जो जीवन तुम्हें मिला है यह बहुत मूल्यवान है इसको यूँ ही नहीं गंवाना है -निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी

महापुरुष कहते हैं कि इस भागते-दौड़ते जीवन में तुम कभी रुक कर तो सोचो कि क्या जीवन का लक्ष्य यही है ?
     इस मनुष्य जीवन में आये हैं ,इसे हीरे जैसा जन्म कहा गया है तो क्या इन्हीं कार्यो तक सीमित रहने से पूर्णता मिल जायेदी या फिर इससे आगे भी हमने सोच रखनी है |  
     हमें इससे आगे बढ़ना है ,केवल दुनियावी प्राप्तियों तक सीमित नहीं रहना है |केवल मौज-मस्ती तक ही सीमित नहीं रहना है | 
     Worldly achievements का महत्व  तो ज़रूर है लेकिन महापुरुष कहते हैं कि केवल और केवल वहीं तक जो सीमित रह जाते हैं और विचारते नहीं हैं,उस तरफ बढ़ते नहीं हैं तो अपनी उपलब्धियों के बावजूद संसार में खाली हाथ ही आते हैं और खाली हाथ चले भी जाते हैं |
    उसके साथ जो जाना चाहिए वो जाता नहीं है और साथ जा भी तब सकता है जब प्राप्त हो हमें |जो जीवन तुम्हें मिला है यह बहुत मूलयवान है इसको यूँ ही नहीं गंवाना है |   

इंसान का रूतबा सर्वश्रेष्ठ क्यों?
     इंसान का रूतबा इस कारण ऊंचा माना गया कि इंसान अपने मूल परमात्मा की पहचान कर सकता है और फिर उस पहचान के द्वारा वो स्वयं की भी पहचान कर सकता है इसीलिये कहा गया है कि ईश्वरानुभूति के द्वारा आत्मानुभूति |सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सबका स्रोत है को जानकार हम अपने विशुद्ध सत्य स्वरुप को जान सकते हैं |
    सांसारिक उपलब्धियों की प्राप्तियों से रोका नहीं जा रहा है,इससे कोई नुक्सान नहीं हैं इसीलिये यह कहा जाता है कि कठिन परिश्रम करो और अधिक से अधिक प्राप्त करो |इससे तुम अपने परिवार को और खुशहाल बनाते हो लेकिन इन सबके बावजूद महापुरुष कहते हैं कि साथ जो जानी है वो सच्ची दौलत यह परमात्मा,इश्वर ,निराकार ,जो आत्मा का मूल है ,इसे प्राप्त करो |

बूँद और सागर 
बूँद द्वारा सागर की की तरह अपने आपकी पहचान करनी है |अगर क़तरे (बूँद ) का सागर से सामना न हुआ तो तो क़तरा अपने आपकी पहचान नहीं कर पायेगा क्यूंकि वह एक क़तरा है ,बूँद है |
जिस क़तरे का सागर से सामना हो गया ,उसे  पता चला कि यह जो जल है,सामने सागर में ,,यह मैं -हूँ |अगर तमाम उम्र क़तरे का सामना सागर से न हो तो उसे क्या मालूम पडेगा |उसे कैसे पता चलेगा कि  उसका मूल स्वरुप क्या है | इस प्रकार यह बोध हो जाना प्रत्येक आत्मा के लिए कल्याण की बात मानी गयी है इसीलिये भगवान श्री कृष्ण ने तमाम प्रकार के भक्तो से ज्ञानी  भक्तो को श्रेष्ठ माना है |
 
सिर्फ पढ़ना-सुनना काफी नहीं 
महापुरुषों की वाणी में परमात्मा का ज़िक्र है ,यह हमने सुन लिया |जैसे दास जिक्र करता है कि पानी की properties है -हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का mixture यानी H2O
 लेकिन केवल इतना जानने से बात नहीं बनेगी जब तक कि उस जल को हम ग्रहण नहीं करते हैं |केवल नामो की जानकारी भी कुछ नहीं करेगी इसलिए कहते हैं-इस (प्रभु )को जानना है कि इसका रूप कैसा है ?  
अनुमान नहीं प्रमाण 
   पानी का अपना गुण है यह जान लेना जरूरी है नहीं तो केवल अनुमान रह जाते हैं |अक्सर इंसान अनुमान वाली भक्ति कर रहे हैं इसीलिये परमात्मा को सीमित कर देते हैं -जैसे कि-ऊपर आसमान में है परमात्मा |कोई कह देगा कि फलां दिशा में है |कोई इसको कंदराओं -गुफाओ में मानता है कोई जंगलो में मानता है |इस प्रकार परमात्मा के बारे में केवल अनुमान हैं |नाम तो सूना है लेकिन अनुमान ही लगाए जाते है |यहां जो चर्चा हो रही है तो बहन-भाई ठीक निशाने के ऊपर बात करते हैं क्यूंकि ऐसे गुणों वाले परमात्मा को इन्होने जान रखा है |इसका बोध इन्होने हासिल कर लिया है |ये ज्ञान की दृष्टि से दसो दिशाओ में इसका दर्शन कर रहे है |, 

धरती के लिए वरदान
हमारा जीवन ऐसा हो जो कि धरती के लिए वरदान माना जाए यानी कि प्यार के साथ,सहनशीलता के साथ  ,विशाल हृदय के साथ,दूसरो पर जुल्म न ढाकर ,एक-दूसरे के काम आते हुए,सुख-दुःख में साथ देते हुए,शोषण न करके पोषण देते हुए ,मधुरता के साथ ,सुन्दर वाणी का प्रयोग करते हुए जीवन का सफर तय करना |इन गुणों से युक्त मानव धरती के लिए वरदान ,समाज में विचरण करते हैं तो समाज के लिए वरदान ,मोहल्ले में रहते हैं तो मोहल्ले के लिए वरदान,प्रांत में रहते हैं तो प्रांत के लिए वरदान ,जिस मुल्क के वासी उस मुल्क के लिए वरदान बन जाते हैं |