विश्लेषण - देश अमीर है तो देश में रहने वाले गरीब क्यों हैं ?

 -आर.के,प्रिय 

पुरानी फिल्मो के गाने भुलाये नहीं भूलते |हिंदी फिल्म खानदान का ,गीतकार राजेंद्र कृष्ण का लिखा हुआ एक गाना है जिसमें किसान दम्पति बादल और पक्षियों से बात कर रहे हैं-

नीलगगन के उड़ते बादल -आ ,आ,आ ,धूप में जलता खेत हमारा ,करदे तू छाया |

अगली पंक्ति कहती है-

छुपे हुए ओ चंचल पंछी जा जा जा ,देख अभी है कच्चा दाना पक जाए तो खा |

फसल को बचाने के लिए पक्षियों को उड़ाने की पुरानी परंपरा है | अनाज को बचाने के लिए ऐसा करना  जरूरी भी था क्यूंकि देश नया नया आज़ाद हुआ था और 1964 -65  तक पेट भरने के लिए  गेहूं आयात करना पड़ता था |

जब इंसान की ज़रुरत ही पूरी न हो रही हो तो पक्षियों की दावत कहाँ से करेंगे ?

लेकिन लोगों के दिल बहुत बड़े होते थे |इस गाने के गीतकार भी उसी पक्ष के रहे होंगे ,फिल्म खानदान  के गीतकार  राजेंद्रकृष्ण थे  और उनके लिखे गीत आज तक ज़हन में तरो ताजा हैं |गीत में नायिका कहती है-देख अभी है कच्चा दाना ,पक जाए तो खा |

वह पक्षियों के आने पर स्थायी रोक नहीं लगा रही है बल्कि दाना सूखने की इंतज़ार करने को कह रही है |  

मेरे पिताजी कहते थे -रामजी की चिड़िये रामजी के खेत ,खाओ री चिरैया भर भर पेट 

 वे किसान नहीं थे बल्कि श्रमिक थे |लेकिन दिल उनका भी बहुत बड़ा था जबकि आज अमीर और अमीर हो रहे हैं और गरीब और गरीब |कोई किसी पर दया नहीं कर रहा |

1965  में जब फिल्म खानदान रिलीज़ हुई उस समय भारत नैतिकता के मामले में स्वर्णिम भारत था क्यूंकि दिल भी होते थे और दया भी जबकि इस समय देश में नैतिकता का जैसे अकाल पड़ा हुआ है और दौड़ लगी हुई है विश्वगुरु होने की |

आज का समय कहला तो रहा अमृतकाल है लेकिन लोगों के मनो में मलाल है कि वोट सबसे कीमती क्यों हो गया जबकि आज की दुनिया में आदमी की कीमत सबसे कम है और नैतिकता की दृष्टि से भी आदमी कंगाल है |

पैसे की दौड़ में आदमी खो गया |लगता है अब हमारे आस-पास आदमी नहीं सौदागर हैं और अपनी वाक्पटुता से इंसानो को ठग रहे बाजीगर हैं| 

इस गीत में राजेंद्र कृष्ण साहब आगे लिखते हैं- 

हरी -भरी इन खेतियों की राम करे रखवाली 

वो चाहे तो लाखों दाने दे दे इक इक बाली 

मेहनत वालों की सुनता है ,वो ऊपर वाला 

खोल के रखियो अपनी झोली भर देगा दाता---

वर्गीकरण की दृष्टि से यह एक प्रणय गीत है जो कि खेतों के बीच फिल्माया जा रहा है लेकिन मुझे यह गीत भजन लगता है चूंकि आदमी परमात्मा के प्रति विश्वासी था |उसका मानवता में भी विश्वास था |उस समय अपने गाँवों में खेत और पेड़ लहराते हुए हमें आमतौर से दिखाई देते थे |

देश तब सचमुच कृषि प्रधान था |धीरे -धीरे देश कृषि के मामले में आत्मनिर्भर हो गया और लोगों ने जमीने बेचनी शुरू कर दी |

आदमी धीरे धीरे धनी होता चला गया लेकिन नैतिकता के मामले में गरीब ,घोर गरीब और कंगाल हो गया |हालात यह है कि राम के नाम का भी व्यापार हो रहा है और चालाक लोग विश्व गुरु होने के नारे लगा रहे हैं |उनके समर्थक किराये की दिहाड़ी वसूलकर ,आराम से बैठकर ताली बजा रहे हैं |

किसी विद्वान ने लिखा था कि- भारत एक अमीर देश है जहाँ गरीब लोग बसते हैं | 

 निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी ने इस विचार का विश्लेषण करते हुए कहा कि देश गरीब है तो उसमें रहने वाले गरीब क्यों हैं ?

उन्होंने कहा कि देश जलवायु,खनिज पदार्थों ,भाषा और संस्कृति की विभिन्नता और विशेषता आदि के मामले में तो समृद्ध है |

धर्म के मामले में भी यह समृद्ध है क्यूंकि सबसे ज्यादा गुरु-पीर-पैगम्बर आदि महापुरुष यहाँ हुए हैं लेकिन फिर भी यहाँ के निवासी गरीब हैं तो

उसका कारण यह है कि गुरु-पीर-पैगम्बरों की शिक्षाओं को आचरण का अंग नहीं बनाया गया इसीलिए देश में नैतिक मूल्यों का जैसे अकाल पड़ा हुआ है |

हमारे जो कर्णधार हैं उनकी दृष्टि भी अत्यंत सीमित हैं | धर्म का काम जोड़ना है तोडना नहीं |इंसान से इंसान को जोड़ना यही धर्म का जरूरी कार्य है |आपस में प्रेम और सदभाव पैदा करना ही धर्म की  वास्तविक जिम्मेदारी है | देश को जुड़े रहने के लिए हर मानव में आपसी प्रेम की शक्ति का प्रवाहित होते रहना अति आवश्यक है |