अर्थात
कठिन
कार्य
को
करने
की
ट्रेनिंग
प्रदान
करने
के
लिए
परमेश्वर
प्रारम्भ
में
ही
कठिन
परिस्थितियों
को
जीवन
में
भर
देता
है।
उन
दिनों देश में ब्रिटिश शासन था। देशप्रेमी सोचते थे कि देश
से ब्रिटिश दासता की बेड़ियों को
काट देना चाहिए। बाबा अवतार सिंह जी ने अकाली
लहर को स्वाधीनता के
संघर्ष का माध्यम बनाया
तथा जैतों के मोर्चे में
भाग लेकर कुछ दिन जेल में भी रहे लेकिन
विधाता
ने
उन्हें
अध्यात्म
के
कर्मक्षेत्र
के
लिए
बनाया
था।
1929 में
वे
बाबा
बूटा
सिंह
जी
से
जुड़े
तथा
एक
निरंकार
प्रभु
का
बोध
हासिल
करके
जीवन
को
नया
अर्थ
दिया |
देशप्रेम भी
जीवन
का
एक
आयाम
है।
देशप्रेम
के
बसंती
रंग
में
रंगकर
लोगों
ने
स्वतंत्रता
का
नया
सूर्य
उगाया।
सुख
और
समृद्धि
का
एक
नया
अध्याय
देशप्रेमियों
ने
लिखा।
निरंकारी
राजमाता कुलवंत कौर जी उन दिनों
को याद करती थीं जब देश को
नयी नयी आज़ादी मिली थी। उन दिनों अध्यात्मप्रेमी
कहते थे -की
होया जे देश आज़ाद होया गर रूह नहीं आज़ाद साड्डी।
विभाजन
के बाद युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी ने दुनिया
को इसी मुक्ति की आवाज़ दी।
यह आवाज़ उन्होंने सिर्फ गले से ही नहीं
दी बल्कि अपने आचरण से भी दी।
जब वे
दिल्ली
के
पहाड़गंज
क्षेत्र
में
रहते
थे
तो
आत्मा
को
जन्म-जन्मांतर
के
बंधनो
से
आज़ाद
करवाने
के
लिए
वे
लोगों
को
सेवा
-सिमरन
-सत्संग
का
मार्ग
बताते
थे।
इन आसान उपायों के द्वारा लोग
निरंकारी मिशन की ओर लगातार
आकृष्ट हो रहे थे
लेकिन कुछ लोग ईर्ष्यावश निरंकारी सन्तों का विरोध किया
करते थे।
एक
दिन जब ये सन्त
सत्य सन्देश देने में लगे थे ऐसे लोगों
ने बाबा अवतार सिंह जी के निवास
स्थान के नीचे खड़े
होकर गाली-गलोच की भाषा बोलनी
शुरू कर दी।
दिन गर्मी के थे तो
युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी ने अपने
सेवादारों को ठंडा पानी
लेकर उन्हें पानी पिलाने भेजा।
उन्हें सचमुच
पानी
की
ज़रुरत
थी
चूंकि
बोलते-बोलते
उनके
गले
थकने
लगे
थे।
उनमें
से
कुछ
लोगों
ने
पूछा
कि
इस
गर्मी
में
हमारे
लिए
पानी
किसने
भेजा
है
?
इन
सेवादारों ने बताया कि
पानी भेजने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि
वही है जिसके विरुद्ध
आप लोग नारे लगा रहे हो। यह सुनकर उन
लोगों को यह सोचकर
ग्लानि हुई कि बाबा अवतार
सिंह जी का मार्ग
तो मुहब्बत और ख़ुलूस का
मार्ग है जबकि हम
लोग वैर-नफरत में ही डूबे हैं।
इस
प्रकार बाबा अवतार सिंह जी ने अपने
आचरण से सिद्ध कर
दिया कि नफरत और
बैर
से
आज़ादी
हासिल
करनी
है।
इस प्रकार
निरंकारी
मिशन
ने
बंधनो
से
आज़ादी
प्रदान
की।
यह स्वतंत्रता ही लोगों को राहत प्रदान करती है। स्वतंत्रता
दिवस के इस पावन अवसर पर आज हमें यह संकल्प करने की आवश्यकता है कि वैर -नफरत,ईर्ष्या -द्वेष आदि बेड़ियों को प्रेम -अमन की सकारात्मक शक्तियों से काटकर देश को शांति और भ्रातृभाव से एक नया सवेरा दिखाना है। इस मंगलमय प्रभात में आइये देश के वीर सपूतों को पूर्ण श्रद्धा से याद करें और समवेत स्वर में कहें- इंसान का
इंसान
से
हो
भाईचारा
यही
पैगाम
हमारा।
आज
समय
की
यही
मांग
है,मिलवर्तन
हो,अमन-प्यार
हो
|