श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल '
जिधर देखो उधर बस भागम भाग मची हुई है ।
जिसे देखो वह बस दौड़ रहा है, भाग रहा है, चल
कोई नहीं रहा । सब जल्दी में हैं । हर व्यक्ति इस दौड़-भाग प्रतियोगिता में मैडल प्राप्त करना
चाहता है । पीछे कोई नहीं रहना चाहता । सब खरगोस बनना चाहते हैं, कछुआ
कोई नहीं बनना चाहता । और एक विलक्षण बात यह है कि लोग कछुआ नहीं बनना चाहते हैं
किंतु रेस जीतना चाहते हैं । ये तो वही बात हुई कि हँसना भी चाहते हैं और गाल भी
फुलाना चाहते हैं ।
मुझे इस
जल्दबाजी से भारी नफ़रत है और इन दौड़-बाजों से तो मुझे एक कुंतल उन्नीस किलो
और पांच सौ तीस ग्राम एलर्जी है । मैं ऐसे लोगों को कभी भी घास नहीं डालता । लेकिन
क्या करूं ये जल्दबाज़ 500 एम जी पावर के इंजेक्शन की ऊर्जा लिए मुझ निरीह, कमजोर
और मरियल से प्राणी पर ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे किसी बकरी पर भेड़िया टूट पड़ता है
। बस एक ही रट, "बाबू जी मेरी ये फाइल जल्दी से आगे बढ़ा दीजिए, इसे
जल्दी ही निपटा दीजिए" । मेरा मिमयाना,
रिरयाना जैसे उन्हें कभी सुनाई ही नहीं
देता । बस अपनी धुन में मस्त वही एक बात ,,,,जल्दी से,,,,बाबू जी,,,,,"।
मैं भी अब रोज - रोज की यही "बाबू
जी ,,,,जल्दी से,,," सुन - सुन कर पक गया हूं, बोर
हो गया हूं, धीरे - धीरे इस जल्दबाजी के दुरूह एवम् मकड़जाल से निकलने के
मैंने भी अब कई पैंतरे सीख लिए हैं । कुछ छोटे किंतु प्रभावी मंत्र मैंने भी सिद्ध
कर लिए हैं । मैं भी अब उनके जल्दबाजी का इलाज समझ गया हूं, और
तुरंत उपचार कर देता हूं,,,,,"काम हो जाएगा,,,,,किंतु ,,,,,,,थोड़ा समय लगेगा,,, समझे,,,,,,,"?
किसी भी समस्या के निदान में समय लगता
है, इसमें जल्दबाजी घातक सिद्ध हो सकती है । कोई भी समस्या इतनी
बड़ी नहीं होती कि उसका हल न निकाला जा सके और कोई भी समस्या इतनी छोटी भी नहीं
होती की उसका हल चुटकी में निकल आए। किसी भी समस्या का हल यदि चुटकी में निकल आए
तो बह समस्या है ही नहीं । मेरी भी इस समस्या का हल और सिद्ध मंत्रों की प्राप्ति
वर्षों के तप, साधना और प्रयासों का ही प्रतिफल है ।
इस समस्या के निदान में सबसे अधिक
योगदान है अभी हाल में ही भूत हुए मेरा मतलब रिटायर्ड ( निवर्तमान ) हुए बड़े बाबू
जी का । उन्होंने इस सीट पर आने बाली सभी समस्यायों के बारे में मुझे खुलकर पूरे
विस्तार से समझाया , उनके निदान भी बताए और साइड इफैक्ट भी ।
बड़े बाबू अरोरा साहब को दुनियादारी की
खूब समझ थी, उन्होंने बड़े से बड़े केश,
बड़ी से बड़ी उलझी हुई फाइलें ऐसे
सुलझाई जैसे वे कभी उलझी ही नहीं थीं । उन्हें उलझे हुए केश सुलझाने में महारथ
हासिल थी । बड़े से बड़े अधिकारी उनसे सलाह लेते थे । उन्होंने घाट - घाट का पानी
पिया था । वे बहुत ही अनुभवशील व्यक्ति थे ।
उन्होंने यह सीट सौंपते हुए कुछ आवश्यक
और उपयोगी टिप्स मुझे भी दिए थे । उन्होंने श्रीकृष्ण की तरह मुझे अर्जुन समझ कर
गीता का सार तत्व समझाते हुए कहा था,
"अपने को पहचानो! कि मैं कौन हूं? मेरा
जन्म किस निमित्त हुआ है । अब तुम बाबू नहीं ,,,,बड़े बाबू हो गए हो,,,समझो
और खुद को पहचानो एक बड़ा पद, बड़ी जिम्मेदारी और बड़ा रुतवा । हा -
हा - हा - हा,,,!"
मैं साष्टांग प्रणाम करता हूं अरोरा
साहब को जिन्होंने मुझे इस गरिमामय पोस्ट (बड़े बाबू की) की गरिमा बनाए रखने के
लिए आवश्यक और राम वाण अचूक नुक्से बताए । इस पोस्ट के लायक बनाया । उन्होंने कहा
था, "अब तुम केवल बाबू नहीं हो,
बड़े बाबू हो और बड़े बाबू को प्रत्येक
ऑफिस की रीढ़ माना जाता है । सारा आफिस बड़े बाबू के इशारे पर चलता है, यानि
कि बड़े बाबू रूपी धुरी पर ही घूमता है ।" यह तुम्हारा सौभाग्य है कि ईश्वर
ने तुम्हें ये सुखद क्षण प्रदान किए हैं । तुम तो ईश्वर का धन्यवाद ज्ञापित करो और
उनसे प्रार्थना करो कि, "अगले जन्म मोहे बड़े बाबू ही कारियो "
उन्होंने मुझे अपने करीब बुलाकर स्पष्ट
रूप से कहा था, "कभी भी किसी काम को जल्दबाजी में मत करना । प्रत्येक फाइल को
खूब देख- भाल कर,
समझ सोचकर, खूब
पका कर उसका वजन देखकर ही आगे बढ़ाना । किसी भी केस में कोई जल्दबाजी नहीं करना ।
धीरे - धीरे इत्मीनान से सब काम करना । अगर इस पोस्ट का सही रूप से प्रसाद पाना
चाहते हो, इसका पावन अमृत पान करना चाहते हो तो आहिस्ता आहिस्ता काम को
अंजाम देना । अपनी गरिमा बचाकर रखना,
आखिरकार अब तुम बड़े बाबू हो इसलिए,,,, बाबू
जी धीरे चलना,,,,,,।
व्याख्याता (हिन्दी)
अशोक
हायर सेकेण्डरी स्कूल
लहार, भिण्ड (म०प्र०)
मो0 – 8839010923