प्रेरणा -यह एक पॉजिटिव (सकारात्मक )शब्द है |इस शब्द के कारण बहुत सारे प्रसंगों को हम प्रेरक प्रसंग मानते हैं |लेकिन मेरी मेज पर दैनिक हिंदुस्तान रखा है जिसमें एक समाचार लिखा है कि श्रद्धा वालकर हत्याकांड से प्रेरणा लेकर महिला मित्र के बीस टुकड़े कर डाले |
मुझे लगता है कि इस खबर में रिपोर्टर ने प्रेरणा शब्द का दुरूपयोग किया है |
यह रिपोर्टर कलमकार नहीं है क्यूंकि यदि वह कलमकार रहा होता तो प्रेरणा शब्द की गहराई में उतरा होता |
एक कलमकार शब्दों को निर्जीव तो नहीं मानता इसीलिए शब्द के ब्रश से वह ऐसा चित्र उतारता है जो वर्षों बाद भी मन -मस्तिष्क को ताजगी देता रहता हैं |
शब्दों का जीवन संवेदनशील व्यक्ति को महसूस होता है |उदहारण के लिए देखें कि कोई व्यक्ति पूछ सकता है कि आपके पिताजी घर में हैं क्या ?
एक अन्य आदमी इस सवाल को ऐसे भी पूछ सकता है कि तेरी माँ का खसम कहाँ है ?
दोनों वाक्यों के मूल भाव में कोई अंतर नहीं है लेकिन पहले वाक्य की गरिमा सुकून देती है और दूसरे वाक्य का कोड़ा हमारी खाल उधेड़ देता है |
उस रिपोर्टर को निश्चय ही शब्दों की गरिमा का ध्यान नहीं रहा होगा अन्यथा शब्दों के हृदय में झाँकने की फुर्सत तो हर कलमकार को होती है बल्कि उसके हृदय में झांके बिना वह किसी शब्द का उपयोग कर ही नहीं सकता |किसी कवि ने कहा है -
तू रूप है किरण में ,सौंदर्य है सुमन में |
तू वेग है पवन में ,विस्तार है गगन में |
थोड़े से शब्दों का उपयोग करके कवि ने परमात्मा की विराटता का ऐसा चित्र खींचा है जो सीधे हृदय पर अंकित होता है |इसके विपरीत रिपोर्टर ने लिव इन साथी के बीस टुकड़े कर डालने की जघन्यता से हमें रू -ब रू करवाया है |दूसरे शब्दों में कहें तो हमारे शरीर से सभ्यता और संस्कार के छिलके उतारे हैं |
आश्चर्य की बात यह है कि भागमभाग के इस दौर में शब्दों के हृदय में झांककर कोई देखता ही नहीं और बुरे से बुरे शब्दों का प्रयोग आदमी बिना सोचे -समझे कर रहा है |
अपने इर्द -गिर्द ऐसे शब्दों का जमावड़ा रखने के कारण बेहतर शब्दों को उपयोग करने की उसकी क्षमता जैसे लुप्त हो गयी है |
रिपोर्टर ने इस खबर की प्रेरणा जिस खबर को बताया है वह विगत दिसंबर में दिल्ली में घटित हुई थी |मस्तिष्क जैसे स्तब्ध हो गया था क्यूंकि जिसे कोई इंसान प्रेम करता है या वैसा दावा करता है ,उसके शरीर के टुकड़े करने की जघन्यता कोई इंसान सोच भी नहीं सकता |
जो ऐसा सोच सकता है मुझे तो उसके इंसान होने पर भी संदेह होता है |वह उसे कभी प्रेम भी करता रहा होगा ,यकीन नहीं होता |
वास्तव में प्रेम की गहराई में उतरने का आजकल फैशन ही नहीं है |आजकल फ़ास्ट फ़ूड का चलन है |भारी -भरकम बर्गर को मुँह में लगभग जबरदस्ती मुँह में ठूंसा और जल्दी -जल्दी पेट में उतारा |
भागम भाग के इस दौर में समय की बचत सबसे बड़ी प्राथमिकता है भले ही तीखे शब्दों की छुरी दिल को चीरकर रख दे लेकिन समय बचना चाहिए |
एक दिन में घंटे तो चौबीस ही होते हैं ,उन्हें पच्चीस या छब्बीस घंटे तो नहीं बना सकते |
लेकिन आज की थ्योरी है -time is money.
इस थ्योरी का अपना तर्क है |सबसे बड़ी बात यह है कि यदि हमने समय बचाया है तो उस बचे हुए समय में क्या हमने कोई रचनात्मक कार्य किया है ?
क्या शब्दों की आत्मा में झाँकने की कोशिश की है ?क्या मानव की संवेदना को जगाने की कोशिश की है ?यदि हाँ तो समय की बचत का कोई अर्थ है ,यदि ऐसी खबर हमारी संवेदना को नहीं कचोटती तो फिर समय की बचत का कोई अर्थ नहीं ?
पिछले सप्ताह नवभारत टाइम्स के एक संस्करण में यह प्रश्न उठाया गया था कि इस जघन्यता को भी लोगों ने आनंद का सामान बनाना शुरू कर दिया है |कुछ लोगों ने लिखा कि रेफ्रिजेटर के कितने -कितने इस्तेमाल होने शुरू हो गए हैं |और पांच -छह फ़ीट की अपनी लिव इन साथी को भी उसमें रखा जा सकता है जबकि फ्रिज की कीमत उतनी ही है |कोई एक्स्ट्रा पेमेंट नहीं करनी पड़ती |
फ्रिज का ऐसा प्रयोग दर्दनाक है |
महाराष्ट्र के एक शहर ,शायद मुंबई में छप्पन साल के एक शख्स ने अपनी लिव इन साथी छत्तीस साल की स्त्री की हत्या करने के बाद उसके बीस टुकड़े करके फ़ेंक दिए |
इसे सहन कर पाना कठिन होना चाहिए अन्यथा पृथ्वी पर जीवन तो होगा लेकिन फुर्सत नहीं होगी |भागम भाग का यह दौर हमें जीवित नहीं रहने देगा |संवेदना को जीवित रखना एक बड़ी चुनौती है |