मुंबई में जो रहते हैं वे भली भाँति जानते हैं कि अंडरवर्ल्ड का सरगना होना कितना खतरनाक है |यह ख़तरा आजकल दिल्ली के आकाश पर भी मंडरा रहा है |दिल्ली तो भारत की राजधानी है फिर पीछे क्यों रहे |
गरीब आदमी को अक्सर दो वक़्त भोजन का जुगाड़ करने से ही फुरसत नहीं मिलती |आजकल उसे डेंगू से बचाव का भी जुगाड़ करना पड़ रहा है|
गर्मी का मौसम है और उस पर नीम के पत्तो
का धुआ |सोना तो उसके पास कभी था नहीं अब रात को सोना भी आसान नहीं रहा|
मच्छर वाकई बहुत खतरनाक है |सुबह का घूमना शुरू से ही मुफीद बताया जाता रहा है |हमारे पिताजी बहुत सुबह उठा करते थे और नए नए किस्म के हुक्मनामे जारी किया करते थे |उनमें से एक यह भी होता था -ज्यादा देर सोया मत करो |सुबह सूरज निकलने से पहले घूमने जाया करो |मोहल्ले के जितने लड़के थे सबके पिता जब ऐसे हुक्मनामे जारी करने में परफेक्ट हो गए तो हम सब लड़कों को घूमने जाना पड़ा |
मगर सर मुंडाते ही ओले पड़े |हमारा स्कूल सुबह का था और हम लेट होने शुरू हो गए |परिणाम यह हुआ कि प्रिंसिपल साहब रोज गेट पर खड़े मिलते और नित्य डंडों से मेरा स्वागत होता |
अब तो पिताजी को स्वर्गवासी हुए वर्षों बीत चुके हैं लेकिन उनका हुकमनामा मुझे याद आ गया और मैंने सुबह की सैर करनी शुरू कर दी |
हमारे बचपन में हमारे कस्बे में बहुत बाग़ थे लेकिन आजकल बाग तो कॉलोनियों के नामो के साथ ही पढ़ने -सुनने को मिलते हैं |जैसे हमारे पड़ोस में एक गुलाबी बाग है |किसी साथी ने जब बताया -गुलाबी बाग तो जैसे दफ्तर की हर सीट पर गुलाबी रंग के फूल खिल गए लेकिन दफ्तर का चपरासी मांगेराम तीन बजते ही पीनी शुरू कर देता था |ख्यालों के फूल तुरंत मुरझा जाते थे |तो यहाँ तो नाम के ही बाग हैं |जहाँ मैं घूमने जाता था वहाँ भी सिर्फ मिटटी है वहां पेड़ एक भी नहीं है |
कॉलोनी का बॉर्डर जहाँ ख़त्म होता है,वहां एक गन्दा नाला बहता है |उसका बहना बहुत जरूरी है चूंकि खूबसूरत औरतें भी जो खाती -पीती हैं उनका मल भी उसी में विसर्जित होता है |
साथ ही कॉलोनी में जितने भी डॉक्टर ,कम्पाउण्डरऔर झोलाछाप हैं उनके कल्याण का मंत्रालय भी इसी नाले से संचालित होता है |
अन्य डॉक्टरों के कल्याण के लिए भी भगवान ने जिन मच्छरों की उत्पत्ति करनी होती है,वे भी इसी नाले के किनारे पर अवतार लेते हैं |नतीजा यह होता है कि डेंगू मदमस्त होकर धींगामस्ती करता रहता है |वह अकेला ही मस्ती नहीं करता बल्कि उसके छोटे भाई मलेरिया और दूसरे छोटे- बड़े वायरल बुखार भी वहाँ मेरे जैसे निरीह नागरिकों के साथ गुंडई करते रहते हैं |
बॉर्डर पार करते ही जो शांति क्षेत्र है वहाँ दिन दहाड़े अपराध होने की परंपरा नहीं है |इसलिए सुबह के वक़्त पूर्ण शांति रहती है ऑक्सीजन का शांतिपूर्ण विस्फोट मौन होकर होता रहता है |
उसके आवेगमें मच्छरों की तरफ जरा भी ध्यान नहीं रहता |यही कारण है कि सुबह होते ही कदम नाले का बॉर्डर पार करने को यूँ तत्पर हो जाते हैं जैसे वहाँ नयी राशन की दुकान खुली हो |भीड़ बिलकुल न हो और राशन मुफ्त बँट रहा हो |
चूंकि उस समय घरवाली साथ नहीं होती तो खौफ भी नहीं होता इसलिए पिताजी का हुकमनामा कुछ ज्यादा ही अर्थपूर्ण नज़र आता है और कदम उस तरफ इस तरह गतिशील हो जाते हैं जैसे कोई फैशन परेड हो रही हो या नौटंकी का कोई नाच चल रहा हो |सुबह की सैर नए नए अर्थ देने लगती है |
चूंकि घरवाली साथ नहीं होती तो मोबाइल पर भी बेखौफ बात कर सकते हैं अन्यथा पहला ही सवाल होता है कि किससे बात कर रहे हो ? दहाड़ सुनकर मेरी सिट्टी-पिट्टी यूँ गुम हो जाती है जैसे लाला की दुकान में सैंपल भरने वाले आ गए हों |आजकल के पति उतने दिलेर नहीं होते जितने हम लोगों के पिताजी हुआ करते थे |शेरनी की दहाड़ सुनकर पति फ़ौरन मिमियाने लगता है |चरित्र की पूरी सुरक्षा के बावजूद ऐसा लगने लगता है कि कहीं कोई ऐसी हरकत तो नहीं हो गयी जो महोदया को नागवार गुजरी हो |खुद पर ही चरित्रहीन होने का शक गहराने लगता है |
ऐसे खतरनाक दौर में काली मिट्टी के खुले मैदान की खुली सैर बहुत राहत प्रदान करती है |
वक़्त वक़्त की बात है |रात को बारह बजे भी सरकार महंगाई बढाती रहती है |वक़्त ऐसा आया कि शाम को जैसे ही दफ्तर से घर लौटा कि कंपकंपी शुरू हो गयी |शेर से मीलों दूर होने के बावजूद मैं यूँ कांपने लगा जैसे आस पास पालतू बाघ घूम रहा हो |
शरीर यूँ बेजान हो गया हो जैसे दूर के किसी गांव में ट्रांसफर हो जाये | और अंततः बच्चों ने हस्पताल ले जाने का फैसला कर लिया और तुरंत वहां पहुँचाया |
जान पर खतरा था क्यूंकि डॉक्टरों ने बताया कि डेंगू हो गया है |
मुझे मन में ख़ुशी भी हो रही थी कि हर महीने सी. जी .एच .एस. की कटौती के तौर पर जो हरमहीने तनख्वाह में से लगभग एक हज़ार रूपये कट जाते हैं जबकि शरीर स्वस्थ रहता है |अब मौका आया है अस्पताल के प्राइवेट वार्ड के डॉक्टरों और नर्सों की सेवाएं लेने का |
पैसे वसूलने का मौका तो आया ,यह संतोष था |तीमारदारी में लगी नर्स अगर खूबसूरत भी हुई तो और बढ़िया रहेगा |लेकिन हम खुद ही खूसट हैं तो नर्स खूबसूरत कैसे मिलती |बहरहाल नर्सों और डॉक्टरों की सेवा और अपनी बीवी द्वारा रखे गए करवा चौथ के व्रत के प्रताप से पांचवे ही दिन हम अस्पताल से सुरक्षित लौट आये |
लेकिन घरवाले डरे हुए थे ,और अब तक याद दिलाते रहते हैं कि प्लैटलैट्स कितने कम हो गए थे |
शुक्र है बीमार हुए तो ठीक भी हो गए |मैं नाले के उस पार ऑक्सीजन के आकर्षण और मोबाइल फोन पर खुली बातचीत करने के लोभ में जाने वाले अन्य लोगों के बारे में सोच रहा हूँ कि वे स्वस्थ हों |