रामकुमार सेवक
सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी अक्सर एक प्रसंग सुनाया करते थे और पिछले दिनों पूज्य माता सविंदर जी (2016के बाद ) ने भी उसे दोहराया कि एक शहर में आग लग गयी |शहर में दो प्रकार के लोग थे-पहले-आग लगाने वाले और दूसरे-आग बुझाने वाले |तभी देखा कि एक चिड़िया अपनी चोंच में पानी की बूँद लाकर आग पर डाल रही है |यह देखकर बुद्धिमानो ने कहा -तेरी इस एक बूँद से क्या आग बुझ जायेगी ?कहते हैं कि उस चिड़िया ने कहा-इस बूँद से निश्चय ही इतनी आग नहीं बुझ सकती लेकिन जब कभी आग लगाने वाले और आग बुझाने वालों की चर्चा होगी तो मेरा नाम आग बुझाने वालों में आएगा |
इस प्रसंग को थोड़ा और आगे ले जाते हैं |अपने चारों तरफ देखें |हालाँकि किसी के भी हाथ में मिट्टी का तेल और दियासलाई नहीं है फिर भी आग लगी दिखाई देती है |यह आग बिजली के तारों के कारण नहीं लगी है |यह बांस का जंगल भी नहीं है फिर भी आग लगी हुई है क्यूंकि प्रतिद्वंद्विता में कोई हमसे आगे निकल गया है |हमारी पार्टी को कोई और ले उड़ा |हमारी थाली का खाना कोई और ले गया |हर कोई एक दूसरे से उलझने को तैयार है |कोई अपनी निंदा सुनकर तैश में है |कोई चुगली से परेशान है |वैर-ईर्ष्या,हिंसा-लड़ाई आदि की अग्नि ने हमें चारों तरफ से घेर रखा है |चिड़िया की चोंच में पानी के समान संत-महात्मा-महापुरुष इस आग को बुझाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन आग कम होती नज़र नहीं आ रही-वे कहा करते थे-माना कि इस जहाँ को न गुलज़ार कर सके,
पर खार कुछ कम कर गए .जितने जिधर से हम |
वे एक विश्लेषण और किया करते थे-1-part of the problem (समस्या के अंग )2-part of the solution (समाधान के अंग ) अर्थात दो प्रकार के इंसान होते हैं-एक समस्या पैदा करते है और दूसरे समस्याओं को हल करते हैं |इस समय लगभग हर मनुष्य बाहर -भीतर की समस्याओं में घिरा है |हमारे सत्गुरुओं की शिक्षाएं जैसे दांव पर लगी हैं |ऐसे में सोचने की बात यही है कि हम समाधान का हिस्सा बने ,समस्याओं का नहीं |सत्य को स्वीकारना सीखें |जो चीज त्यागने योग्य है उनसे बचें ताकि हमारी गणना आग बुझाने वालों में हो |