रामकुमार सेवक
मानव समाज में काले और गोरे का सवाल शुरू से ही बहुत बड़ा रहा है |यद्यपि इसमें इंसान की अपनी कोई भूमिका नहीं है चूंकि कोई इंसान खुद तय नहीं करता कि वह अफ्रीका में पैदा होगा या जर्मनी में | लेकिन त्वचा के रंगों के आधार पर हिंसा बिलकुल आम रही है |
प्रायः गर्म इलाकों के लोग श्याम वर्ण के और ठन्डे इलाकों के लोग गौर वर्ण के होते हैं |अधिकांशतः यह सब प्राकृतिक कारणों से है इसलिए विवाद का कोई कारण नहीं है लेकिन यदि किसी वर्ण को अहंकार का कारण बना लिया जाये तो विवाद जन्म ले सकता है |और अहंकारी लोग उग्र हो जाते हैं |
हिटलर के बारे में यह तथ्य आम है कि वह जर्मन लोगों को जन्मजात ही शासन करने का हक़दार मानता था और उसका सोचना था कि ईश्वर ने जर्मनों की उत्पत्ति शासन करने के लिए की है |
इस नाते अन्य देशों के लोगों के लिए उसके मन में जबरदस्त पूर्वाग्रह थे |
यहूदियों के लिए उसके मन में गहरे पूर्वाग्रह थे और इस कारण वह उनसे गहरी नफरत करता था |यहूदियों के लिए उसने ऐसे चैम्बर बनवाये थे जहाँ वे जीवित नहीं रह सकते थे |यह समझिये जैसे सौ लोगों को ऐसे कमरे में डाल दिए जिसमें जगह बेहद कम हो |घुटन तो वहां हो ही और तब भी वे न मरें तो जानलेवा गैस छोड़ दी जाए |
नाज़ी कैम्पों के उन चैम्बर्स को जिन लोगों ने भी देखा है वे उसकी वीभत्स सोच की कल्पना कर सकते हैं | इस प्रकार के पूर्वाग्रह लगभग हर समाज में होते हैं ,कारण कुछ भी हो सकता है लेकिन लोगों में नफरत का अस्तित्व ऐसे ही कारणों से है |
मुझे लगता है कि यह इंसानो की बदकिस्मती है परमात्मा के दिए गए वरदानो को भी भी इसने अभिशाप का रूप दे दिया है |ऊपर हमने वर्ण और जाति के आधार पर नफरत की प्रवृत्ति का जिक्र किया |
धर्म के आधार पर तो नफरत आम है जबकि धर्म का अभ्युत्थान ही प्रेम-अमन के लिए हुआ है |धर्म के आधार पर जो नफरत हम देख रहे हैं ,उसे विडंबना न कहें तो क्या कहें ?
परसों ही बिहार के किसी जिले में एक ट्रक ड्राइवर को पीट -पीट कर मार डाला गया |उसका दोष सिर्फ इतना बताया जाता है कि वह हड्डियों के कारखाने में नौकरी करता था और जिस ट्रक को वह चला रहा था उसमें हड्डियां लदी थीं और ट्रक बीच में ख़राब हो गया |इस प्रकार भीड़तंत्र ने एक नागरिक को मौत के घाट उतार दिया |
ट्रक का ख़राब होना एक दुर्घटना जैसा है |उसे सहयोग भाव से देखना चाहिए |मुझे नहीं लगता कि उसे पीटने वाले पूर्ण शाकाहारी रहे होंगे या भीड़ में शामिल लोग किसी भक्ति भाव के पक्षधर रहे होंगे |
इस हिंसा का आधार है-सामुदायिक नफरत |
अगर इंसान की नीयत में झोल न हो तो यह नफरत कोई समस्या ही नहीं है क्यूंकि वह हर एक से नफरत नहीं करता |मानवता के संस्कार यदि हर मानव में हों तो नफरत अंधी नफरत नहीं हो सकती |
संतुलित लोग किसी के रोजगार और उसके आश्रितों (बाल-बच्चों )को बिलकुल नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते |
वर्ण के आधार पर उत्पन्न पूर्वाग्रहों को ख़त्म करना इतना मुश्किल नहीं , जैसे डॉ.राधाकृष्णन साहब के सामने काले -गोरे के आधार पर लोगों को उच्च और निम्न मानने का प्रश्न आया तो उन्होंने इस प्रश्न को बहुत आराम से सुलझा लिया क्यूंकि नीयत स्वच्छ रखने के साथ वे महान दार्शनिक भी थे और भारत से बाहर भी उनकी महान प्रतिष्ठा थी |उन्होंने एक रोचक प्रसंग की उत्पत्ति की |
उन्होंने काले -गोरे के विवाद की तुलना किसी गृहिणी के रोटी बनाने की प्रक्रिया से की |
उन्होंने कहा-परमात्मा ने कुछ इंसानो को ज्यादा सेक दिया ,वे काले हो गए |कुछ रोटियां कुछ कम सिकी वे श्वेत वर्ण की हो गयीं |
अपने देश के लोगों के बारे में उन्होंने कहा कि हम लोगों को परमात्मा ने ठीक -ठाक आँच दी ,इसलिए हम लोग न ज्यादा गोरे हैं न काले |
इस प्रकार बड़े मसले का समाधान उन्होंने आसानी से कर दिया |